शनिवार, 14 मार्च 2020

दहेज क्यो नही लेना चाहिए दहेज नही लेने के हजारो फाएदे जो आपकी किस्मत बदल दे

नमस्कार दोस्तो कैसे हैं आप सब ,दोस्तो मै आप का दोस्त रामरत्तन सूडा आप पढ रहे हैं sawtanter aawaj. Com ,दोस्तो आज हम बात करते हैं दहेज पर, की दहेज के नाम पर अगर हम एक रूपया भी लेते हैं  तो हम पाप के भागी ओर आत्म सम्मान हारे हुए निरदेइ राक्षसों कि श्रेणी में  होते है जानिए कैसे मेरे  साथ स्टोरी को पूरा पढकर


दोस्तों सबसे पहले हम चर्चा करते है इस सवाल पर की दहेज एक बुराई है एक पाप है या यूँ  कहें पाप का दरवाजा है तो इसकी सुरुआत हि क्यों हूई ईस पाप के दरवाजे को खोला ही क्यों गया इस बुरी परम्परा की सूरूआत समाज मे आखिर कि ही क्योँ ग्इ ये सवाल हर मनुष्य के दिलो दिमाग को झकझोर कर रख देता है 
दोस्तों हम अपने पूर्वजों से जाने या इतिहास के पन्नो को खंगालने की कोशिश करें तो हम पाते है की आज के वर्तमान समय की अपेक्षा पहले समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से बहूत कमजोर ओर सामाजिक रूप  से प्रताड़ित था बात उस सम्य  से सुरू होती है जब अधिकांस  लोग दो वक्त कि रोटी के लिए मोहताज रहते थे तो वो इस इस्थिती मे सादी विवाह कारण का वे में आए मेहमानों के खाने पीने कि व्यवस्था  कहाँ से जूटा पाते तो वो इस इस्थिती मे साहूकारों से कर्ज लेकर अपना कामकाज निपटा लेते कर्ज देकर साहूकार का पैसा  वसूल नहीं हो जाता तब तक उस परिवार के सदस्यों  से काम भी करवाता रहता ओर साथ मे उस परिवार की बहन बेटियों का देह  शोषण भी करता रहता कर्ज के बोझ तले दबा वो परिवार बेबसी से सबकुछ सहता ओर अपनी बेबसी पर पछताता रहता 
धीरे धीरे समाज थोडा आर्थिक रूप से मजबूत होने लगा ओर साहूकारों  से कर्ज लिए बगैर अपना काम चलाने लगा ओर साहूकारों कि बुरी नजर ओर घटिया सोच को दूदकार ने लगा तो साहूकरो ने सोचा फिर से समाज को अपने कर्ज मे ङूबोकर उसी तरहां  शोषण कैसे किया जा सकता है तो साहूकारों यानी पूंजीपतियों ने सोची समझी योजना से दहेज प्रथा ओर मर्तयू भोज कि परम्परा को जन्म दिया ओर धीरे धीरे पूरे समाज पर थोप दिया क्यो कि साहूकार जानते थे कि ईस फालतू खर्च को उठाने मे अधिकांस लोग असमर्थ हैं ओर हमे इन परम्पराओ से कोइ फर्क नहि पडेगा  अगर ये परम्परा यानी रितीरिवाज बनादिजाए तो  समाज के सभी लोग करने को मजबूर हो जाएंगे ओर फिर मजबूरन हमसे कर्ज लेंगे ओर फिर से हम गुलाम बनाकर  शोषण करने में कामयाब हो जाएंगे 
ओर वर्तमान समय में भी इन बेहूदा परम्पराओ के कारण अधिकांश परिवार वो का शोषण होता रहा है
दोस्तों हम सुनते ओर देखते हैं बहूत से लोग दहेज प्रथा का विरोध तो करते हैं लेकिन यह बोलकर सब लेलेते है की मांग कर हम लेंगे नही अगर समधि अपनी मर्जी से अपनी बेटी को कुछ देगा तो हम मना नहि करेगे चाहे सामने वाले कि हैसियत बारात को खाना खिला ने कि ही ना हो दोस्तो एसा सुनकर बेटी वाला कुछ देता है ओर लङके वाला लेता है तो मै तो उसे दहेज का लालची कहूँ गा आप अपनी राय कामेट कर जरूर बताएंगा
मै एसा बोलने वाले को दहेज का लालसी इस लिए कहूँग  क्यों की हम सभी जानते है जीसतरहा हमारे समाज मे झाङ फूंक टोना टोटका अंधविश्वास पाखण्ड दिलो दिमाग मे सदस्यों से भरा हुआ है सबकुछ जानते हुए भी कि इसका कोई फायदा नहीं है फिरभी समाज के बहूत से लोग छोड़ नहीं  पाते अगर कुछेक लोग छोड़ ना चाहे तो समाज के बहूत से लोग पिछे पङ कर छोड़ ने नहि देते इसप्रकार दहेज प्रथा भी सदियों से लोगों के दिलो दिमाग भरीं पड़ी हैं जीसे कोई निकालना चाहे तो समाज के लोग निकाल ने नहि देते इसप्रकार दहेज अगर आप दहेज को अभिशप कि नजर से देखते है तो इसका पूर्ण रूप से बायकाट करे ओर एक हँसते खेलते परिवार को बर्बाद होने से बचाने का प्रयास करें 
दोस्तों कूछ लोग समाज में ऐसा कहने वाले भी होते है कि बेटी बाप के बहूत कमाती है क्या हूआ लाख दो लाख रुपये खर्च कर दिए तो मै एसा सोच ने वालों के लिए भी अपने विचार व्यक्त कर ना चाहता  हूँ जब बेटी बाप के यहाँ कमाती है तो क्या एक बाप अपनी जवान बेटी से मजदूरी करवाता है जी नहि एक बाप चाहे कितना भी बेबस क्यो ना हो मेरे ख्याल से अपनी जवान बेटी से मजदूरी करवाने से बेहतर खूदका मर जाना मुनासिब समझता है एक बाप अपनी जवान बेटी से कभी मजदूरी हि करवाता तो बेटी बाप के यहाँ कितना कमादेती होगी जिसमे बेटियों के लालन पालन का खर्च ओङने पहनने का खर्च पढाई लिखाई का खर्च एक बाप दील खोलकर ये सब खर्च करता तो मेरे ख्याल से लोगों की अवधारणा निराधार है की बेटि बाप के यहाँ बहोत धन कमाती है हा ज्यादातर लोग बेटी से खेती का काम तक नहि करवाते बेटी बस अपने बाप के यहाँ घरेलू कामकाज ही कराती है
अगर आप एसा सोचकर दहेज लेते हैं की बेटि ने बापकै बहोत कमाया है लाख दो लाख रुपये खर्च करने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो मेरी ईन बातो पर गोर करना आपका बेटा दिनरात कमाता है चाहे एक रूपया या लाख रुपये ईस पर लङके ससुराल वालों का अधिकार होता है या आपका, आपका हि होता है ना क्यों की बेटे को पाल पोसकर बडा आपने किया है जन्मा भी आपलोगों ने तो उस पर अधिकार भी आपका हि होता है तो उसि परकार बेटी की कमाई पर बेटि के मात पिता का हि अधिकार होना चाहिए ओर ये जायज भी है
अगर हम एसा नहि करते हमे एसा बोलने  से सरम आनी चाहिए कि क्या फर्क पङता है बाप बेटी कि सादी मे दान दहेज के लाख दो लाख रुपये खर्च करता है तो एक पूंजी पती या सरकारी कर्मचारी को तो साएद कोई  फर्क नहीं पड़ता लेकीन एक खेती हर मजदूर का तो सबकुछ दाव पर लग जाता है  बेटी भी ओर घर जमीन भी दोस्तों हमे सोचना चाहिए की हम कितना बङा अपराध कर रहे हैं दान दहेज लेकर ओर बेटी के घर हैसियत से ज्यादा बारात लेजाकर
हमने देखा ओर सूना भी है की सबसे बङा पाप ओर निच कर्म है किसी कि मेहनत का कमाया छिनना ओर खाना दोस्तों हमे एकबार सोचना चाहिए ईस विषय मे की हम बारात के नाम से किसी की मेहनत का कमाया हूआ अन्न खाकर पापा तो नहि कमा रहे किसी की मेहनत की कमाई को दान दहेज के नाम से लेकर पाप के भोगी तो नही हो रहे दोस्तों एक मजबूर एक किसान पूरा दीन सूबहा  से लेकर साम तक चिल चिला ती धूप मे पचता है मेहनत करता है  खून पसीना बहाता तब जाकर तीन सौ चार सौ रुपये कमा पाता है एकबार विचार  करो लाख दो लाख रुपये खर्च होते है  तो एक मजदूर के कितने दीन का खून पसिना होता है उस खून पसीने को एक झूठी पाखण्डी भूरि परम्परा यानी दान दहेज की आङमे आप ले ले ते हो ओर अज्ञानता वस पापियों  की श्रेणी मे आजाते हो
 जो लोग मांग कर दहेज लेते है वो लोग महा पापियों ओर बेशर्मो की  श्रेणी मे आते हैं ओर उनका अन्तिम समय तिरा तीरा करके भारी कष्टों मे गुजरता है
दोस्तो कुदरत  ने हर इनसान को दो हाथ ओर दो पैर दिए है ताकी वो कमाकर खा सके कूछेक इनसान एसे होते है जिन्हे कुदरत ने ना हाथ दिए हैं ओर ना पांव वो इनसान पूर्ण रूप से दूसरे पर निर्भर होते है ओर मांग कर खाते है पर मांगने मे उन्हें भी सरम आती है बल्कि कुदरत ने उन्हे बनाया हि मांग कर खाने के लिए फिरभी वो मांग कर लेना नहि चाहते पर मजबूरन मांग कर खाना पङता है
तो सवाल ये उठता है क्या आप उस अपाहिज या यूँ कहे कुदरत के मारे हूए ईनसान से भी कमजोर है जो मांग कर  लेना पसंद करते है
या तूम धापकर बेशर्म हो जो कुदरत का सबकुछ दिया हूआ है फिरभी दहेज की आङमे मांग रहे हो ये सबसे बडा पाप है 
ईस पाप से बचने के लिए आत्म मंथन करना होगा अपने अन्दर कि आत्मा की आवाज सुनकर अपने स्वाभिमान को जागाना होगा ओर दहेज का पूर्ण रूप से बायकाट कर समाज को दहेज मुक्त बनाना होगा 


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