मंगलवार, 15 सितंबर 2020

ज्ञानी हू में


देश के पूंजी पतियों की हकीकत मेरी एक रचना देश के गरीब और लचारो के नाम

जब दिखता है कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी हो लेता हूं 
दिखावे कीलिए बोल देता हूं मैं सहयोगी हू तेरा
पर साहेब सहयोग कहा देता हूं
विचार में भी बड़े रखता हूं  साहेब तभी तो जब मिले 
कोई असहाय तो कमा के खाने की बोल देताहू 
जब मांगे मुझसे कोई रोजगार करने को सहयोग 
तो सहयोग कहा देता हूं
छोड़ो मांगकर खाना और खाओ कमाकर मेरे विचार
बड़े ह तभी तो ये सलाह देता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में 
तो दुखी में भी हिलेता हूं
क्या होगी उसकी मजबूरी मुझे इस से क्या 
मैं तो ज्ञानी हू साहेब तभी तो हर किसी बेबस को ज्ञान 
देजाता हूं 
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुखी में भी हो लेता हूं 
कोई नहीं चाहता किसी के आगे हाथ फैलाना पर मुझे इससे क्या मैं तो समृद्ध हू पैसे से
मैं किसी की लाचारी कहा समझ पाता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी होलेता हूं 
मैं जाता हूं मंदिर पुण्य कमाने और खूब मेवे मिठाई 
चढ़ता हूं जब कोई मांग ले भूखा रोटी मैं भूखे को रोटी कहा खिलता हू
मुझे तो पत्थर में दिखता है भगवान,में तो ज्ञानी हू साहेब 
तभी तो हर लाचार को कमा के खाने की कह देता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी हॉलेता हूं 
रामरतन सुड्डा कवि नहीं हूं मै होता है दर्द मुझे  किसी की बेबसी का मै हूं खुद बेबस 
कुछ और तो नहीं मेरे पास इस जमाने को देने केलिए मेरे 
बस अपनी रचना देदेता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी  हॉलेता हूं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Please do not enter any spm link in comment box

Love shayeri bewafa shayeri dard bhri shayeri lavitaye kahaniya motivsnal or samajik stori

Kisi ka jhukne n dena sis lachari me

किसी का झुकने न देना सीस लाचारी में बेमानी का सीस उठने न देना खून है तुम्हारी नसों में ईमान का  इसे बेमानो से मिटने न देना  बाहें तुम्हारी भ...