मात पिता भगवान तेरे फिर क्यों मंदिर मे झाँक रहा
देवी रूप तेरी जननी मॉ फिर क्यों पत्थर मुर्त ताक रहा
जन्म दीया तेरी मॉ ने, पाल पोस कर पिता तेरे ने बड़ा किया
वाह रे इन्सान समझ नही फिर पत्थर को क्यों सम्मान दीया
जिसने जन्मा जिसने पाला क्यों उसका अपमान किया
मंदिर मे चला चढ़ाने भोग तु छप्पन मात पिता को सुख से निवाला
एक भी तुने नही दीया
वाह रे इन्सान समझ नही फिर पत्थर को क्यों सम्मान दिया
ख़ूब खिलाया ख़ूब पिलाया जब तू न्नहा बच्चा था
मात पिता ने ख़ूब संजोया हर वो सपना उन कि नज़र मे पक्का था
जब बुडे हो गये मात पिता हर सपना उनका टूट गया
प्यारी लगी अब नार जो तुझको अब तुं जो उनसे रूठ गया
भुल गया भगवान असल के अब तु पाखण्ड मे जो उलझ गया
वाह रे इन्सान समझ नही फिर पत्थर को क्यों सम्मान दिया
लाखों ढगाए वर्त मे तुने लाखों का क्यों हवन किया
क्या फ़ायदा इस पाखण्ड का जब असल भग्वान को तुने ठूकरा दिया
कभी गीता कभी वेद पुराण कभी मनु का तुने पाठ किया
मात पिता चाहे भूखे प्यासे उनका क्यो ना ध्यान किया
रामरत्न सुडा ध्यान करो भगवान तेरे हैं मात पिता अब उनका सम्मान करो
पत्थर तो पत्थर है होता अब ना तुम अंधविश्वास करो
पत्थर तो पत्थर है होता अब ना तुम अंधविश्वास करो
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