,, में नास्तिक क्यों हु ,,
में नास्तिक हु मेरे नास्तिक होने से लोग मुझसे नफरत करने लगे
कई कहते पागल मुझे कई तो मुझे देख कर भी डरने लगे
किसी ने नही पूछना चाहा मुझसे की में नास्तिक क्यों हूं
बिन हकीकत जाने ही मुझे घंडी ओर काफिर कहने लगे
में दर्द लिए फिरता रहा अपने सीने में सबकुछ जानकर भी अनजान बनकर जीता रहा
जिस भगवान के नाम से कलंकित हुए मेरे अपने और में भी अछूत बनकर जीता रहा
दर दर खाता रहा ठोकरें उच्च जाति की ओर अंदर ही अंदर रोता रहा नफरत सी होने लगी मुझे उस ईश्वर के नाम सेही जो सब कुछ देखर भी जालिमों को हिमत देता रहा
सुना था जब जब जुल्म हुए इस धरती पर उस जुल्म को मिटाने खुद ईश्वर ने अवतार लिए और इस धरती से खुद ईश्वर ही जुल्मों को मिटाता रहा
फिर होते रहे जुल्म मेरे अपने पे महज जाति के नाम से तब वो ईश्वर क्यों आंखे मूंदकर सोता रहा
नहीं आया वो अवतार लेकर मेरी अपनी बहिन बेटियो का नोचा जाता रहा जिस्म सदियों सदियों तक और सती के नाम से मेरी माताएं बहनों को ये जमाना जिंदा जलाता रहा
जाने ना दिया मंदिर मेरे अपनों को अपवित्रता का ढोंग रचा ये उच्च वर्ण सदियों तक ऊपर से पानी पिलाता रहा
बेवजह हैं गरीब मजुलुमो को धर्म की आड़ में बेवजह कोई बलशाली कमजोर को सताता रहा देखता रहा सबकुछ तुम्हारा ईश्वर और अत्याचारी का लुप्त उठाता रहा
में नास्तिक हु मेरे नास्तिक होने से लोग मुझसे नफरत करने लगे
कई कहते पागल मुझे कई तो मुझे देख कर भी डरने लगे
किसी ने नही पूछना चाहा मुझसे की में नास्तिक क्यों हूं
बिन हकीकत जाने ही मुझे घंडी ओर काफिर कहने लगे
में दर्द लिए फिरता रहा अपने सीने में सबकुछ जानकर भी अनजान बनकर जीता रहा
सीने में हजारों जख्म लिए फिरता रहा
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