रविवार, 16 मई 2021

गंगा नदी में तेर रही असंख्य लासे

 


इंसानियत ना रही इंसानों में बस भयावह मंजर सा छाया है लोगो की नजरो में 

दफ्न भी ना हुई उनकी लासे जिनकी जाने लेली कोरॉना की किलकारो ने 

कफन में लिपटी असंख्य लासे बेतहासा नोची कुते बिल्ली और कौओं ने

कुछ लासे बहती दिखी नदियों में कुछ तो बहा दीगई गंदे नालों में

इंसानियत ना रही इंसानों में बस भयावह मंजर सा छाया है लोगो की नजरो में 

बेसर्मी की हदे तोड़ दी अंधी बहरी सरकारों ने तड़फ तड़फ कर सांसे छोड़ी लाखों गरीब मजलूम परिवारों ने

फिरभी चुपी क्यों ना तोड़ी जालिम इन सरकारों ने

इंसानियत ना रही इंसानों में बस भयावह मंजर सा छाया है लोगो की नजरो में 

रोटी पानी की तलब लगी अब तो दाना भी ना रहा गरीबों घर के आश्यानो में दूरी का आलम बढ़ता गया फर्क ना रहा इंसान और हेवानो में

इंसानियत ना रही इंसानों में बस भयावह मंजर सा छाया है लोगो की नजरो में 

सब इंसान अछूत हुए मौत का मंजर मिलने लगा छुने और बतलाने से डर सा लगने लगा है अब तो प्यासे को पानी तक पिलाने से

इंसानियत ना रही इंसानों में बस भयावह मंजर सा छाया है लोगो की नजरो में 

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