सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

Dasahara rawan dahan

 

जब समाज में हजारों दरिंदे जिंदा है तो अकेला रावण दहन क्यों

मै साम को खाने के बाद बाहर  टहलने निकला ही था कि मेरे घर के आगे से बहुत से लोगो की भीड़ निकली वो एक रैली सी थी लोग नारे बाजी करते आगे बढ़ रहे थे ओर बढ़ते ही जारहे थे फिर भी लोगों की कतारकतार खत्म नहीं हो रही थी शायद गांव के बच्चे बूढ़े ओर महिलाएं भी उस रैली का हिसा थी मैं नहीं समझ पाया था की आखिर आज गांव के लोग रैली किस बात की निकाल रहे हैं मैने एक दो व्यक्ति से पूछना चाहा को एकदम वृद्धा अवस्था अवस्था के थे लेकिन उनका जोस देखने में किसी जवान लड़के से कम नहीं था वो नारे बाजी में इतने वेस्त थे कि उन्होंने मुझे कुछ बताने कि वाजाय अपने साथ रैली में चलने को बोला और आगे बढ़ ने लगए मै भीड़ में उपस्थित लोगों का उत्साह देखकर मै सोचने लगा जरूर गांव के किसी होनहार वयेक्ती या बचे ने कोई ऐसा काम किया होगा जिस से गांव का नाम रोशन किया होगा उसी के सम्मान समारोह समारोह का आयोजन होगा तभी लोगों में इतना उत्साह ह में ऐसा ही कुछ सोच कर भीड़ के साथ चलने लगा भीड़ चलती चलती नारेबाजी करते करते गांव के चौपाल की ओर बढ़ने लगी गांव की पतली गलियों से निकलते निकलते भीड़ जाकर गांव के चौपाल पर जाकर इकठ्ठा होने लगी मैं भीड़ में सबसे पीछे ही पीछे था मै यह जानने को बहुत ही उत्सुक था कि आगे हो क्या रहा है मने भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ना सुरु किया आगे एक बहुत ही विशाल काए पुतला बनाया हुआ था ओर गांव के सभी लोग पुतले के चारो ओर इकठ्ठा थे मैं पुतले को देख मै समझ नहीं पाया था कि ये पुतला किसका है ओर ये सभी लोग इसके चारो और इकठ्ठा क्यों हो रहे हैं लोगों मै इतना उत्साह किस लिए ह मैने एक व्यक्ति से पास जाकर पूछा वो एक रिटायर्ड परेंसिप्ल थे उन्होंने मुझे बताया आज दशहरादशहरा ह ओर ये रावण का पुतला ह ओर गांव के सभी लोग रावण को जलाने की खुशी में ही इतने उतावले ह में ये सब सुनकर चौपाल पर बनी सीढ़ियों पर जाकर बैठ गया और एकटक देखने लगा देखते ही देखते धीरे धीरे एक एक कर सभी लोग खंडित होकर रधर उधर खिसकने लगे ओर चौपाल में मानो पांच सात वेयक्ती ओर बच्चे घूमते ओर एक ओर महिलाओं का बड़ा सा गुट नजर आरहा था मै फिर सोच में पड़ गया आखिर सभी लोग गए कहा कुछ समय बाद सभी लोग एक एक कर ईधर उधर से आने लगे उनकी चाल ओर हाव भाव से ऐसा लग रहा था मानो सभी लोग किसी ठेके या शराब की दुकान से होकर आए हो ओर शराब शराब के नसे में धुत हो कुछ लगो को देखकर तो साफ साफ नज़र आरहा था वो नसे में एकदम धुत थे देखते ही देखते भीड़ वापस बढ़ने लगी बच्चे उछल कूद करते नजर आरहे थे मानो बच्चो के मन में बस एक ही सवाल दौड़ रहा हो कब पुतले को आग लगाई जाए ओर कब पठाको की गड़ गड़ाहट सुनाई दे रावण के पुतले को आग लगने की पूरी तयारी होचुकी थी फिर से नारे बजी सुरु हुई लोग पटाखे ओर फुलझडियां जगाने लगे इसी बीच कुछ लूचे लफंगे लोगो की नजर गांव की बहन बेटियो की तरफ टिकी हुई थी आंखे नसे से चमक रही थी मानो वो लोग रावण रावण के पुतले को जलाने नहीं बल्कि गांव की बहन बेटियों को देखने आए हो मै सीढ़ियों पर बैठा बैठा सब देखरहा था में मन ही मन सोच रहा था ये लोग अपने अंदर के रावण को मिटा नहीं पाते तो रावण के पुतले को जलाने से क्या फायदा नसा जुआ शराब बहन बेटियो की तरफ बुरी नजर  इन सब आदतों से भरे इन इन्सानों से बुरा तो शायद रावण भी नहीं होगा फिर भी रावण के पुतले को जलाकर खुशी मना रहे हैं ये सब देख मुझे बहुत बुरा लग रहा था रावण को जलाने वाले लोगो की भीड़ में शामिल होना मूर्खता सी लग रहा था क्योंकि कुछ लोगो की नीयत साफ साफ नज़र आरही थी मानो वो कुछ लफंगी हरकत करने के इरादे से ही आए हो उन लोगों के अंदर का इंसान मानो मर चुका हो ओर साथ ही अंदर की इंसानियत भी, कोई अपने अंदर झांक कर नहीं देखता बल्कि दूसरे की बुराई सभी को दिख जाति है पता नहीं आज के लोगों की कैसी मानसिकतामानसिकता हो गई है सदियों पहले के रावण का पुतला हर वर्ष जलाया जाता है जिसका पता भी नहीं वो अच्छा था या बुरा कोई रावण था भी या नहीं अपितु खुद के अंदर की बुराई किसी को भी नजर नहीं आती कोई खुद को नहीं बदलना चाहता,
खुद को बदले बगैर पुतले बेसख कितने ही क्यों ना जलालो कोई फायदा नहीं
कुछ समय बाद पुतले को आग लगा दी गई ओर चरो ओर धुआं ही धुआं पटाखों की गड़ गड़ाहट के साथ ही लोग ईधर उधर भागते नजर आने लगे  शायद पटाखे फुटकर भीड़ में गिरने लगे थे इसी का फायदा उठाने की फिराक में कुछ लोग महिलाओं कि तरफ बढ़ने लगे ओर महिलाओं महिलाओं मै जाकर इस कदर गिर गए मनो उन्हें कुछ अपने बारे में पता ही नहीं हो वो कहा है मै शुरू से ही उन्हें देखरहा था उन्हें देख लगरहा था मानो वरसो से इस दिन का इंतजार कर रहे हो कब वो दिन आए ओर कब अंधेरे का फायदा उठाएं 

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