शनिवार, 7 मार्च 2020

मनूवाद को हिलाके रखदेने वालि भिम सेरनि कि कविता


ना हिन्दू ना मुस्लिम  ना ही सिख ईसाई हूँ
मै सबसे पहले हूँ मारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
जात पात की नही सम्रथक ना  किसी धर्म की मै सिपाही हूँ
हू इन्सान ओर सभी इन्सानों को समझती आपस मे भाई भाई हूँ
ना हिन्दू ना मुस्लिम ना ही सिख ईसाई हू
मै सबसे पहले हूँ भारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
बाबा साहेब मेरे हैं आद्रश मै भारतीय संविधान की सिपाही हूँ
निला झण्डा है मेरी निशानी मै निले झण्डे की परछाईं हूँ
संघर्ष सिल हूँ संघर्षों से कभी ना हारी मै संघर्षों  की आदी हूँ
नही सम्रथक हिंसा की मै तो अहिंसा वादी हूँ
गर्व से बोला करती हूँ साहेब मै तो अम्बेडकर वादी हूँ
ना हिन्दू ना मुस्लिम नाहीं सिख ईसाइ हूँ
मै सबसे पहले भारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
आपस मे ना लड़ना जानू मै प्यार भरी सहनाई हू
अच्चछे के साथ हूँ अच्चछी ना बूरे के साथ बूराइ हूँ
मैं गर्व से बोला करता हूँ कि मै संविधान का सिपाइ हूँ
ना सिखा कमी ज़ुल्म को सहना ना ज़ुल्म किसी पे ढाती हूँ
समता की मै रही समर्थक समाज भी समता मूलक चाहती हूँ
धर्मा खिंच्ची भगवान मेरे है भीमराव बस गित उन्हीं के गाती हूँ
ना हिन्दु ना मुस्लिम नाहीं सिख इसाई हूँ
मै हूँ भारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
           जय भीम जय भारत 

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