क्या अजीब रस्मों रिवाज है इस जमाने का
एक जिस्म एक लहू फिर भी हिंदू के जलाने और मुस्लिम के दफनाने का
क्या अजीब रस्मों रिवाज है इस जमाने का
जीते जी पीला ना सके एक लोटा पानी जिसे, उसके मरने के बाद बाल्टी भर भर नहलाने का
जवान मरे तो मातम वृद्ध मरे तो खर्च के नाम ने मेवे मिठाई खाने का पहले मातम फिर खुसिया मानने का
क्या अजीब रस्मों रिवाज है इस जमाने का
फिर ते फिरे जहारो बेब्स नंगे बदन जिन्हे मिला ना कपड़ा तन ढकने का
अनजान भी चादर सूट उढ़ाने लगे जब समय आया उसे दफनाने का
क्या अजीब रस्मों रिवाज है इस जमाने का
जब जिंदा था वो तब था दुनिया की नजर में सबसे बुरा इंसान वो
जब जान नारही जिस्म में तो बताने लगे अब तो चल बसा कितना भला इंसान था वो
क्या अजीब रस्मों रिवाज है इस जमाने का
कुछ करना चाहा उसने भी पर जमाना बाज नहीं आया जलन में उसकी टांग खींचने और सही को गलत ठहराने में
मरते ही उसके कहने लगे कितना ज्ञानी आदमी था कुछ दिन और जिंदा रहता तो बहुत कुछ कर जाता इस जमाने में
अरे आदमी नही वो तो कोहिनूर था इस जमाने का
क्या अजीब रस्मों रिवाज है इस जमाने का
एक जिस्म एक लहू फिर भी हिंदू के जलाने और मुस्लिम के दफनाने का
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