शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

Naw yer spesal

 खुशियां देना अ जिंदगी नए साल में मगर मेरा पेट भरे इसे ज्यादा दौलत न देना दौलत से मुझे नफरत सी होगई है

खुशियां छीन लेती है दौलत ,जो दौलतमंद बने उनकी घमडियों जैसी फिदरत सी होगई है

बेसक आधा निवाला दे दे ना मेरी नसीब में मगर कोई भूखा न सोए इस जग में भूख से तड़फ ते मासूम देख मेरी आंखे नम नम सी होगई है

खुशियां देना अ जिंदगी नए साल में मगर मेरा पेट भरे इसे ज्यादा दौलत न देना दौलत से मुझे नफरत सी होगई है 

न देना मेरी नसीब में महल और शोहरत ,मगर सर पे बिन छत के जीवन किसी को नसीब न देना हर इंसान की नसीब में देना सरपे छत, फुटपाथ पर सोते मासूमों को देख मेरे सीने में चुभन सी होगई है

खुशियां देना अ जिंदगी नए साल में मगर मेरा पेट भरे इसे ज्यादा दौलत न देना दौलत से मुझे नफरत सी होगई है

हमे नहीं चाहिए सूट बूट वाली जिंदगी,

तेरी रहमतो के नीचे आधी दुनिया तन ढकने को कपड़े की खातिर भी बदनसीब सी होगई ह

जब देखा फटे कपड़ों में मासूमों को नज़रे शर्म से झुक सी गई है

खुशियां देना अ जिंदगी नए साल में मगर मेरा पेट भरे इसे ज्यादा दौलत न देना दौलत से मुझे नफरत सी होगई है

खुशियां छीन लेती है दौलत ,जो दौलतमंद बने उनकी घमडियों जैसी फिदरत सी होगई है

खुशियां देना अ जिंदगी नए साल में मगर मेरा पेट भरे इसे ज्यादा दौलत न देना दौलत से मुझे नफरत सी होगई है

              

                              लेखक:–रामरतन सुड्डा (Rk)

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

Kisan lekhk

गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खेती के औजार थमा रखे थे भोर होते ही जाना खेतो में कमाने और सूरज ढलने पर घर लुटने की ड्यूटी लगा रखी थी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खाती के औजार थमा रखे थे दिनभर सोचता रहता था में भी सामको घर जाकर सारे अरमान लिखूंगा अपने जीवन की हर दास्तान लिखूंगा मगर लिखता केसे मेरी देह में थकान समा रखी थी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खेती के ओजर थमा रखे थे दिन भर खेतो में मेहनत करते करते थका हरा साम को घर जाकर कुछ लिख भी नही पता और सो भी नही पता था रात भर कही पकी पकाई फसल बर्बाद ना होजाए मेरी बस यही चिंता सताए रहती थी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह द्रांति थमा रखी थी नींद आने ही वाली थी मुझे थके हरे को की सपने में फसल कहने लगती सो मत मुझे सवार में तुम्हे कुछ देना चाहती हू अगर तू सोजाएगा तो तेरी आसाए फिर से धरती पे बिखर जायेंगी जिस दाने दाने को तरता रहता ह तू साल भर मुझे जल्दी जल्दी सवार और भरलेजा बोरियो में अगर तूने देर की तो तेरी अनाज की बोरी फिर दाना दाना होकर धरती में सिमट जाएगी तेरी आंखे फिर दाने दाने को तरस जायेंगी जिस कलम से तू लिखना चाहता ह अपने अरमान उसी उसी कलम से तेरे सर कर्ज की लकीरें लिखी जाएगी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खेती के औजार थमा रखे थे ramratan sudda lekhak 

Love shayeri bewafa shayeri dard bhri shayeri lavitaye kahaniya motivsnal or samajik stori

Kisi ka jhukne n dena sis lachari me

किसी का झुकने न देना सीस लाचारी में बेमानी का सीस उठने न देना खून है तुम्हारी नसों में ईमान का  इसे बेमानो से मिटने न देना  बाहें तुम्हारी भ...