मुर्दों के घर में जिंदो का कोई काम नहीं होता
मुर्दों के घर में जिंदो का कोई काम नहीं होता
सोए हुए समाज में जागे हुए लोगों का मान नहीं होता
अक्षर वही होते है किसी गैर के शोषण और धो:खे के सीकार
जिनको गैरो पे ऐतबार और अपनो पे ऐतबार नहीं होता
मुर्दों के घर में जिंदो का कोई काम नहीं होता
सोए हुए समाज में जागे हुए लोगों का मान नहीं होता
नोचे जाते है उन्ही के जिस्म प्यार मोहब्त की आड़ में जिन्हे अपनी कॉम और पूर्वजों पे स्वाभिमान नहीं होता
अक्षर बलशाली भी समझने लगते हैं खुदको कमजोर जिनको अपने इतिहास का ज्ञान नहीं होता
जीते हुए भी मुर्दों के समान होते हैं वोलोग जिनको अपने महापुरशो की कुर्बानी पे स्वाभिमान नहीं होता है
मुर्दों के घर में जिंदो का कोई काम नहीं होता
सोए हुए समाज में जागे हुए लोगों का मान नहीं होता
बेसख बटोरी हो दौलत करोड़ों में वो फिर भी सर उठा कर नहीं जी सकते जिनको अपने हक अधिकार और इतिहास का ज्ञान नहीं होता
वो लोग ही चाटा करते है गैरो के तलवे जिनको अपनी कॉम पे स्वाभिमान नहीं होता
मुर्दों के घर में जिंदो का कोई काम नहीं होता
सोए हुए समाज में जागे हुए लोगों का मान नहीं होता
अक्षर वही लोग करते है समाज की दलाली जिनकी नसों में बहुजन कॉम खून नहीं होता
वो लोग बेचा करते है अपने वोट को कोड़ियो में जिन्हे अपनी कॉम को शासक बनाने का जुनून नहीं होता
मुर्दों के घर में जिंदो का कोई काम नहीं होता
सोए हुए समाज में जागे हुए लोगों का मान नहीं होता
लेखक:–रामरतन सुड्डा
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