रविवार, 1 मार्च 2020

कहॉ गई वो गाँव की बस्ती जीसमें प्यार समाया था

कहा गइ वो गाँवों की बस्ती जिसमें प्यार समाया था 
कच्चे घरों की कच्ची बस्ती पर दिलों मे ताज संजोया था

बहन बेटी की इज़्ज़त को उन लोगों ने सरताज बनाया था
कहा गई वो गाँवों की बस्ती जिसमें प्यार समाया था

मिल जुलकर चलना वो सबका बच्चों का खेल था टोली का
कभी कुस्ती कभी कब्बडी कभी खेल वो अॉख मिचोली का

कहा गया वो टीका जो होता था बच्चों के नज़र बचाने का
कभी काजल का कभी कुम कुम कभी किया करें थे रोली का

नही रहा वो नज़राना जो बाबुल के कंधे दिखाते थे
कहा गए वो हल जुएँ जो उँट ओर बैल चलाते थे 

नही रहा वो साज बाज़ बडे बुजूर्ग जो गाते थे 
नही थे आज के मेवे मीठाई फिर भी पकवान बनाते थे 

मिट्टी की हॉडी मे बना बाकली वो मील बँटकर खाते थे
नही करते थे मदिरा सेवन फिर भी पार्टी मनाते थे

हस्ट पुस्ट थे सेहत मंद वो नही डब्बों की प्रोटीन खाते थे
हर जीव से प्यार था दील मे ना मुर्ग़ा तीतर खाते थे

ना पराए धन की आस थी दील मे ना अरबों कमाने का था सपना 
हर एक नीवाला खाया था वो जो खुन पसीने से कमाया हो अपना 

कहा गई वो गॉवो की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
हर एक तिनका लगा वो जो खुन पसीने से कमाया था 

हर एक घोंसला आपस मे मील जुलकर संजोया है
रामरत्न सुडा लिखे कवीताई हर दील मे प्यार संजोया था



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