ज्यादा हवा भर देने से भी अक्सर गुब्बारे फूट जाया करते हैं
दोलत नही आती है कोई काम साहेब जब साथ अपनों से छूट
जाया करते है
जिन्दगी लगने लगती है मोत से बेहतर अक्सर जब अपने रूठ
जाया करते हैं
न्याल्यो मे जज भी जिस कलम से लिखते है सजा मोत की
लिख कर सजा ए मोत अक्सर कलम को तोड दीया करते है
हम जय भीम वालोँ पर होते हैं जूल्म साएद ईस लिए की हम भी गुनहगार को अक्सर सुधरने का मोका देकर छोङ दिया करते है
हम भीमराव को मानने वाले अब डरे हमारी कोम नही
सहते आए जूल्म सदियों से सहेगे अब हम ओर नही
दीए हमे सब अधिकार भीम ने चले तेरा अब जोर नहीं
मत छेडो अब निली पगड़ी पङवा लोगे चोट नही
लगालो बेसक तीलक तूम लम्बा बेसक हवन जलालो तूम
बेसक कर लो टोने टोटके बेसक भ्रम फलालो तूम
पर अब नही बहूजन बहके गा चाहे अब लम्बी चोट कटवालो तूम
सूना है मंदीर मे अक्सर भग्वान बसा करते है
पर समझ नही उस वक्त कहां चले जते है
जब एक बेबस चीख चीख कर रहम की भीख मांगा करते है
सूनलेते है सूर मे गाए वो हर भज्न को पर बतानही क्यो
एक बेबस की बेबसी की चिखं भग्वान क्यो सून नही पाते है
एक दर्द था मेरे सिने मे ओर वो दर्द आज भी है
जो एहसासं नही होने देता कभी अपने होने का
एसा मेरा एक समाज भी है ,साएद नींद मे सोया है
मेरा समाज तभी तो, ना कूछ लोग भी तोड रहे हैं मेरे अधिकार
वर्ना किसकी क्या मजाल जो आख भी उठा सके मेरे अधिकारो
की तर्अफ अच्छे अच्छो की मिटा दे हस्तियां मेरे समाज के सीने मे
दफन वो आग भी तो है
दोलत नही आती है कोई काम साहेब जब साथ अपनों से छूट
जाया करते है
जिन्दगी लगने लगती है मोत से बेहतर अक्सर जब अपने रूठ
जाया करते हैं
न्याल्यो मे जज भी जिस कलम से लिखते है सजा मोत की
लिख कर सजा ए मोत अक्सर कलम को तोड दीया करते है
हम जय भीम वालोँ पर होते हैं जूल्म साएद ईस लिए की हम भी गुनहगार को अक्सर सुधरने का मोका देकर छोङ दिया करते है
हम भीमराव को मानने वाले अब डरे हमारी कोम नही
सहते आए जूल्म सदियों से सहेगे अब हम ओर नही
दीए हमे सब अधिकार भीम ने चले तेरा अब जोर नहीं
मत छेडो अब निली पगड़ी पङवा लोगे चोट नही
लगालो बेसक तीलक तूम लम्बा बेसक हवन जलालो तूम
बेसक कर लो टोने टोटके बेसक भ्रम फलालो तूम
पर अब नही बहूजन बहके गा चाहे अब लम्बी चोट कटवालो तूम
सूना है मंदीर मे अक्सर भग्वान बसा करते है
पर समझ नही उस वक्त कहां चले जते है
जब एक बेबस चीख चीख कर रहम की भीख मांगा करते है
सूनलेते है सूर मे गाए वो हर भज्न को पर बतानही क्यो
एक बेबस की बेबसी की चिखं भग्वान क्यो सून नही पाते है
एक दर्द था मेरे सिने मे ओर वो दर्द आज भी है
जो एहसासं नही होने देता कभी अपने होने का
एसा मेरा एक समाज भी है ,साएद नींद मे सोया है
मेरा समाज तभी तो, ना कूछ लोग भी तोड रहे हैं मेरे अधिकार
वर्ना किसकी क्या मजाल जो आख भी उठा सके मेरे अधिकारो
की तर्अफ अच्छे अच्छो की मिटा दे हस्तियां मेरे समाज के सीने मे
दफन वो आग भी तो है
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