शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

14 अप्रैल का मंजर


 जब देखा 14 अप्रैल का मंजर तो ऐसा लगा मानो बाबा साहेब की विचारधारा हर गांव शहर घर घर में पहुंच गई 

आज तो लगता है वो एक दिन की थी क्रांति और उसी साम पटाखे फुलझड़ीयो और केक के संग लि उस सेल्फी में सिमट गई

वो नारे वो जोश लगता है अब तो वो उमंग भी कहीं भटक गई

आज फिर डरा सहमा सा लगने लगा बहुजन मानो इसकी जान पौराणिक कथाओं में वर्णित पिंजरे में बंद किसी तोते में थी एक दिन पिजरे से आजाद हुआ तोता और फिर से उसकी डोर मनुवाद के हाथों में अटक गई

जब देखा 14 अप्रैल का मंजर तो ऐसा लगा मानो बाबा साहेब की विचारधारा हर गांव शहर घर घर में पहुंच गई 

दहल सा गया था मनु का वंश ऐसा लगा मानो बहुजन कॉम में तो अब शासक बनने की थी जो चिंगारी वो जंगल में लगी आग की तरह दहक गई 

आज फिर ऐसा लगा मानो एक दिन की थी वो गर्मी वो आग आज फिर वो चिंगारी में सिमट गई

कितनी पियारी थी वो एकता की तस्वीर लगता है आज फिर वो एकता की तस्वीर टुकड़े टुकड़ों में बदल गई

जब देखा 14 अप्रैल का मंजर तो ऐसा लगा मानो बाबा साहेब की विचारधारा हर गांव शहर घर घर में पहुंच गई 

एक है हम एक है लगे थे खूब नारे उस्दीन अब तो ऐसा लगता है वो एकता वाली विचार धारा भी कहीं भटक गई

फिर से खींच ने लगे टांगे एक दूजे की फिर वहीं जलन और नफरत सी पनप गई

आज तो लगता है वो एक दिन की थी क्रांति और उसी साम पटाखे फुलझड़ीयो और केक के संग लि उस सेल्फी में सिमट गई

जब देखा 14 अप्रैल का मंजर तो ऐसा लगा मानो बाबा साहेब की विचारधारा हर गांव शहर घर घर में पहुंच गई 





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