बूढ़े मां बाप लगते है बोझ जिन्हे जिनकी नजरो में तो पत्थरों में जान होती है
जीते जी भी मृत से होजाते है वो मात पिता जिनकी अंध भगत संतान होती है
बाहर बिठा दिए जाते है मात पिता घर में बड़े बड़े पत्थर संजोए जाते है
मां बाप भूखे प्यासे हो चाहे उनसे क्या अंध भगति में तो पथरों को पकवान खिलाए जाते है
जीते जी भी मृत से होजाते है वो मात पिता जिनकी अंध भगत संतान होती है
जिंदगी भर न दिया सुख से एक निवाला जिन्हे मरने के बाद ढेरो पकवान होते है
जीते जी नहला ना सके एक दिन भी बूढ़े मां बाप को मरने के बाद उन्ही के गंगा स्नान होते है
बूढ़े मां बाप लगते है बोझ जिन्हे जिनकी नजरो में तो पथरो में जान होती है
जीते जी भी मृत से होजाते है वो मात पिता जिनकी अंध भगत संतान होती है
तरस जाते है बुढ़ापे में मां बाप एक लोटा पानी के लिए
उनके मरते ही पैदल यात्रा पांचों धाम होती है
अब तो भेजना है उन्हे संवर्ग कभी पिंड दान तो कभी हवन यज्ञ करवाने में बिजी उनकी संतान होती है
जीते जी भी मृत से होजाते है वो मात पिता जिनकी अंध भगत संतान होती है
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