हम निकले थे सफर के लिए अकेले ही
कुछ कदम चले ही थे की कुछ हमसफर मिलगये
सोचा दूर होगा अकेलापन एक ही मंजिल के दोस्त और हम सफर मिलगये खुशी से झूम उठा मन ऐसा लगा मोनो भरे रेगिस्तान में भी गुल ए चमन खिल गए
अकेले से चलना था मुश्किल दो कदम भी भीड़ में पता भी ना चला और हम कोसो पैदल चल गए
हंसी ठिठोली बातो ही बातो में पता भी ना चला कब उदय हुआ सूरज और कब उगा चांद हम चांदनी रात में तय लंबा सफर कर गये
भूल से गए एक पल के लिए भूख प्यास भी और दिल से दिल मिलते रहे
भूल से गए थे उस पल सभी दुख दर्द जमाने भर के जब गैरो में भी नजर अपने आने लगे
आई मंजिल भी एक रोज हमारी सब अपनी अपनी पसंद के आस्याने चुनने लगे
फिर अकेले से हिगये हम, जब बिखरने लगे सब यार पुराने और चंद दौलत पाने के लिए एक एक कर हमसे दूर जाने लगे
आंसू झलक आए आंखो से जब कहकर अलविदा हमसे हम पर दोस्ताना हक जमाने लगे
यही तक थी मंजिल एक हमारी ओर वो दूरी मंजिल की तलास हमे बतलाने लगे
हम निकले थे सफर के लिए अकेले ही
कुछ कदम चले ही थे की कुछ हमसफर मिलगये
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