रविवार, 22 मार्च 2020

भग्वान के मंदीर मे हूआ चम्तकार जो आपकी आँखे खोलदे ऐसी सटोरी

नमस्कार दोस्तो कैसे हैं आप सब ,दोस्तो मै आप का दोस्त रामरत्तन सूडा आप पढ रहे हैं sawtanter aawaj. Com  दोस्तो ओर अधिक  कविताएँ स्टोरी सबसे पहले पाने केलिए पेज को फोलो करें, यर व कोमेट  करे 

कूछ सम्य पहले की बात है मै ओर मेरा दोस्त किसी काम से घर से बाहर सहर मे मकान लेकर रहते थे मेरा दोस्त एक्सट्रा खर्च के पैसे ईक्ट्ढे करता ओर पेङ पोधे लगा देता क ई बच्चो की स्कूल की फिस भर देता ओर मै पूजा पढ केलिए धूप बत्ती खरीद लाता हमारे कमरे से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर  एक मंदिर था मंदिर के रासते सूबह साम लोगो की लाइन लगी रहती एक दीन मेरे मन मे ख्याल आया  ईतने  लोग आते रहते हैं  यहा पूजा करने कूछ तो चमत्कार है ईस मंदिर मे  तभी यहा धोक  लगाने ईतने लोग आते है घंटो खङा रहें तब जाकर नम्बर आता है धोक लगाने का ,ओर लोग खङे रहकर लाईनो मे धोक लगाकर जाते है ,कोईना कोई दिव्य सक्ति  है ईस मन्दिर मे जो  ईनलोगो की मनो कमना पूरि करती होगी तभी तो ये लोग लडू पेङे घि दूध धन दोलत चढा चढा कर जाते हैं
मैने  सोचा क्यो नै हम भी धोक लगाएं इस मंदिर मे तो हमारा काम भी खूब  चलने  गजाऐ यह सोच कर मैने मंदिर जाने का विचार अपने  दोस्त के  सामने रखा क्यो की वो सूबह साम हाथ जोङ कर पन्द्रह बीस मिनट रोज रोज मंत्र सा बोलता रहता था की हे प्रक्रती मुझे स्मरण सक्ति दे कि मुझे हर पल तेरा ख्याल रहे ओर मै तेरा कभी नुक्सान ना करू ,ओर मुझे भी एसा बोलने केलिए रोज कहता पर मै उसकी बातों पे ध्यान न देकर मेरे पास भगवान की एक फोटो थी उस पे दिवा बत्ती कर देता  तो मैने सोचा सायद मंदिर जाने की कहूँगा तो दोस्त पक्का त्यार हो ही जाएगा लेकीन मै जैसा सोच रहा था एसा कूछ नही हूआ उलटा मुझे डांटने लगा की भक्ति मन की होती है मंदिर तो दूकान बना रखी है इन लोगो ने मंदिर मे भग्वान नही पाखण्डी रहते है पाखण्डी यह सुनकर मुझे गुस्सा आने लगा ओर मैने कह दीया यहा सूबहा साम लाखो लोग आते है क्या सब पागल है जो यहा आते है फिर वो बस इतना बोलकर अन्दर चला गया की मै बह्स नहीं करना चाहता ,बस इतना याद रखना ये सभी लोग जैसे तूम्हारा मन कर रहा है ना ईन को जाते देख वैसे ही एक एक कर ईतने लोग जमा होने लग ग ए पर मै नही माना ,ओर मंदिर जाना सुरू कर दीया ओर
सूबह साम हर रोज मंदिर मे भग्वान के दर्षन के लिए जाता मंदीर मे गाँव के ओर भी बहोत लोग दर्षन के लिए आते मंदिर मे भग्वान के दर्षन करते ओर बाहर खङे हो जाते  ओर बाते करने लग जाते ओर टहल ते एक दूसरे को देख जोगीगं करने लगजाते कोई कहता मेरा यहा धोकलगाने से मोटापा घटगया तो कोई कहता मूझे नोकरी लग गंइ कोइ कहता मेरी ये बिमारी मीट ग ई तो कोई कहता भूझे लडका होगया ईसतह हर रोज कोई न  कोई चमत्कार सुनने को मिल जाता ये सब सून सूना कर धीरे धीरे मै भग्वान की भक्ति मे पूर्ण रूप से लिन होगया ओर खूब पैसे खर्च करता ओर पूजा पाठ करता ओर मंदिर मे खूब दान दक्षिणा देता एकदीन मै बिमार पङगया तो मैने सोचा अन्जाने में  मुझसे कोई पाप होग्या होगा साएद भगवान उसकी सजा मुझे दे रहे है यह सोच मै पुजारी जी के पास गया तो पुजारी जीने मुझे पांच हजार रूपये मंदिर मे दान ओर एक भण्डारा ओर जागरण लगाने को कहा ओर आश्वासन दीया की तूम ठिक हो जाओगे मैने पुजारी के कहे अनुसर काम कर दीया मै भण्डारे ओर जागरण की तैयारियों  मे लगा होने के कारण पन्द्रह बीस दीन मै मंदिर नही जा पाया ओर भण्डारा पूरा किया तब तक मै एकदम स्वस्थ होगया अब मुझे पूरा विश्वास होगया था की इस मंदिर मे कोई दिव्य सक्ति है ओर मै अब पहले की अपेक्षा ज्यादा समय मंदिर मे धोक पूजा करने लगा आसपास चर्चा होने लगी की फलाणा आदमी भण्डारा ओर जागरण लगाने से ठीक होगया यह सुनकर दूर दूर से लोग ओर आने लगे दो तीन महीने बाद में फिर से बिमार पड गया पुजारी जी ने बङा यज्ञ करने को कहा जिसमें पन्द्रह बीस हजार रुपये का खर्च होगा ओर मुझे दिनरात यज्ञ के पस ही रहना पड़ेगा मेने हा करदी ओर पुजारी जी ने बङा यज्ञ सूरू कर दीया यज्ञ को चलते हुए दस पंद्रह दीन हो ग ऐ लेकीन मेरी तबियत में कोई सुधार नजर नही आया मेरी तबियत दीन प्रती दीन ओर ज्यादा बिगड़ने लगी ओर पुजारी जी यज्ञ किए जा रहे थे एक दो दीन बाद मेरी हालत एसी लगने लगी मानो रात निकले तो दीन निकालना मूसकील हो मेरी हालत देख मेरे दोस्त ने मुझे डोक्टर के पास लेजाने की गुहार लगाई  लेकीन पुजारी जी मानने को तैयार नहीं थे मेरे दोस्त ने जबरन मुझे डोक्टर के पास साफ्ट किया डोक्टर ने जांच की तो पता चला धूप बत्ती के धूऐ से फेफडों मे ईम्फेकसन होगया है एक घटा लेट ओर कर देते तो सायद ही हम इसे बचा पाते कूछ महिनो दवाई खाने के बाद मै स्वस्थ होगया तब जाकर मुझे समझ आया दोस्त संहिथा ओर मै गलत मेरे दोस्त के लगाए हूऐ पेङो की छाँव मे हजारो प्राणी आन्द ले रहे थे ओर उसके आर्थिक  सहयोग से क ई बच्चे कोई डोक्टर कोई ईजंनयर कोई वैग्यानिक बन कर देश के विकास मे अपना योगदान दे रहे  थे ओर मेरे मंदिर मे दान दिए पैसों से पुजारी गाजा  सूलफा फूूंक रहा था ओर मैगी मगेहगी गाङियो मे घूम घूम घूम कर अंधविश्वास फैला रहाथा मुझे अब छसमझ आया वो वहा लोग चमत्कार की बात करते थे वो असल मे किसी को सफलता मिली वो उसकी मेहनत ओर लगन का प्रीणाम था न की अंधभक्ति का


दोस्तो यह स्टोरी पूर्ण रूपसे कालपनिक ह ओर यह अंधविश्वास से पर्दा हटाने के उद्देश्य से बनाई गई है किसी  की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए नहीँ कसी  की भावना को ठेस पहुंचे तो लेखक कि ओर से  क्षमा  धन्यवाद 

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