जब बात हो हक अधिकारों की साहेब क्यों चूपी साधे रहता है
रोजगार नोकरी की बातो पे क्यों साहेब तुतलाता है
देश में फैली भ्रष्टाचारी साहेब को कुछ भी नज़र नहीं आता है
चुप रहने की एवज में क्या साहेब की जेब में भी बड़ा कमीसन जाता है
अंधभगति मे देखो तो विकास नज़र जो आता है अंध भगति से कोई बाहर जो निकले तो क्यों साहेब जी घबराता है
सच लिखने सच बोलने वालों को साहेब जी क्यों देश द्रोही बतलाता है
जब बात हो हक अधिकारों की साहेब क्यों चूपी साधे रहता है
तर्क करे सवाल उठाए हर पढ़ा लिखा क्यों साहेब जी नहीं चाहता है
नाम बदलना झूट बोलना रामरतन सुड्डा समझ नहीं क्या यही विकास कहलाता है
साहेब तो अनपढ़ था फिर ये बड़ी बड़ी उच्च शिक्षा की डिग्रियां कहां से लाता है
घर बठे डिग्री मिलती है इसी लिये तो साहेब सकुल कॉलेज नहीं बनवाता है अंधभगत हो जनता सारी बस मंदिर मूर्ति बनवाता है
सासन चलाना तुम्हारे नहीं बसका साहेब तुम्हे बस चाय बेचना आता है
क्या अच्छा शासक युवाओं से पकोड़े तलवता है
जब बात हो हक अधिकारों की साहेब क्यों चूपी साधे रहता है
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