शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

Bhumi hin kisan

 


भारत देश की अर्थव्यवस्था में भारतीय किसानों का बहुत बड़ा योगदान रहा है भारत देश एक कृषि प्रधान देश ह ओर भारत की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिंसा कृषि पर आधारित होने के बावजूद भी भारतीय किसानों की हालत दिनप्रती दिन बद से बातर होती जारही है देश के किसान देश ओर दुनिया का पेट भरते हुए भी खुदका पेट भरने में असक्षम हैं 

भारतीए किसानों में ज्यादातर किसान भूमि हिन ह येबात दिखने ओर सुनने में रोचक जरूर हैं कि भूमि के बिना कोई किसान किसान कैसे होसकता है मगर ये सच्चाई है भारत में बहुत से किसान भूमि हिनह ये वो किसान ह जो देश ओर दुनिया का पेट भरने के लिए दिन रात खेतो में मेहनत करते हैं 

भूमि हिन किसान या तो किसी जमींदार की कृषि योग्य भूमि को वार्सिक ठेके पर लेते हैं या भूमि मालिक को उपज का आधा हिंसा देने की एवज पर खेती करने केलिए भूमि लेते हैं 

अगर ये किसान किसी जमींदार की दस पांच बीघा जमीन ठेके पर लेते हैं उसमे अनाज होने या नाहोने से जमींदार का कोई वास्ता नहीं होता जमींदार जिस भी ऑस्त पर किसान को अपनी जमीन का जोभी हिंसा किसान को देता है उसी एवज की रकम बुआई से पहले ही किसान से लेलेता है उसके बाद बीज बुआई कीटनाशक या जो कोई भी अन्य खर्च होता है वो भी किसान को खुद अपनी जेब से देना होता है 

कुछ किसान ठेके की एवज की रकम नहीं जुटा पाते वो किसी जमींदार से खेती में उपज के संपूर्ण अनाज के आधे हिस्से को जमींदार को देने की एवज पर खेती लेकर खेती करते हैं इस आधे हिंसे के पर्वधन में बीज बुआई कीटनाशक का खर्च ओर मेहनत किसान करता है ओर भूमि मालिक बस इसलिए उपज का आधा हिंसा बतौर लेता है कि भूमि कागजी तौर पर उसके नाम होती है

मेहनत किसान करता है ओर जमींदार आराम से अपने घरों में बठा बैठा खाता है सिर्फ इसलिए कि सो दोसो पांच सौ हजार बीघा जमीन का मालिक है

जमींदार किसानों कि मेहनत की खाने से खुश नहीं होता बल्कि सरकार से भी अपनी भूमि के नाम से किसान क्रेडिट बतौर पैसे उठता है ओर समय पर बारिश ना होने या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से फसल में नुकसान हो जाने से सरकार से कर्ज माफी की अपील भी करता है ओर कर्ज माफी का फायदा भी उठता है जबकि भूमि मालिक भूमि पर ना तो कासत करता है ओर ना ही खर्च भूमि पर कासत ओर खर्च किसान करता है

ये किसान खेती पर आश्रित होते ह ओर खेती करने केलिए यातो सरकार से उचित बियाज पर या साहूकार से

मन मांगे बियाज़ पर रकम लेकर खेती करते हैं ओर समय पर बरसात या सिंचाई ना होपाने की वजह खेती में फसल अच्छी नहीं होने से कर्ज नहीं लौटा पाते ओर बीयाज के बोझ तले दब कर साहूकार के तानों ओर सरकार के नोटिसों से तंग आकर या तो आत्म हत्या करने पर मजबुर होजाते है या अपनी मानसिक स्थिति खो देते हैं

सरकार को ऐसे किसानों के बारे में कुछ सोचना चाहिए ओर भूमि हिन किसानों को भूमि देनी चाहिए क्योंकि ये कोई ज्यादा सोचने वाली बात नहीं है किसी घर में पांच सदस्य ह ओर सो दो सौ  बीघा जमीन का मिलिक है तो वो इतनी जमीन कि कासत नहीं कर पाता ऐसे भूमि मालिक या तो भूमि किसी किसान को ठेके पर या उपज के आधे  हिस्से की एवज पर दे देते है ऐसे में सरकार को किसी एसी योजना का गठन कर भूमि की कासत करने वाले किसान को अलॉट करदेना चाहिए ओर भूमि मालिक को सरकारी रेट पर किस्तों के द्वारा पैसे चुकाने का प्रावधान करना चाहिए जिससे बेवजह जमींदारों से पीस रहे भूमि हिन किसानों को बचाया जा सके ओर  देश में कोई भी किसान भूमिहीन ना रहपाए ओर सरकारी योजनाओं का उचित लाभ सही हकदार को मिल पाए

जिस से किसान आत्म हत्याएं कम हो 

 

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