सविधान में स्वतंत्र बेटी जुबा में बेटी स्वतंत्र है, ये तो मैने भी हर बार सुना है ना बेटा बेटी में अंतर है
पुरुष प्रधान इस भारत भूमि पे क्या सच में बेटी स्वतंत्र है।
बेटे के जन्म पे खुशियां बेटी के जन्म पे फिर ये दुःख जैसा क्यों आलम है,
बेटे का होता दसोठन छुछक फिर बेटी का क्यों नहीं, दसोठन होता है बेटा पढ़े विदेशों में फिर क्यों में बेटी का पढ़ना लिखना फिर क्यों बस गांव गुहांड तक होता है ,
बेटा होता है पिता की संपति का उतराधिकारी पिता की संपत्ति में बेटी का हक क्यों नहीं होता है कहते तो हो बेटा बेटी एक समान फिर ये अंतर कैसा है
पुरुष प्रधान इस भारत भूमि पे क्या सच में बेटी स्वतंत्र है।
बेटा करे काम काज सब मनमर्जी से बेटी के सर फिर क्यों का काम घरों का थोपा जाता है
बेटे के बियाह में बांटी खुशियां बेटी के बियाह में फिर क्यों ममता रोती है
पुरुष प्रधान इस भारत भूमि पे क्या सच में बेटी स्वतंत्र है।
बेटा घूमे फिरे ओढ़े पहने मन मर्जी से फिर बहु के ऊपर सबपाबंदी होती है दिन भर घर में बहु देश में घुंघट ओढ़े रहती है
बेटा बेटी एक समान तो फिर ये रस्में क्या कैसी है, समाज ने सारी रस्मों रिवाजे बेटी के सर थोपी है,बेटा बेटी एक समान फिर ये विडंबना कैसी है
पिंजरे में बंद पंछी की तरह कैद क्यों बेटी रहती है सच तो ये है बेटी तो बस जुबा पे स्वतंत्र रहती है, बेटा बेटी में रखते हो फर्कबेटा बेटी एक समान झूठा सब ये मंत्र है
पुरुष प्रधान इस भारत भूमि पे क्या सच में बेटी स्वतंत्र है।