कहा गइ वो गाँवों की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
कच्चे घरों की कच्ची बस्ती पर दिलों मे ताज संजोया था
बहन बेटी की इज़्ज़त को उन लोगों ने सरताज बनाया था
कहा गई वो गाँवों की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
मिल जुलकर चलना वो सबका बच्चों का खेल था टोली का
कभी कुस्ती कभी कब्बडी कभी खेल वो अॉख मिचोली का
कहा गया वो टीका जो होता था बच्चों के नज़र बचाने का
कभी काजल का कभी कुम कुम कभी किया करें थे रोली का
नही रहा वो नज़राना जो बाबुल के कंधे दिखाते थे
कहा गए वो हल जुएँ जो उँट ओर बैल चलाते थे
नही रहा वो साज बाज़ बडे बुजूर्ग जो गाते थे
नही थे आज के मेवे मीठाई फिर भी पकवान बनाते थे
मिट्टी की हॉडी मे बना बाकली वो मील बँटकर खाते थे
नही करते थे मदिरा सेवन फिर भी पार्टी मनाते थे
हस्ट पुस्ट थे सेहत मंद वो नही डब्बों की प्रोटीन खाते थे
हर जीव से प्यार था दील मे ना मुर्ग़ा तीतर खाते थे
ना पराए धन की आस थी दील मे ना अरबों कमाने का था सपना
हर एक नीवाला खाया था वो जो खुन पसीने से कमाया हो अपना
कहा गई वो गॉवो की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
हर एक तिनका लगा वो जो खुन पसीने से कमाया था
हर एक घोंसला आपस मे मील जुलकर संजोया है
रामरत्न सुडा लिखे कवीताई हर दील मे प्यार संजोया था
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