देश के पूंजी पतियों की हकीकत मेरी एक रचना देश के गरीब और लचारो के नाम
जब दिखता है कोई गरीब इस जमाने में
तो दुख में भी हो लेता हूं
दिखावे कीलिए बोल देता हूं मैं सहयोगी हू तेरा
पर साहेब सहयोग कहा देता हूं
विचार में भी बड़े रखता हूं साहेब तभी तो जब मिले
कोई असहाय तो कमा के खाने की बोल देताहू
जब मांगे मुझसे कोई रोजगार करने को सहयोग
तो सहयोग कहा देता हूं
छोड़ो मांगकर खाना और खाओ कमाकर मेरे विचार
बड़े ह तभी तो ये सलाह देता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में
तो दुखी में भी हिलेता हूं
क्या होगी उसकी मजबूरी मुझे इस से क्या
मैं तो ज्ञानी हू साहेब तभी तो हर किसी बेबस को ज्ञान
देजाता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में
तो दुखी में भी हो लेता हूं
कोई नहीं चाहता किसी के आगे हाथ फैलाना पर मुझे इससे क्या मैं तो समृद्ध हू पैसे से
मैं किसी की लाचारी कहा समझ पाता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में
तो दुख में भी होलेता हूं
मैं जाता हूं मंदिर पुण्य कमाने और खूब मेवे मिठाई
चढ़ता हूं जब कोई मांग ले भूखा रोटी मैं भूखे को रोटी कहा खिलता हू
मुझे तो पत्थर में दिखता है भगवान,में तो ज्ञानी हू साहेब
तभी तो हर लाचार को कमा के खाने की कह देता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में
तो दुख में भी हॉलेता हूं
रामरतन सुड्डा कवि नहीं हूं मै होता है दर्द मुझे किसी की बेबसी का मै हूं खुद बेबस
कुछ और तो नहीं मेरे पास इस जमाने को देने केलिए मेरे
बस अपनी रचना देदेता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में
तो दुख में भी हॉलेता हूं
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