गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खेती के औजार थमा रखे थे भोर होते ही जाना खेतो में कमाने और सूरज ढलने पर घर लुटने की ड्यूटी लगा रखी थी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खाती के औजार थमा रखे थे दिनभर सोचता रहता था में भी सामको घर जाकर सारे अरमान लिखूंगा अपने जीवन की हर दास्तान लिखूंगा मगर लिखता केसे मेरी देह में थकान समा रखी थी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खेती के ओजर थमा रखे थे दिन भर खेतो में मेहनत करते करते थका हरा साम को घर जाकर कुछ लिख भी नही पता और सो भी नही पता था रात भर कही पकी पकाई फसल बर्बाद ना होजाए मेरी बस यही चिंता सताए रहती थी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह द्रांति थमा रखी थी नींद आने ही वाली थी मुझे थके हरे को की सपने में फसल कहने लगती सो मत मुझे सवार में तुम्हे कुछ देना चाहती हू अगर तू सोजाएगा तो तेरी आसाए फिर से धरती पे बिखर जायेंगी जिस दाने दाने को तरता रहता ह तू साल भर मुझे जल्दी जल्दी सवार और भरलेजा बोरियो में अगर तूने देर की तो तेरी अनाज की बोरी फिर दाना दाना होकर धरती में सिमट जाएगी तेरी आंखे फिर दाने दाने को तरस जायेंगी जिस कलम से तू लिखना चाहता ह अपने अरमान उसी उसी कलम से तेरे सर कर्ज की लकीरें लिखी जाएगी गुनगुनाता रहता था में दिनभर मगर कुछ लिख ना सका पेट की आग ने हाथो में कलम की जगह खेती के औजार थमा रखे थे ramratan sudda lekhak
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सोमवार, 6 दिसंबर 2021
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