शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

यह कविता आपको झंझकोर रखदेगी


जीते जी मरे भुखा प्यासा मरने पे पकवान परोस दीया

खुद मानव ही हैं दूसमन मानव का क्यु प्रकृती को दोश दीया 
नंगे बदन फीरता रहा ना तन ढकने को फटा पूराना पूर दीया ʼ सूला दीया जब अर्थि पे तो उसकी अर्थि को अनजानो ने भी चद्दर सूट उढाकर के रग रंगीली बना दीया
बेबस था लाचार था वो जो भूखा प्यासा  घूम रहा बस एक नीवाला मीलजाऐ वो हर दरवाजा  ताक रहा
नही मीली उसे एक भी रोटी  वो गाली खाकर सोगया 
नाजाने वो भगवा ह कैसा जो पत्थर पे पकवान चढे तो अती प्रसन्न जो होगया
जीस की बनाई रचना मे क्यो उसी का बनाया हर जीव जो दर्द का जीवन काट रहा 
कहा है वो मालीक जीसे हम कहे वीधाताʼ वो इन्साफ क्यो नही बाट रहा ढोंग और पाखंड करने वालों को तूम्हारा वो भगवान ही क्यों नही डाट रहा 
सूनता क्यो नही तेरा वीधाता क्यो नजरो से वो ना देख रहा  दरीन्दे कते रोज दरीन्दगी नारी को लाचार किया एक भर्स्टाचारी नेता ओर अफसरने खूब ही भ्र्स्टा चार कीया बेबस ओर लाचारो पे खुब ही अत्याचार किया फीरभी वो गुन्हगार तेरा क्यो मोज की जिन्दगी काट रहा 

नही मीला जवाब कोई यहा नही कोई विधाता है  छोडो अन्याय अत्याचार हे ईन्सान तू खूद ही ईश्वर तू खूद ही यहा वीधाताʼ है 


बुधवार, 8 जुलाई 2020

तकदीर भरोसे

तकदीर भरोसे रे इन्सान तू कुछ भी नहीं कर पाए गा 
दोलत मंद एहसान फरामोसो के जूते तले तू  
यों ही कूचला जाऐगा 
जो करना इन्साफ ना करना जाने ऊन लोगों से क्या इन्साफ तू पाऐ गा 

तकदीर भरोसे रे इन्सान तू कुछ भी नहीं कर पाए गा 

ना थामी तो कलम हाथमे तूम कैसे  शिक्षित बन पाए गा

पढे लिखे बीन रे इन्सान बस ग्वार ही कहलायेगा 
अग्यान वंस रे इन्सान तूम लाचार ही रहजायेगा
 
पाखंडियों  के पाखंड मे तुम उलझे ही रहजाओगे
अंध विश्वास के घोर जाल मे योहीं पीसते जाओगे 

दिन रात खून पसीना बहा ते बहाते दोलतमंद की रोटी का  तू एक दीन नीवाला बन जाऐगा 

रहकर तू तकदीर भरोसे कुछ भी नहीं कर पाए गा बेबसी ओर लाचारी के बल योही कूचला जाऐगा



Love shayeri bewafa shayeri dard bhri shayeri lavitaye kahaniya motivsnal or samajik stori

Kisi ka jhukne n dena sis lachari me

किसी का झुकने न देना सीस लाचारी में बेमानी का सीस उठने न देना खून है तुम्हारी नसों में ईमान का  इसे बेमानो से मिटने न देना  बाहें तुम्हारी भ...