मंगलवार, 31 मार्च 2020

ऐक गरिब कि अमीर को ललकार देने वालि कविता

तूम धनवान हो तो क्या हूआ सड़को पे तो मै भी नही, तू सोता होगा महलों मे बेसक, मेरे महल नही तो क्या हूआ सर पे बगेर छत के तो मै भी नही
तूम पूजते हो पत्थर की मूरत,मेरी नजर मे मेरे मात पीता से बढकर कोई ओर भगवान नही 
तूम आस्तिक हो तो क्या हूआ नास्तिक तो मै भी नही तूम रखते होगे आस्था काल्पनिक भगवानो मे मेरी नजर मे मात पीता से बढकर आस्था का द्वार नही तूम पढो गीता या कुरान मूझे इस से कोइ ऐतराज नही मै पढता हू भारतीय संविधान को मेरी नजर मे है इससे बङा कोइ ग्रंथ नही तूम करो जोब कम्पनियों मे मुझ पर इनका कोइ रोब नही मै हू खून किसान का मै समझता इससे बडा कोइ रोजगार नही तूम लेते होगे ग्यान संतों का मेरी नजर मे बाबा साहेब से बङा कोई विद्वान नही मै पढता हू किताबें भीम की मेरी नजर मे  उनसे ज्यादा होता होगा धर्म ग्रथो मे कोई ग्यान नही तुम्हें लगते होगे बाहों से मजबूत बलवान मेरी नजर मे कलम से ज्यादा कोई बलवान नही,तूम करवा के हवन ओर यज्ञ रखते होगे आस पून्नय  की मेरी नजर मे भूखे को खाना खिलाने से बङा कोई पून्नय नही, तूम पूजते हो पत्थर की मूरत,मेरी नजर मे मेरे मात पीता से बढकर कोई ओर भगवान नही 

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