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मंगलवार, 31 मार्च 2020
ऐक गरिब कि अमीर को ललकार देने वालि कविता
तूम धनवान हो तो क्या हूआ सड़को पे तो मै भी नही, तू सोता होगा महलों मे बेसक, मेरे महल नही तो क्या हूआ सर पे बगेर छत के तो मै भी नही
सोमवार, 30 मार्च 2020
मेरे कूछ दर्दनाक पल
उन दीनों की बात है जब मै बारहवी कक्षा में पढा करता था मेरी क्लास के ही रमेस नामके लङके से दोस्ती होगंइ रमेस पढाई लिखाई मे बहोत ही होशियार था रमेस दो बहनो के बीच रमेस ईक्लोता भाई था रमेस के माता पिता एकदम सान्त स्वभाव के व दिल के धनी व्यक्तित्व वाले थे रमेस के जिद्द करने पर अक्सर मै रमेस के साथ उनके घर चला जाता था दो-चार बार आने जाने ओर रमेस के माता पिता को भी मुझसे लगाव सा होगया था ओर मूझे भी उनसे बाते करना बहोत अच्छा लगता रमेस पढाई लिखाई के साथ खेती बाडी के कामकाज मे माता पिता का हाथ भी बटाता रमेस के माता पिता रमेस की बहनों कमला बोला से घर का या खेती बाडी का कोई काम नही करवाते कमला बिमाला भी पढाई लिखाई मे रमेस से कोई कम नही थी इसीलिए रमेस भी यही चाहता था की कमला बिमला बस पढाई लिखाई करे ओर कोई काम न करे रमेस का परीवार आर्थिक रूप से कमजोर था क्योकि रमेस के घर मे बस खेती बाडी के अलावा और कोई आर्थिक विकल्प नही था ओर खेती बाडी मे इतनी अच्छी पैदा भी नहीं हो ती थी साथ में तीन तीन बहन भाई यो के पढाई लिखाई का खर्च लेकीन रमेस के माता पिता कूछ भी करके रमेस को ओर कमला बिमला को कामयाब बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने मे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते थे रमेस क्लास मे हमेशा फस्ट आता ओर मै सबसे लास्ट मै लास्ट आता तो मेरी क्लास के ओर लडके मेरे बारे मे कूछ उलटा सिधा बोलकर रमेश को चीङाते मेरे बारे एसा वैसा सुनकर रमेश को गुस्सा तो बहुत आता पर करता भी क्या ये तो सच था मै था ही निकम्मा एक दीन रमेश ने तग आकर मुझे सब कह सुनाया क्लास के ओर लडके तेरे बारे मे क्या क्या भला बुरा कहकर मूझे चीङाते रहते है मैने सोचा साएद अब रमेश मुझ से ज्यादा दीन दोस्ती नही रखेगा मै पढाई लिखाई में कमजोर हू ओर रमेश होशियार जो है रमेश अब कीसी क्लास के खुद के जैसे होशियार लङके से दोस्ती करेगा लेकीन रमेश नै मूझसे दोस्ती तोङने के बजाए मूझे पढाई लिखाई पर ध्यान देने के लिए दबाव बनाने लगा ओर मै रमेश के साथ रहने केलिए कूछ भी करने को तैयार था अब रमेश मूझे सवाल समझता ओर अपने साथ ही पढने को बोलता रमेश के बताए हर सवाल मेरे दीमाग मे कम्पयूटर की तरहां फीड हो जाते ओर मेरा पढने को मन भी करता कूछ दीनों बाद हमारा मासिक टैस्ट लीया गया तो उसमें रमेश फस्ट ओर मै क्लास में सेकेण्ड नम्बर पर आया क्लास के सभी लङके लड़कियो यहा तक की गुरूजनों तक अफसोस होगया की एक सबसे कमजोर लङका अचानक से इतना होशियार कैसे होगया जब स्कूल प्रबंधक को ये बात पता चली तो रमेश को मासिक वेतन पर स्कूल के ओर बच्चों को पढाने तक का ओफर कर दीया अब मेरा भी पढाई मे पूरा मन लगने लगा था ओर मासिक टैस्ट में कभी फस्ट तो कभी सेकेण्ड आता मूझे अब लगने लगा था मै भी कामयाब हो जाऊंगा, मूझे अब पढने मे मजा आने लगा था जब हमारे फाइनल अग्जाम का रिजल्ट आया तो क्लास मे रमेश फस्ट ओर मै सेकेण्ड आया मै खुसी से झूमने लेकिन जब मैने देखा तो मुझे रमेश कही दिखाइ नही दीया मूझे रमेश पर गुस्सा आने लगा रमेश रिजल्ट सुनने जो नही आया मै मन ही मन मे रमेश पर गुस्सा होरहा था ओर साथ ही मन मे विचार कर रहा था आज रमेश रिजल्ट सुनने आता तो कितना अच्छा होता दोनो दोस्त खूब ईज्वाय करते एसे विचार करते करतें मै वापस घर पहुँच गया दो तीन दीन बाद मे मैने रमेश के घर जाकर रमेश से मिलने का विचार कर मै रमेश के घर चलागया रमेश हतास उदास सा सामने ही खटिया पर बढ कूछ चिंतन कर रहा था मै जैसे ही रमेश के पास गया रमेश की आँखे नम होगंइ ओर मूझे अपनी कतर निगाहों से देखता हूआ रो कर मेरे गले लग गया क इ बार तक गले मिलते रहे ओर फीर मै ओर रमेश उसी खटिया पर बैठ गए मै रमेश ने जो मूझे योगदान दीया मै उसका आभार व्यक्त करता रहा लेकीन रमेस कूछ भी ज्वाब नही दे रहा था तो मैने रमेश को कूछ एसा वैसा कहदीया लेकीन रमेश नै अपने मूह से एक भी लफ्ज़ नही निकाला मै नही जान पाया था की रमेश की आखीर परेसानी क्या है कूछ देर बद मैने रमेश से अंकल के बारे मे पूछा तो रमेश फूट फूट कर रोने लगा जब रमेस को रोते देखा तो मेरे मन मे बूरे बूरे विचार आने लगे ओर मै डर सा गया ओर बाद मे पता चला मेरे दीमाग मे जो विचार आए कूछ एसा ही होगया रमेश के पिताजी की किसी लम्बी बीमारी ने जान ले ली रमेश का सर से सहारा छीनगया मेरा दोस्त लाचार हो चूका था मै भी उसकी कूछ मदद करता तो मै भी बेरोजगार था मैने रमेश को दिलासा दीया आपकी पढाई हम रूकने नही देंगे एक ना एक दीन अंकल के सपने को साकार करने का फैसला कर मै घर आगया ओर अगले कूछ पैसे घरवालों से लेकर ओर कूछ साल इधर उधर से फीस जूटाकर रमेश का एडमिन बीए मे ओर मैने आई टी आई मे दाखिला ले लीया रमेश पास ही के सहर मे बीए करने लगा ओर मै दूर के सहर मे आई टी आई करने लगा हम दोनो ने आपसी सहयोग से डिग्री ले ली अब रमेश बीएड करना चाहता था ओर मेरी भी यही ख्वाईश थी की रमेश टीचर बने ओर मेरी तरहां ओर बच्चों का भी जीवन सँवारे कूछ समय बाद मेरा कीसी लिमिटेड कम्पनी मे ज्वाईन होगया ओर मै रमेश से बीएड की फिस ओर पूरा खर्च उठाने का वादा कर कम्पनी ज्वाइन करने चला गया कम्पनी मे मूझे एकदम आराम दायक काम मिला ओर उसकी देन रमेश था बस अब मेरा लक्ष्य रमेश को टीचर बना था उसने मेरी जिंदगी तो सवार दी अब मै भी उसकी जीन्दगी को स्वार देना चहता था दो तीन महीने काम करने के बाद बस मूझे बीएड के फार्म निकलने का इन्तजार था जैसे ही फार्म निकले मै कम्पनी से तन्ख्वाह लेकर जल्द से छुट्टी लेकर रमेश के घर की ओर निकल गया रमेस के घर पहूंचा तो देखा रमेश के घर मातम पसरा था रमेश की किसी एक्सीडेंट मे मोत हो चुकी थी मूझे पता चलते ही मेरा सरीर एकदम सून सा पड गया ओर मै बेहोश होकर जमिन पे गीर गया कूछ लोगों ने मूझे होस्पिटल पहूंचा या मूझे होस आया तो मै खुद को संभालते हुए वापस रमेस के घर चला गया वहां कूछ लोग क्लेम का जिक्र कररहेथे तो रमेश की माने साफ मना कर दीया रमेश की मोत के पैसे लेने से लोगों के लाख समझाने पर भी रमेस की माने पैसे लेने से हानही की उस मंजर के बाद मैने भी कम्पनी छोङदी मेरा दिल बहोत हतास हो चूका था क्योकी मेरी जिंदगी को सवारने वाला मेरा दोस्त इस दूनियाँ मे नही रहा मैने भविष्य की नही सोची ओर कम्पनी को रिजाइन देदीया कम्पनी ने मूझे बहोत खत भेजे आ जाओ अभी भी हम आपको फिर से ज्वाइन करने को त्यार है क्योकी रमेस ने मेरे दीमाग मे कम्पयूटर की तरहां ङाङा फीड करने की ताकत को जगा दीया था लेकीन मैने कम्पनी के ओफर को नही स्वीकारा ओर कम्सापनी मे जाने से साफ इन्कार कर दीया आज मै खूूूदको माफ नही कर पाया मै रमेश का मै जिन्दगीं भर नही चूका सक्ता रमेश की दोनो बहने सादी के लायक होगंइ ओर सादी की त्यारीया होगंइ पर मै बेरोजगार कमला बिमला की सादी मे दैहिक सहयोग अलावा एक रूपए का भी आर्थिक सहयोग नही कर पा रहा रमेश की आत्मा मूझे कोस रही होगी की मूझे कम्पनी नही छोडनी चाहिए थी कमला बिमला की सादी मे मूझे रमेश की कमी का एहसास ही नही होने देना था
बाबा साहेब ज्यन्ति 14 अप्रेल को संदेश जो देश ओर समाज को परिव्रतन की ओर लेजाए
नमस्कार दोस्तो कैसे हैं आप सब ,दोस्तो मै आप का दोस्त रामरत्तन सूडा आप पढ रहे हैं sawtanter aawaj. Com
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
हर घर मे जलाए दीपक हर घर को रोसन कर दे
मिलाकर कदम से कदम 14 अप्रेल की रात को दीन मे बदल दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को एक नया आयाम दे
ना जलाना पटाखे ओर फूलझङीया हर मीसनरी को यह पैगाम दे
आओ हम सब मिलकर पोल्यूसन को मात दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
नही उठायेंगे रंग ओर गुलाल इन्ही पैसो से कीसी जरूरत मंद को
जरूरत का सामान दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
ना लाए ङीजे ओर ढोल नगाङे इन्ही पैसों से लाचार मासूम को
कापी ओर पैन दे बाबा साहेब के सपने को मिले गी एक नईं दीया
इस बार बाबा साहेब की जयन्ती पर हम नसे पते की बुरी आदते सब छोङ दे बचाए कूछ पैसा ओर कीसी लाचार की लाचारी मिटाने मे उसको आर्थिक सहयोग दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
हर घर पे जलाए दीपक हर घर को रोसन बना दे
जीन झोपड़ियों मे था सदियों से अँधेरा फिजूल खर्ची बचाकर उन झोपड़ियों को भी रोसन कर देने का इस महान शक्सियत के जन्म उपलक्ष मे हम सब मिलकर ये प्रण ले
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
मनाए खुसया अपने अपनो के संग आओ मिलकर हम सब बोद्ध धम स्वीकार ले नही माने गे कभी पाखण्ड को आओ हम सब मिलकर ईन पाखण्डी रसमो रिवाजों को त्याग दे हम रखे गें भरोसा विग्यान पे आरो को भी ये आह्वान दे
आओ हम सब मिलकर बाबा साहेब की ज्यन्ति अबकी बार कूछ नया कर दे 14 अप्रेल की रात को दीन मे बदल दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
हर घर मे जलाए दीपक हर घर को रोसन कर दे
मिलाकर कदम से कदम 14 अप्रेल की रात को दीन मे बदल दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को एक नया आयाम दे
ना जलाना पटाखे ओर फूलझङीया हर मीसनरी को यह पैगाम दे
आओ हम सब मिलकर पोल्यूसन को मात दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
नही उठायेंगे रंग ओर गुलाल इन्ही पैसो से कीसी जरूरत मंद को
जरूरत का सामान दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
ना लाए ङीजे ओर ढोल नगाङे इन्ही पैसों से लाचार मासूम को
कापी ओर पैन दे बाबा साहेब के सपने को मिले गी एक नईं दीया
इस बार बाबा साहेब की जयन्ती पर हम नसे पते की बुरी आदते सब छोङ दे बचाए कूछ पैसा ओर कीसी लाचार की लाचारी मिटाने मे उसको आर्थिक सहयोग दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
हर घर पे जलाए दीपक हर घर को रोसन बना दे
जीन झोपड़ियों मे था सदियों से अँधेरा फिजूल खर्ची बचाकर उन झोपड़ियों को भी रोसन कर देने का इस महान शक्सियत के जन्म उपलक्ष मे हम सब मिलकर ये प्रण ले
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
मनाए खुसया अपने अपनो के संग आओ मिलकर हम सब बोद्ध धम स्वीकार ले नही माने गे कभी पाखण्ड को आओ हम सब मिलकर ईन पाखण्डी रसमो रिवाजों को त्याग दे हम रखे गें भरोसा विग्यान पे आरो को भी ये आह्वान दे
आओ हम सब मिलकर बाबा साहेब की ज्यन्ति अबकी बार कूछ नया कर दे 14 अप्रेल की रात को दीन मे बदल दे
रविवार, 29 मार्च 2020
प्रक्रती का कहर
सुनो इन्सानो अब अपने घरों मे ही रहो प्रक्रती ने नाराज गी जताई है
जरा सी चूक से ही मीट सकती हैं मानव सभ्यता इस धरती से, एसी महामारी छाई है
बहोत की या दोहन प्रक्रती का साएद प्रक्रती ने बदले की आग जलाई है
आज नही आए वो मंदिर,मस्जिद भी कोइ काम जिन्हे बनाने की खातिर हमने बडे बडे जगंलो की कटाई है
वो भग्वान भी पतानही गंए कहा जीनके बना ने को मंदीर हमने आपस की लडाई है
आज आहाकार मचा दूनीया मे हर इन्सानो की सामत आइ है ना देखे मजहब प्रक्रती अब होनी दूनियाँ मे तबाही है
अगर खोल ली हमने आँखे तो साएद विध्वंस बच जाए गा जो भूल के मजहब जात धर्म को गीत प्रक्रती के गाएंगे, मानव जाति से खतरा तो ही हम टालपाएगे
सोचो दिल से हे मानव ईस धरती की नजरों मे होता मजहब खास नही अगर होता मजहब का कोई मोल तो धरती पे मचता यो कोहराम नही
अभी वक्त है सुधरने का ये जो ट्रेलर देखा है ना नुक्सान करो प्रक्रती का ये मिला सुधार का मोका है नही हूआ सुधार कोई तो विध्वंस पका हैं
जरा सी चूक से ही मीट सकती हैं मानव सभ्यता इस धरती से, एसी महामारी छाई है
बहोत की या दोहन प्रक्रती का साएद प्रक्रती ने बदले की आग जलाई है
आज नही आए वो मंदिर,मस्जिद भी कोइ काम जिन्हे बनाने की खातिर हमने बडे बडे जगंलो की कटाई है
वो भग्वान भी पतानही गंए कहा जीनके बना ने को मंदीर हमने आपस की लडाई है
आज आहाकार मचा दूनीया मे हर इन्सानो की सामत आइ है ना देखे मजहब प्रक्रती अब होनी दूनियाँ मे तबाही है
अगर खोल ली हमने आँखे तो साएद विध्वंस बच जाए गा जो भूल के मजहब जात धर्म को गीत प्रक्रती के गाएंगे, मानव जाति से खतरा तो ही हम टालपाएगे
सोचो दिल से हे मानव ईस धरती की नजरों मे होता मजहब खास नही अगर होता मजहब का कोई मोल तो धरती पे मचता यो कोहराम नही
अभी वक्त है सुधरने का ये जो ट्रेलर देखा है ना नुक्सान करो प्रक्रती का ये मिला सुधार का मोका है नही हूआ सुधार कोई तो विध्वंस पका हैं
शनिवार, 28 मार्च 2020
मस्त सायरिया
ज्यादा हवा भर देने से भी अक्सर गुब्बारे फूट जाया करते हैं
दोलत नही आती है कोई काम साहेब जब साथ अपनों से छूट
जाया करते है
जिन्दगी लगने लगती है मोत से बेहतर अक्सर जब अपने रूठ
जाया करते हैं
न्याल्यो मे जज भी जिस कलम से लिखते है सजा मोत की
लिख कर सजा ए मोत अक्सर कलम को तोड दीया करते है
हम जय भीम वालोँ पर होते हैं जूल्म साएद ईस लिए की हम भी गुनहगार को अक्सर सुधरने का मोका देकर छोङ दिया करते है
हम भीमराव को मानने वाले अब डरे हमारी कोम नही
सहते आए जूल्म सदियों से सहेगे अब हम ओर नही
दीए हमे सब अधिकार भीम ने चले तेरा अब जोर नहीं
मत छेडो अब निली पगड़ी पङवा लोगे चोट नही
लगालो बेसक तीलक तूम लम्बा बेसक हवन जलालो तूम
बेसक कर लो टोने टोटके बेसक भ्रम फलालो तूम
पर अब नही बहूजन बहके गा चाहे अब लम्बी चोट कटवालो तूम
सूना है मंदीर मे अक्सर भग्वान बसा करते है
पर समझ नही उस वक्त कहां चले जते है
जब एक बेबस चीख चीख कर रहम की भीख मांगा करते है
सूनलेते है सूर मे गाए वो हर भज्न को पर बतानही क्यो
एक बेबस की बेबसी की चिखं भग्वान क्यो सून नही पाते है
एक दर्द था मेरे सिने मे ओर वो दर्द आज भी है
जो एहसासं नही होने देता कभी अपने होने का
एसा मेरा एक समाज भी है ,साएद नींद मे सोया है
मेरा समाज तभी तो, ना कूछ लोग भी तोड रहे हैं मेरे अधिकार
वर्ना किसकी क्या मजाल जो आख भी उठा सके मेरे अधिकारो
की तर्अफ अच्छे अच्छो की मिटा दे हस्तियां मेरे समाज के सीने मे
दफन वो आग भी तो है
दोलत नही आती है कोई काम साहेब जब साथ अपनों से छूट
जाया करते है
जिन्दगी लगने लगती है मोत से बेहतर अक्सर जब अपने रूठ
जाया करते हैं
न्याल्यो मे जज भी जिस कलम से लिखते है सजा मोत की
लिख कर सजा ए मोत अक्सर कलम को तोड दीया करते है
हम जय भीम वालोँ पर होते हैं जूल्म साएद ईस लिए की हम भी गुनहगार को अक्सर सुधरने का मोका देकर छोङ दिया करते है
हम भीमराव को मानने वाले अब डरे हमारी कोम नही
सहते आए जूल्म सदियों से सहेगे अब हम ओर नही
दीए हमे सब अधिकार भीम ने चले तेरा अब जोर नहीं
मत छेडो अब निली पगड़ी पङवा लोगे चोट नही
लगालो बेसक तीलक तूम लम्बा बेसक हवन जलालो तूम
बेसक कर लो टोने टोटके बेसक भ्रम फलालो तूम
पर अब नही बहूजन बहके गा चाहे अब लम्बी चोट कटवालो तूम
सूना है मंदीर मे अक्सर भग्वान बसा करते है
पर समझ नही उस वक्त कहां चले जते है
जब एक बेबस चीख चीख कर रहम की भीख मांगा करते है
सूनलेते है सूर मे गाए वो हर भज्न को पर बतानही क्यो
एक बेबस की बेबसी की चिखं भग्वान क्यो सून नही पाते है
एक दर्द था मेरे सिने मे ओर वो दर्द आज भी है
जो एहसासं नही होने देता कभी अपने होने का
एसा मेरा एक समाज भी है ,साएद नींद मे सोया है
मेरा समाज तभी तो, ना कूछ लोग भी तोड रहे हैं मेरे अधिकार
वर्ना किसकी क्या मजाल जो आख भी उठा सके मेरे अधिकारो
की तर्अफ अच्छे अच्छो की मिटा दे हस्तियां मेरे समाज के सीने मे
दफन वो आग भी तो है
मंगलवार, 24 मार्च 2020
चूरू जिला कलेक्टर के आदेश यात्रियों की सुविधा के लिए 16 वाहन चालक अधिक्रत
यात्रियों की सुविधा हेतु 16 वाहन चालक अधिकृत
चूरू, 23 मार्च। जिला कलक्टर संदेश नायक ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने एवं बचाव हेतु चूरू में यात्रियों के आवागमन हेतु सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को प्रतिबंधित किया गया है, किन्तु शहर, रेलवे स्टेशन व शहर के अन्य क्षेत्रों से आने-जाने वाले यात्रिओं की सुविधाओं एवं आवश्यक सेवाओं के लिए 16 वाहन चालकों को यात्रियों को जन सुविधा मुहैया कराने हेतु अधिकृत किया गया है।
जिला परिवहन अधिकारी संजीव दलाल ने अधिकृत वाहनों चालकों को निर्देशित किया है कि वे आवयक सेवाओं के दृष्टिगत निर्धारित दर के अनुसार ही यात्रिओं से किराया वसूल करें तथा आदेशों की अवहेलना करने पर संबंधित अधिकृत वाहन का परमिट निरस्त करने की कार्यवाही होगी। उन्होंनें बताया कि अधिकृत वाहन चालक सलीम सीकरियां (8005748460), मुंशी (9166735639), सतार चौहान (9460338595), अशोक शर्मा (7976277299), युनुस सब्जी फरोस (8005699788), महेश (9414397334), विक्रम (9460528799), जाकिर अली (7568320899), रमजान (7297867199), मुस्तकीन गौरी (9602125295), अकबर हुसैन(8875322024), पालाराम (9829565990), इस्लाम (9653870416), आरिफ(9414986016), रामबीर(9602512634) एवं भवानी सिंह (7357806699) के वाहन को अधिकृत किया गया है।
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चूरू, 23 मार्च। जिला कलक्टर संदेश नायक ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने एवं बचाव हेतु चूरू में यात्रियों के आवागमन हेतु सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को प्रतिबंधित किया गया है, किन्तु शहर, रेलवे स्टेशन व शहर के अन्य क्षेत्रों से आने-जाने वाले यात्रिओं की सुविधाओं एवं आवश्यक सेवाओं के लिए 16 वाहन चालकों को यात्रियों को जन सुविधा मुहैया कराने हेतु अधिकृत किया गया है।
जिला परिवहन अधिकारी संजीव दलाल ने अधिकृत वाहनों चालकों को निर्देशित किया है कि वे आवयक सेवाओं के दृष्टिगत निर्धारित दर के अनुसार ही यात्रिओं से किराया वसूल करें तथा आदेशों की अवहेलना करने पर संबंधित अधिकृत वाहन का परमिट निरस्त करने की कार्यवाही होगी। उन्होंनें बताया कि अधिकृत वाहन चालक सलीम सीकरियां (8005748460), मुंशी (9166735639), सतार चौहान (9460338595), अशोक शर्मा (7976277299), युनुस सब्जी फरोस (8005699788), महेश (9414397334), विक्रम (9460528799), जाकिर अली (7568320899), रमजान (7297867199), मुस्तकीन गौरी (9602125295), अकबर हुसैन(8875322024), पालाराम (9829565990), इस्लाम (9653870416), आरिफ(9414986016), रामबीर(9602512634) एवं भवानी सिंह (7357806699) के वाहन को अधिकृत किया गया है।
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कोरोना वाएरस से बचने केलिए सावाधिनी बर्ते स्वस्थ रहे
कोरोना वायरस के बढते प्रभाव के चलते सरकार ईस जानलेवा वायरस सै निपटनै केलिए सभी देश वासियों को अपने घर में ही रहने ओर अपने हाथो को साबून या ङिटोल से अच्छे से धोए बगेर अपनि आख नाक ओर मूहै को छूने से बचने की सला देती है क्यो की यह संक्रमण से फैलने वाला वायरस है सावधानी बरतने से इसे फैलने से रोका जा सकता है छिक ते व खांस थे समय अपने मूह को टिसू पेपर या रूमाल से ढके गले मे दर्द, खासी ,बुखार ,सांस लेने मे तकलिफ ,बदन दर्द, कमजोरी सी महसूस हो रही हो तो तुरन्त ङोक्टर की सलाह ले भीङ भाङ वाली जगहों पर जानें से बचें
सभी जगहों पर धारा 144 लागू कर रखी है ईसी बीच कूछ गेगेसट्र ईस का फायदा उठाने की फिराक मे भी हो सक्ते है क्यो की सहर के बाजारो मे ओर गाँव कै चौपालों पर कोई भी नजर नही आता सङके विरान पङी है ईसी बीच चोर लूटेरे ईस का फाएदा उठा सकते है वैसे तो प्रसासन पूरी सुरक्षा मे लगा हूआ है, जगहै जगहों पर पूलिस बल तैनात हैं पर घर से बाहर जाना पेङे तो सावधानी बर्ते हो सके तो
घर से बाहर जाने से बचे किसी जरुरी काम से जाना पेङे तो मूह ढककर जाऐ पैदल जारहे हो तो जेब मे में ज्यादा पैसे व सोने चांदी का कूछ भी साथ लेकर ना जाए चाहे वो जेवर हो घड़ी अंगूठी या कूछ भी हो ,ओर अगर गाङि से जा रहे हो तो रास्ते मे किसी अनजान व्यक्ति से कूछ भी लेने से बचे अगर लेना पेङे तो तो बङी ही सावधानी से ले जैसे खाने पीने का सामान या मास्क वगैरा ईसमे बेहोशी की दवा मिली हो सक्ति है ओर आप लूट के सिकार हो सकते है घबराएं नही सावधानी बर्ते धन्यवाद
सभी जगहों पर धारा 144 लागू कर रखी है ईसी बीच कूछ गेगेसट्र ईस का फायदा उठाने की फिराक मे भी हो सक्ते है क्यो की सहर के बाजारो मे ओर गाँव कै चौपालों पर कोई भी नजर नही आता सङके विरान पङी है ईसी बीच चोर लूटेरे ईस का फाएदा उठा सकते है वैसे तो प्रसासन पूरी सुरक्षा मे लगा हूआ है, जगहै जगहों पर पूलिस बल तैनात हैं पर घर से बाहर जाना पेङे तो सावधानी बर्ते हो सके तो
घर से बाहर जाने से बचे किसी जरुरी काम से जाना पेङे तो मूह ढककर जाऐ पैदल जारहे हो तो जेब मे में ज्यादा पैसे व सोने चांदी का कूछ भी साथ लेकर ना जाए चाहे वो जेवर हो घड़ी अंगूठी या कूछ भी हो ,ओर अगर गाङि से जा रहे हो तो रास्ते मे किसी अनजान व्यक्ति से कूछ भी लेने से बचे अगर लेना पेङे तो तो बङी ही सावधानी से ले जैसे खाने पीने का सामान या मास्क वगैरा ईसमे बेहोशी की दवा मिली हो सक्ति है ओर आप लूट के सिकार हो सकते है घबराएं नही सावधानी बर्ते धन्यवाद
सोमवार, 23 मार्च 2020
इनसान की ईनसायत आई काम एक घरके चिराग को बूझने से बचालिया कहानी जो आपकी आँखे नम करदे
उन दिनों की बात है जब मै दसवीं कक्षा में पढा करता था बङे भाई के पास कपडे की दूकान थी भाई पास ही कै सहर मै दूकान चलाते थे मेरे स्कूल की छुट्टी के दीन भाई मुझे भी अपने साथ दूकान ले जाते सायद इसलिए की मै भी कूछ सिख जाउँ भाइ दिल के एकदम साफ ओर सभी पे दयालू भाव रखते ओर हर किसी पै आंख मूंद कर भरोसा करलेते ओर ऊधार मे सामान दे-दे ते धिरे धिरे दो तीन लाख रूपये की उधार होगई ओर पैसा एक भी वापस नही आता ओर उधार लेकर ग्राहक भी वापस नही आता अब तो सारा दीन ऐसे ही कुर्सी पर बैठे बैठे ही बिताना पडता दूकान बंद होने की कगार पर पहूंच ग ई लेकिन भाई को अभी भी अक्ल नही आई कोई एक दो ग्राहक दीन मे आते थोड़े भोत पैसे देते ओर अपने दू:ख की झूठी कहानी सूना कर उधार ले जाते ओर फिर दुबारा उस गली में फिर कभी नजर भी नही आते हमारी दूकान के सामने ही मोटरसाइकिल के सामान की दूकान थी एक दीन वहा पर एक जवान सा लडका हेलमेट के आधे पैसे देकर आधे की उधार रखवाकर आधे पैसे कल देजाने की बोलकर हेलमेट लेजाने के लिए उस दूकानदार से बार बार विनती कर रहा था लेकीन दूकानदार ने साफ मना कर दीया साएद उसके पास हेलमेट लेने के पूरे पैसे नही थे ओर बाहर हाइवे पर बिना हेलमेट के पूलिस चालान कर रही थी भाईसाब उस लङके को जानते भी नही थे ओर उसे पैसे उधार देकर हेलमेट खरीद दीया उसने धन्यवाद बोला ओर पैैैसे कल देकर जाने की बोलकर चलागया मूझे यह सब देख बहूत बुरा लगा क्यो की लाखों रूपये ठगा कर भी उसे जरा भी अक्ल नही आ रही थी दूकान का दिन प्रती दीन दिवालिया निकलता जारहा था ओर वो अब भी जेब से पैसे उधार देे रहा था वो भी कीसी अनजान व्यक्ति को दूकान का सामान देता तब तक तो चलता पर जेब से पैसे उधार देना मुझे अच्छा निलगा ओर मै गुस्से मे बस इतना बोलकर बाहर चला गया देखता हूँ कल दीजिएगा या ये भी छूमंतर हो जाएगा
पन्द्रह बीस दीन बित ग ए पर वो नही आया मैने भाइ से पूछा भइ वो हेलमेट वाला पैैैसे देेेगया क्या भाइ ने बोला ना तो फिर मुझे गुस्सा आने लगा ओर मैने कह दी या ओर कर लो भरोसा किसी पे ओर पूरी दूकान ही देेेदो किसी पे भरोसा करके लेकीन उसे कहा फर्क पड़ने वाला था, उसकी तो बस वहीं बात कीसी जरूरत मंद की मदद करनी चाहिए यही ईनसायत है इंसानियत से ज्यादा पैसो को महत्व नहीं देना चाहिए मैने भाई से कहा तो फिर आपके उधार के पैसे कोई देकर क्यों नहि जाता फिर क्या उसका तो बस वही जवाब क्या पता कोइ मजबूर हो ओर पैसे ना जूटापाए या कीसी ओर मजबूरी की वजह से ना आ पाए सब दे जाए गे पैसे कोइ नही रखता मैने भाई से फिर सवाल कर दीया तो फिर कोइ देकर क्यों नही जाते आपके पास जो आते है क्या वही सब मजबूर होते है ओर वो मोटर साइकिल वाला एक दीन की कहकर गया था वो भी नही आया मेरी सब बाते सुनकर भी उसका वही जवाब कीसी से सहयोग की उमीद होती है ना छोटे लोग उसी के पास जाते है लोग हमसे उम्मीद रखते है तभी तो आते है ओर कोइ आस करके आभी जाए तो उसे निराश नही करना चाहिए उसकी मदद करना हमारा फर्ज बनता है हम आपस मे सवाल जवाब कर ही रहे थे तभी वो बाइक वाला आही गया
मूह पे पट्टी सर पे हाथो पे पट्टी बांधे हुए मिठाई का डब्बा लिए हमारी दूकान के अन्दर आया ओर भाई को देख गले लग खुसी से झूमने लगा हमने पूछा ये पट्टियाँ क्यो बधि हूइ है ओर ये मिठाई का डब्बा किसलिए है मै इतना ही बोल पया आगे मै कूछ बोलता उस से पहले ही वो बोलपडा की मेरे घर पहूच ने से पहले ही मेरा एक्सिडेंट होगया था ओर ईस हेलमेट की वजह सै मेरी जिन बच गई अगर ये भाई साहब अगर मूझे उसदीन अगर पैसे उधार नही देते तो मै हेलमेट नही लेपाता ओर आज मेरे बच्चे अनाथ हो गये होते इस भाई साहेब ने मेरे बच्चो का सहारा छिनने से बचा लिया ईतने दीन मै होस्पिटल मे था आज छुट्टी मिलते ही आपके पैसे देने ओरे मूह मिठा करवाने आया हूँ यह सब सुनकर मेरी आँखे पानी से भर आई मै मन ही मन खुद को कोस रहा था अब मुझे समझ आग्या था ईन्सानयत से ज्यादा पैसा कोई माई ने नही रखता अगर उसदिन भाई साहेब उसकी मदद् नहि करते तो उन मासूमो की जिन्दगी तबाह हो चुकी होती उसके नन्हे नन्हे मासूम देख रहे होते पापा कब आएंगे और साएद उनके पापा कभी ना आ पाते
रविवार, 22 मार्च 2020
भग्वान के मंदीर मे हूआ चम्तकार जो आपकी आँखे खोलदे ऐसी सटोरी
नमस्कार दोस्तो कैसे हैं आप सब ,दोस्तो मै आप का दोस्त रामरत्तन सूडा आप पढ रहे हैं sawtanter aawaj. Com दोस्तो ओर अधिक कविताएँ स्टोरी सबसे पहले पाने केलिए पेज को फोलो करें, यर व कोमेट करे
कूछ सम्य पहले की बात है मै ओर मेरा दोस्त किसी काम से घर से बाहर सहर मे मकान लेकर रहते थे मेरा दोस्त एक्सट्रा खर्च के पैसे ईक्ट्ढे करता ओर पेङ पोधे लगा देता क ई बच्चो की स्कूल की फिस भर देता ओर मै पूजा पढ केलिए धूप बत्ती खरीद लाता हमारे कमरे से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक मंदिर था मंदिर के रासते सूबह साम लोगो की लाइन लगी रहती एक दीन मेरे मन मे ख्याल आया ईतने लोग आते रहते हैं यहा पूजा करने कूछ तो चमत्कार है ईस मंदिर मे तभी यहा धोक लगाने ईतने लोग आते है घंटो खङा रहें तब जाकर नम्बर आता है धोक लगाने का ,ओर लोग खङे रहकर लाईनो मे धोक लगाकर जाते है ,कोईना कोई दिव्य सक्ति है ईस मन्दिर मे जो ईनलोगो की मनो कमना पूरि करती होगी तभी तो ये लोग लडू पेङे घि दूध धन दोलत चढा चढा कर जाते हैं
मैने सोचा क्यो नै हम भी धोक लगाएं इस मंदिर मे तो हमारा काम भी खूब चलने गजाऐ यह सोच कर मैने मंदिर जाने का विचार अपने दोस्त के सामने रखा क्यो की वो सूबह साम हाथ जोङ कर पन्द्रह बीस मिनट रोज रोज मंत्र सा बोलता रहता था की हे प्रक्रती मुझे स्मरण सक्ति दे कि मुझे हर पल तेरा ख्याल रहे ओर मै तेरा कभी नुक्सान ना करू ,ओर मुझे भी एसा बोलने केलिए रोज कहता पर मै उसकी बातों पे ध्यान न देकर मेरे पास भगवान की एक फोटो थी उस पे दिवा बत्ती कर देता तो मैने सोचा सायद मंदिर जाने की कहूँगा तो दोस्त पक्का त्यार हो ही जाएगा लेकीन मै जैसा सोच रहा था एसा कूछ नही हूआ उलटा मुझे डांटने लगा की भक्ति मन की होती है मंदिर तो दूकान बना रखी है इन लोगो ने मंदिर मे भग्वान नही पाखण्डी रहते है पाखण्डी यह सुनकर मुझे गुस्सा आने लगा ओर मैने कह दीया यहा सूबहा साम लाखो लोग आते है क्या सब पागल है जो यहा आते है फिर वो बस इतना बोलकर अन्दर चला गया की मै बह्स नहीं करना चाहता ,बस इतना याद रखना ये सभी लोग जैसे तूम्हारा मन कर रहा है ना ईन को जाते देख वैसे ही एक एक कर ईतने लोग जमा होने लग ग ए पर मै नही माना ,ओर मंदिर जाना सुरू कर दीया ओर
सूबह साम हर रोज मंदिर मे भग्वान के दर्षन के लिए जाता मंदीर मे गाँव के ओर भी बहोत लोग दर्षन के लिए आते मंदिर मे भग्वान के दर्षन करते ओर बाहर खङे हो जाते ओर बाते करने लग जाते ओर टहल ते एक दूसरे को देख जोगीगं करने लगजाते कोई कहता मेरा यहा धोकलगाने से मोटापा घटगया तो कोई कहता मूझे नोकरी लग गंइ कोइ कहता मेरी ये बिमारी मीट ग ई तो कोई कहता भूझे लडका होगया ईसतह हर रोज कोई न कोई चमत्कार सुनने को मिल जाता ये सब सून सूना कर धीरे धीरे मै भग्वान की भक्ति मे पूर्ण रूप से लिन होगया ओर खूब पैसे खर्च करता ओर पूजा पाठ करता ओर मंदिर मे खूब दान दक्षिणा देता एकदीन मै बिमार पङगया तो मैने सोचा अन्जाने में मुझसे कोई पाप होग्या होगा साएद भगवान उसकी सजा मुझे दे रहे है यह सोच मै पुजारी जी के पास गया तो पुजारी जीने मुझे पांच हजार रूपये मंदिर मे दान ओर एक भण्डारा ओर जागरण लगाने को कहा ओर आश्वासन दीया की तूम ठिक हो जाओगे मैने पुजारी के कहे अनुसर काम कर दीया मै भण्डारे ओर जागरण की तैयारियों मे लगा होने के कारण पन्द्रह बीस दीन मै मंदिर नही जा पाया ओर भण्डारा पूरा किया तब तक मै एकदम स्वस्थ होगया अब मुझे पूरा विश्वास होगया था की इस मंदिर मे कोई दिव्य सक्ति है ओर मै अब पहले की अपेक्षा ज्यादा समय मंदिर मे धोक पूजा करने लगा आसपास चर्चा होने लगी की फलाणा आदमी भण्डारा ओर जागरण लगाने से ठीक होगया यह सुनकर दूर दूर से लोग ओर आने लगे दो तीन महीने बाद में फिर से बिमार पड गया पुजारी जी ने बङा यज्ञ करने को कहा जिसमें पन्द्रह बीस हजार रुपये का खर्च होगा ओर मुझे दिनरात यज्ञ के पस ही रहना पड़ेगा मेने हा करदी ओर पुजारी जी ने बङा यज्ञ सूरू कर दीया यज्ञ को चलते हुए दस पंद्रह दीन हो ग ऐ लेकीन मेरी तबियत में कोई सुधार नजर नही आया मेरी तबियत दीन प्रती दीन ओर ज्यादा बिगड़ने लगी ओर पुजारी जी यज्ञ किए जा रहे थे एक दो दीन बाद मेरी हालत एसी लगने लगी मानो रात निकले तो दीन निकालना मूसकील हो मेरी हालत देख मेरे दोस्त ने मुझे डोक्टर के पास लेजाने की गुहार लगाई लेकीन पुजारी जी मानने को तैयार नहीं थे मेरे दोस्त ने जबरन मुझे डोक्टर के पास साफ्ट किया डोक्टर ने जांच की तो पता चला धूप बत्ती के धूऐ से फेफडों मे ईम्फेकसन होगया है एक घटा लेट ओर कर देते तो सायद ही हम इसे बचा पाते कूछ महिनो दवाई खाने के बाद मै स्वस्थ होगया तब जाकर मुझे समझ आया दोस्त संहिथा ओर मै गलत मेरे दोस्त के लगाए हूऐ पेङो की छाँव मे हजारो प्राणी आन्द ले रहे थे ओर उसके आर्थिक सहयोग से क ई बच्चे कोई डोक्टर कोई ईजंनयर कोई वैग्यानिक बन कर देश के विकास मे अपना योगदान दे रहे थे ओर मेरे मंदिर मे दान दिए पैसों से पुजारी गाजा सूलफा फूूंक रहा था ओर मैगी मगेहगी गाङियो मे घूम घूम घूम कर अंधविश्वास फैला रहाथा मुझे अब छसमझ आया वो वहा लोग चमत्कार की बात करते थे वो असल मे किसी को सफलता मिली वो उसकी मेहनत ओर लगन का प्रीणाम था न की अंधभक्ति का
दोस्तो यह स्टोरी पूर्ण रूपसे कालपनिक ह ओर यह अंधविश्वास से पर्दा हटाने के उद्देश्य से बनाई गई है किसी की भावना को ठेस पहुंचाने के लिए नहीँ कसी की भावना को ठेस पहुंचे तो लेखक कि ओर से क्षमा धन्यवाद
शनिवार, 21 मार्च 2020
बाबा सासेब ङोक्टर अम्बेडकर
हम कभी नही हारे अपने दुसमन से क्यों की हमारे बाबा साहेब ने हमें ताकत ए कलम दी है
हम हार जाते है हर बार अपनों से क्यों की नहि जीतना चाहते हम अपनो से ये कहकर हमने साहेब ए भीम की कसम ली है
हम मानेगे मरते दम तक उन के विचार को ,ओर लिखते रहें गे बाबा साहेब ने संजोए थे वतन ऐ हर उन ख्वाबों को
हम मोहताज थे दो वक्त की रोटी के तूने बहाकर अपना खून पाना हमें मोका दीया बनने को हूक्मरान वतन ए हिन्दूस्तान के
बने नही हूक्मरान बहूजन क्यो की कोम ऐ बहूजन मे गद्दारी है टूट सा रहा है तुमने देखा वो हर सपना साहेब ,साएद एहसान फरामोस कोम ये हमारी है
दिल करता है मै कलम उठाउ ओर लिखता रहूँ बाबा साहेब तेरे अरमानो को मेरे लिखने की वज है भी यही है साहेब सायद कूछ समझ आ जाए पत्थर पूजने वालो को
हम ना उलझे कभी पाखण्ड मे बस दिल मे तूम्हारा नाम रहे किसकी क्या मजाल है हमें छू भी ले हमारी मर्जी के बिना बस हाथो में तुम्हारा संविधान रहे
कोई पढे गिता कोई पढे चाहे कुरान को तेरी नजर मे सबकी वैल्यू है, एक समान जो
हमारी चाहे लूटजाए दुनीया हंसती बसती पर ना लूटने देंगे तेरे लिखे हूए संविधान को
छेड़े कोइ संविधान अगर हम लोखो पहरे दार खङे सैनिक तेरे भीम राव जी ज्यान देण नै त्यार खङे
रामरत्तन सूडा लिखे कविताइ हर वो तूने त्याग किया भारत का हर बचा बचा साहेब पहचान तेरे बलिदान गया
जगह जगह तेरे लगे जय कारें भगवान असल को जान गया भारत के तूम भाग्य-विधाता हर मानव अब मानगया
हम हार जाते है हर बार अपनों से क्यों की नहि जीतना चाहते हम अपनो से ये कहकर हमने साहेब ए भीम की कसम ली है
हम मानेगे मरते दम तक उन के विचार को ,ओर लिखते रहें गे बाबा साहेब ने संजोए थे वतन ऐ हर उन ख्वाबों को
हम मोहताज थे दो वक्त की रोटी के तूने बहाकर अपना खून पाना हमें मोका दीया बनने को हूक्मरान वतन ए हिन्दूस्तान के
बने नही हूक्मरान बहूजन क्यो की कोम ऐ बहूजन मे गद्दारी है टूट सा रहा है तुमने देखा वो हर सपना साहेब ,साएद एहसान फरामोस कोम ये हमारी है
दिल करता है मै कलम उठाउ ओर लिखता रहूँ बाबा साहेब तेरे अरमानो को मेरे लिखने की वज है भी यही है साहेब सायद कूछ समझ आ जाए पत्थर पूजने वालो को
हम ना उलझे कभी पाखण्ड मे बस दिल मे तूम्हारा नाम रहे किसकी क्या मजाल है हमें छू भी ले हमारी मर्जी के बिना बस हाथो में तुम्हारा संविधान रहे
कोई पढे गिता कोई पढे चाहे कुरान को तेरी नजर मे सबकी वैल्यू है, एक समान जो
हमारी चाहे लूटजाए दुनीया हंसती बसती पर ना लूटने देंगे तेरे लिखे हूए संविधान को
छेड़े कोइ संविधान अगर हम लोखो पहरे दार खङे सैनिक तेरे भीम राव जी ज्यान देण नै त्यार खङे
रामरत्तन सूडा लिखे कविताइ हर वो तूने त्याग किया भारत का हर बचा बचा साहेब पहचान तेरे बलिदान गया
जगह जगह तेरे लगे जय कारें भगवान असल को जान गया भारत के तूम भाग्य-विधाता हर मानव अब मानगया
शुक्रवार, 20 मार्च 2020
कोन कहता है साहेब देस भूखा मर रहा है
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कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
किसान देस का फांसी खा रहा हे यूवा पूलिस की लाठी खारहा है
सैनिक देस का सिने पे गोलि खा रहा है
कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
नेता माल खा रहा है मजदूर दवा खा रहा है विश्वासी धोखा खा रहा है बैक घोटाले खा रहा है कर्मचारी रिस्वत खा रहा है
कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
गरिब ओर गरीबी होता जारहा है आमिर विदेस भागरहा है
लड़कियो की इज्जत लूटी जा रही नेता भाव खा रहे है
कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
बीमारियां बढती जा रही है सरकारें दिलासा दे रही है
होस्पिटलो मे दवाइयां मिल नहि रही है ङोक्टर कमसिन खा रहे है
कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
सरकारें नईं नईं योजनाएं लागू कर रही है लाभ कीसिको मिल नही रहा, नेता वादों की लोलीपोप बाट रहे है जन्ता मजेसे खा रही है
कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
जुमले बाज जुमले बाजी बखूबी कर रहे है पब्लिक आराम से देख रही है सरकारें दो रूपए किलो गेहूं बाँट रही है उसे डीलर खा रहा है
आम आदमी के अधिकार लूटें जा रहे है नागरी क धोखा खा रहे है
कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
घरों पे छत नही हजारों करोड़ों की मूर्तियां बनवाई जा रही है अर्थ व्यवस्था टूटी पङी है NRC लाईं जा रही है रोजगार है नही ङिटेन्सन सेन्टर बनवाए जा रहे है मजदूर को हक नही अधिकारी खाए जा रहे है कोन कह ता है साहेब देस भूखा मर रहा है
ट्रक ड्राइवर की सच्चाई
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ट्रक ड्राइवर की भी क्या जिन्दगी है साहेब ना टाइम पे खाना खापाता ना ही सोपाता हैनहि हीता साहेब ट्रक ड्राइवर का कोइ एक मजहब ट्रक ङ्राइवर तो हर मजहब को चाहता ता है
नहि सताता ट्रक ड्राइवर किसी बेबस को फिर भी ना जाने क्यो ट्रक ड्राइवर को हर कोइ सता जाता है बचाना चाहता है बचाना चाहता है मेहनत के दो पैसे अपने बच्चो के लिए मगर ना जाने क्यो कभी आरटीओ तो कभी पूलिस बाले लूटने आजाते हैं
चाहता नहि किसी प्राणी की जान लेना ट्रक ङ्राइवर फिर भी ना जाने क्यो कातिल कह देते है
नहि होता गुनहगार हरबार ट्रक ड्राइवर बेवजह सता सता कर पूलिस वाले साहेब अक्सर गुनहगार बना देते है
होजाती है कोइ खराबी चलते चलते वाहन मे ना जाने क्यों गाङि मालिक ड्राइवर को खरि खोटि सूना देते है
होते है दिल के धनी ट्रक ड्राइवर साहेब भूखे पेट के भी बहूत कूछ दान दे जाते है अगर मिल जाए असहाय तो बनके उसका सहारा धन दोलत क्या बात करू साहेब ट्रक ड्राइवर तो दिलो जान तक लूटा देते है
रामरत्तन सूङा यूँही बदनाम है ट्रक ड्राइवर तो ड्राइवर हि तो देस को चलाते है, नहि जा पाते अपने घर पर लेकीन जरूरी सामान तूमतक पहूंच देते है
ना जाने फिर भी क्यो सरम नहिआती इन पूलिस वालो को छिनकर खून पसीने कि कमाइ ट्रक ड्राइवर की ये काफिर कैसे आराम से खा लेते है
कोइ मिल जए रात के अंधेरे मे लगाए लिफ्ट कि गुहार तो राहगीर की मजबूरी समझ करने को मदद किसि अनजान को गाङि में बैठे लेते है नहि देख पाता ट्रक ड्राइवर किसी की बेबसी इसिलिए हि तो करने को किसी राहगीर कि मदद रात के अंधेरे मे भी गाङि को थमा लेते है होती है एसे चोरियां ओर डकैती मगर एक समझ बेबस की बेबसी इतना बड़ा रिस्क उठा लेते है
धन्य हैं ट्रक ड्राइवर साहेब जो खुद को लुटाकर भी गोरों को बचा देते
ये तो खुद काट रहे होते है सजा से बहत्तर जीन्दगी ये किसी को सजा कहा देते है
गुरुवार, 19 मार्च 2020
बहूजन समाज जागो रै
बहूजन भाइयों जागो रे आपस मै ना तकरार करो एक दूजे का बणो सहारा अपनों की टांग ना खिंचो रै
बहोत हो लिया शोषण थारा इब तो होस संभालो रै भीम राव नै जो देख्या सपना वो सपना पार उतारो रै
आरया सै यो टेम थारा मूङके फेर ना आणा रे चूक्या जै यो मोका बहूजन भाईयों पङ घणा पछताणा रे यो मोका फेर ना आणा रै
चूनल्यो सासक अपणा भाईयों कोइ गैर काम ना अपने आणा रै
करें कांग्रेस कदे बीजेपी का तन खूब गालियां गाणा रै जो दिए भीम न अधिकार तेरे तै तन पडगे सारे खोणे रे जाणा बूझ ल ई विपदा मोल फेर तेरा किस बात का रोणा रै
आया भीम तन राज दीलाण यो फेर भीम ना आणा रे देग्या कुर्बानी अपनी ओलाद की तेरे सरताज दीला ण रे रोती होगी आत्मा भीम की देख लोग तेरे घर पराया नै
तेरे खातिर घङ्या ताज भीम नै सह सह के अपमाना नै तू बेच रहा वो ताज बहूजन पव्वे बोतल आन्या मै
करया इशारा संसद का तू समझ रहा परमात्मा आरे पङके चक्र पाख्णङ के गुलाम बणाग्या आत्मा, तेरे गल मै हाण्ङी पिठ पै झाङू
मैले भेस मै रहणा था भूख गरिबि ओरलाचारी तेरा रोजका रोणा था
तेरी हालबूरी था रोजका रो णा अपमान जनक था जिवन तेरा रोया करे थी तेरी आत्मा हो या करै था शोषण तेरा ना आया बचावण परमात मा
देख तेरी या बुरी हालत रोईं भीम की आत्मा सह सह के विपदाए भारी तेरी सूखी बणाग्या आत्मा
रामरत्तन सूङा मेरी नजर मै भीम तै बढके कोई होनहि सकता परमात्मा जो अच्छूता की सूद्द बणाग्या आत्मा मेरा तूए सै भग्वान भीम जी मेरा तूए सै परमात्मा
बहोत हो लिया शोषण थारा इब तो होस संभालो रै भीम राव नै जो देख्या सपना वो सपना पार उतारो रै
आरया सै यो टेम थारा मूङके फेर ना आणा रे चूक्या जै यो मोका बहूजन भाईयों पङ घणा पछताणा रे यो मोका फेर ना आणा रै
चूनल्यो सासक अपणा भाईयों कोइ गैर काम ना अपने आणा रै
करें कांग्रेस कदे बीजेपी का तन खूब गालियां गाणा रै जो दिए भीम न अधिकार तेरे तै तन पडगे सारे खोणे रे जाणा बूझ ल ई विपदा मोल फेर तेरा किस बात का रोणा रै
आया भीम तन राज दीलाण यो फेर भीम ना आणा रे देग्या कुर्बानी अपनी ओलाद की तेरे सरताज दीला ण रे रोती होगी आत्मा भीम की देख लोग तेरे घर पराया नै
तेरे खातिर घङ्या ताज भीम नै सह सह के अपमाना नै तू बेच रहा वो ताज बहूजन पव्वे बोतल आन्या मै
करया इशारा संसद का तू समझ रहा परमात्मा आरे पङके चक्र पाख्णङ के गुलाम बणाग्या आत्मा, तेरे गल मै हाण्ङी पिठ पै झाङू
मैले भेस मै रहणा था भूख गरिबि ओरलाचारी तेरा रोजका रोणा था
तेरी हालबूरी था रोजका रो णा अपमान जनक था जिवन तेरा रोया करे थी तेरी आत्मा हो या करै था शोषण तेरा ना आया बचावण परमात मा
देख तेरी या बुरी हालत रोईं भीम की आत्मा सह सह के विपदाए भारी तेरी सूखी बणाग्या आत्मा
रामरत्तन सूङा मेरी नजर मै भीम तै बढके कोई होनहि सकता परमात्मा जो अच्छूता की सूद्द बणाग्या आत्मा मेरा तूए सै भग्वान भीम जी मेरा तूए सै परमात्मा
राजस्थान में भी कोरोना वायरस देचूका दस्तक
19/3/2020 कोरोना वायरस के बढते प्रभाव के चलते मार्च मै होने वाले B A के अग्जम किए रद्द 1 अप्रेल से होने की सम्भावना
राजस्थान सरकार ने BA के चलरहे अग्जाम पर रोक लगा दी है सरकारी व गैर सरकारी सकूलो कालेजो की 31 मार्च तक छुट्टी रखने का भी कर रखा है एलान ,राजस्थान मे कोरोना वायरस का कहर बढता नजर आ रहा है राजस्थान सरकार कोरोना से लडने के लिए है त्यार सरकार ने कोरोना से बचाव के लिए सावधानियां बरतने ओर जन्ता मे जागरूकता लाने केलिए परचार भी सुरू करदीया है कोरोना से बचने केलिए भीड भाड वालि जगहो पर जाने से बचे जरूरी हो तो मास्क पहनकर हि जाए किसी परीचित से मिले तो हाथ मिलाने ओर गले मिलने से बचें कोरोना वायरस हाथ मिलाने या सरिर को छूने से भी फैलता है अगर कहि भीङ भाङ वालि जहजाए तो घर आकर ङिटोल या साबुन से अच्छे से हाथ धोएं कोरोना से बचने का बचाव हि उपाए है तो सावधानी बर्ते सतर्क रहे
सोमवार, 16 मार्च 2020
स्वाभिमान कि लङाई
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अब मत रूको साहेब ये अपने हक ओर स्वाभिमान कि लङाई है
तूम कुर्सी पाकर भूल गए सायद तूम्हारी कूर्सी कि खातिर बाबा साहेब ने चार चार संतानें खोई है
तूम भूल गये सायद माता रमा बाई भी तुम्हें सरताज बनाने कि खातिर खून के आंसू रोईं है पढलो तूम इतिहास खोल क्यो तूम्हारी मन कि आँखे सोई है
तेरा सानो सोकत से रहना सहना मन मर्जी से पढना लिखना सब बाबा साहेब की दूहाई है, तूम करो पठ चाहे गीता का चाहे पूजो पत्थर मूरत को तूम मत भूलो उस महामानव को जो बदल गए तेरी सूरत को
ना धन कि जिसने आस रखी ना एसी रूमो मे सोया था देख तेरी वो बुरी हालत को खून के आंसू रोया था ,बनाने को हूक्मरान तुम्हें वो ना दिन रातों को सोया था
पाकर नोकरी संविधान बदोलत आज तोङ रहे सविंधान जो दूश्मन क्यों सविंधान बचाना भूल गया
खूब लूटवाया धन दोलत तुमने कभी मन्दिर मे कभी पाखण्डी बाबाओं के ङेरो मे, अब चोर है आते नजर जो तूमको भीम राव के सेरो मे ,आज वो अच्छे लगते है दूश्मन तुमको कभी जो नीच बोलकर रखाकरै थे अपने पैरों में
रामरत्तन सूङा मिटा दिया क्यो भीम राव के सपनो को ,बाबा साहेब के दिए सब सूख भोग क्यो गले लगा लिया दूश्मन को
चार पैसे क्या लिए कमा जो भूल गया तू अपनो को, अरे हटा अपने सर से अब उस पाखण्ड की परछाई को ,ओर चल उस राही बाबा भीम ने दिखलाई जो
खतरे मे है तेरी आजादी अधिकार तेरे सब लूट रहे होता तुम्हें एहसास नहीं क्यो नींद तुम्हें जो आई है
तू चेतेगा भी कैसे से मूर्ख तेरे सर पे तो अंधविश्वास की परछाई है
अब मत रूको साहेब ये अपने हक ओर स्वाभिमान कि लङाई है
शनिवार, 14 मार्च 2020
दहेज क्यो नही लेना चाहिए दहेज नही लेने के हजारो फाएदे जो आपकी किस्मत बदल दे
नमस्कार दोस्तो कैसे हैं आप सब ,दोस्तो मै आप का दोस्त रामरत्तन सूडा आप पढ रहे हैं sawtanter aawaj. Com ,दोस्तो आज हम बात करते हैं दहेज पर, की दहेज के नाम पर अगर हम एक रूपया भी लेते हैं तो हम पाप के भागी ओर आत्म सम्मान हारे हुए निरदेइ राक्षसों कि श्रेणी में होते है जानिए कैसे मेरे साथ स्टोरी को पूरा पढकर
दोस्तों सबसे पहले हम चर्चा करते है इस सवाल पर की दहेज एक बुराई है एक पाप है या यूँ कहें पाप का दरवाजा है तो इसकी सुरुआत हि क्यों हूई ईस पाप के दरवाजे को खोला ही क्यों गया इस बुरी परम्परा की सूरूआत समाज मे आखिर कि ही क्योँ ग्इ ये सवाल हर मनुष्य के दिलो दिमाग को झकझोर कर रख देता है
दोस्तों हम अपने पूर्वजों से जाने या इतिहास के पन्नो को खंगालने की कोशिश करें तो हम पाते है की आज के वर्तमान समय की अपेक्षा पहले समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से बहूत कमजोर ओर सामाजिक रूप से प्रताड़ित था बात उस सम्य से सुरू होती है जब अधिकांस लोग दो वक्त कि रोटी के लिए मोहताज रहते थे तो वो इस इस्थिती मे सादी विवाह कारण का वे में आए मेहमानों के खाने पीने कि व्यवस्था कहाँ से जूटा पाते तो वो इस इस्थिती मे साहूकारों से कर्ज लेकर अपना कामकाज निपटा लेते कर्ज देकर साहूकार का पैसा वसूल नहीं हो जाता तब तक उस परिवार के सदस्यों से काम भी करवाता रहता ओर साथ मे उस परिवार की बहन बेटियों का देह शोषण भी करता रहता कर्ज के बोझ तले दबा वो परिवार बेबसी से सबकुछ सहता ओर अपनी बेबसी पर पछताता रहता
धीरे धीरे समाज थोडा आर्थिक रूप से मजबूत होने लगा ओर साहूकारों से कर्ज लिए बगैर अपना काम चलाने लगा ओर साहूकारों कि बुरी नजर ओर घटिया सोच को दूदकार ने लगा तो साहूकरो ने सोचा फिर से समाज को अपने कर्ज मे ङूबोकर उसी तरहां शोषण कैसे किया जा सकता है तो साहूकारों यानी पूंजीपतियों ने सोची समझी योजना से दहेज प्रथा ओर मर्तयू भोज कि परम्परा को जन्म दिया ओर धीरे धीरे पूरे समाज पर थोप दिया क्यो कि साहूकार जानते थे कि ईस फालतू खर्च को उठाने मे अधिकांस लोग असमर्थ हैं ओर हमे इन परम्पराओ से कोइ फर्क नहि पडेगा अगर ये परम्परा यानी रितीरिवाज बनादिजाए तो समाज के सभी लोग करने को मजबूर हो जाएंगे ओर फिर मजबूरन हमसे कर्ज लेंगे ओर फिर से हम गुलाम बनाकर शोषण करने में कामयाब हो जाएंगे
ओर वर्तमान समय में भी इन बेहूदा परम्पराओ के कारण अधिकांश परिवार वो का शोषण होता रहा है
दोस्तों हम सुनते ओर देखते हैं बहूत से लोग दहेज प्रथा का विरोध तो करते हैं लेकिन यह बोलकर सब लेलेते है की मांग कर हम लेंगे नही अगर समधि अपनी मर्जी से अपनी बेटी को कुछ देगा तो हम मना नहि करेगे चाहे सामने वाले कि हैसियत बारात को खाना खिला ने कि ही ना हो दोस्तो एसा सुनकर बेटी वाला कुछ देता है ओर लङके वाला लेता है तो मै तो उसे दहेज का लालची कहूँ गा आप अपनी राय कामेट कर जरूर बताएंगा
मै एसा बोलने वाले को दहेज का लालसी इस लिए कहूँग क्यों की हम सभी जानते है जीसतरहा हमारे समाज मे झाङ फूंक टोना टोटका अंधविश्वास पाखण्ड दिलो दिमाग मे सदस्यों से भरा हुआ है सबकुछ जानते हुए भी कि इसका कोई फायदा नहीं है फिरभी समाज के बहूत से लोग छोड़ नहीं पाते अगर कुछेक लोग छोड़ ना चाहे तो समाज के बहूत से लोग पिछे पङ कर छोड़ ने नहि देते इसप्रकार दहेज प्रथा भी सदियों से लोगों के दिलो दिमाग भरीं पड़ी हैं जीसे कोई निकालना चाहे तो समाज के लोग निकाल ने नहि देते इसप्रकार दहेज अगर आप दहेज को अभिशप कि नजर से देखते है तो इसका पूर्ण रूप से बायकाट करे ओर एक हँसते खेलते परिवार को बर्बाद होने से बचाने का प्रयास करें
दोस्तों कूछ लोग समाज में ऐसा कहने वाले भी होते है कि बेटी बाप के बहूत कमाती है क्या हूआ लाख दो लाख रुपये खर्च कर दिए तो मै एसा सोच ने वालों के लिए भी अपने विचार व्यक्त कर ना चाहता हूँ जब बेटी बाप के यहाँ कमाती है तो क्या एक बाप अपनी जवान बेटी से मजदूरी करवाता है जी नहि एक बाप चाहे कितना भी बेबस क्यो ना हो मेरे ख्याल से अपनी जवान बेटी से मजदूरी करवाने से बेहतर खूदका मर जाना मुनासिब समझता है एक बाप अपनी जवान बेटी से कभी मजदूरी हि करवाता तो बेटी बाप के यहाँ कितना कमादेती होगी जिसमे बेटियों के लालन पालन का खर्च ओङने पहनने का खर्च पढाई लिखाई का खर्च एक बाप दील खोलकर ये सब खर्च करता तो मेरे ख्याल से लोगों की अवधारणा निराधार है की बेटि बाप के यहाँ बहोत धन कमाती है हा ज्यादातर लोग बेटी से खेती का काम तक नहि करवाते बेटी बस अपने बाप के यहाँ घरेलू कामकाज ही कराती है
अगर आप एसा सोचकर दहेज लेते हैं की बेटि ने बापकै बहोत कमाया है लाख दो लाख रुपये खर्च करने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो मेरी ईन बातो पर गोर करना आपका बेटा दिनरात कमाता है चाहे एक रूपया या लाख रुपये ईस पर लङके ससुराल वालों का अधिकार होता है या आपका, आपका हि होता है ना क्यों की बेटे को पाल पोसकर बडा आपने किया है जन्मा भी आपलोगों ने तो उस पर अधिकार भी आपका हि होता है तो उसि परकार बेटी की कमाई पर बेटि के मात पिता का हि अधिकार होना चाहिए ओर ये जायज भी है
अगर हम एसा नहि करते हमे एसा बोलने से सरम आनी चाहिए कि क्या फर्क पङता है बाप बेटी कि सादी मे दान दहेज के लाख दो लाख रुपये खर्च करता है तो एक पूंजी पती या सरकारी कर्मचारी को तो साएद कोई फर्क नहीं पड़ता लेकीन एक खेती हर मजदूर का तो सबकुछ दाव पर लग जाता है बेटी भी ओर घर जमीन भी दोस्तों हमे सोचना चाहिए की हम कितना बङा अपराध कर रहे हैं दान दहेज लेकर ओर बेटी के घर हैसियत से ज्यादा बारात लेजाकर
हमने देखा ओर सूना भी है की सबसे बङा पाप ओर निच कर्म है किसी कि मेहनत का कमाया छिनना ओर खाना दोस्तों हमे एकबार सोचना चाहिए ईस विषय मे की हम बारात के नाम से किसी की मेहनत का कमाया हूआ अन्न खाकर पापा तो नहि कमा रहे किसी की मेहनत की कमाई को दान दहेज के नाम से लेकर पाप के भोगी तो नही हो रहे दोस्तों एक मजबूर एक किसान पूरा दीन सूबहा से लेकर साम तक चिल चिला ती धूप मे पचता है मेहनत करता है खून पसीना बहाता तब जाकर तीन सौ चार सौ रुपये कमा पाता है एकबार विचार करो लाख दो लाख रुपये खर्च होते है तो एक मजदूर के कितने दीन का खून पसिना होता है उस खून पसीने को एक झूठी पाखण्डी भूरि परम्परा यानी दान दहेज की आङमे आप ले ले ते हो ओर अज्ञानता वस पापियों की श्रेणी मे आजाते हो
जो लोग मांग कर दहेज लेते है वो लोग महा पापियों ओर बेशर्मो की श्रेणी मे आते हैं ओर उनका अन्तिम समय तिरा तीरा करके भारी कष्टों मे गुजरता है
दोस्तो कुदरत ने हर इनसान को दो हाथ ओर दो पैर दिए है ताकी वो कमाकर खा सके कूछेक इनसान एसे होते है जिन्हे कुदरत ने ना हाथ दिए हैं ओर ना पांव वो इनसान पूर्ण रूप से दूसरे पर निर्भर होते है ओर मांग कर खाते है पर मांगने मे उन्हें भी सरम आती है बल्कि कुदरत ने उन्हे बनाया हि मांग कर खाने के लिए फिरभी वो मांग कर लेना नहि चाहते पर मजबूरन मांग कर खाना पङता है
तो सवाल ये उठता है क्या आप उस अपाहिज या यूँ कहे कुदरत के मारे हूए ईनसान से भी कमजोर है जो मांग कर लेना पसंद करते है
या तूम धापकर बेशर्म हो जो कुदरत का सबकुछ दिया हूआ है फिरभी दहेज की आङमे मांग रहे हो ये सबसे बडा पाप है
ईस पाप से बचने के लिए आत्म मंथन करना होगा अपने अन्दर कि आत्मा की आवाज सुनकर अपने स्वाभिमान को जागाना होगा ओर दहेज का पूर्ण रूप से बायकाट कर समाज को दहेज मुक्त बनाना होगा
शुक्रवार, 13 मार्च 2020
बुधवार, 11 मार्च 2020
सोमवार, 9 मार्च 2020
नमन करूँ उस महामानव न जिस न था संविधान लिखा
नमन करो उस महामानव न जिस न था संविधान लिखा
डूबती किस्ती बहूजन की वो तार समन्दर पार गया
बहूजन कि आज़ादी ख़ातिर चार चार संतानें वार गया
नमन करो उस महामानव न जिस न था संविधान लिखा
दर दर ठोकर खाता बहूजन बना के वो सरताज गया
जाती वाद मै टूटया था भारत, आपस मैं सब जोड़ गया
नमन करो उस महामानव न जिस न था संविधान लिखा
नही धर्म कोई महान देश मैं सब धर्मों को समान किया
शोषित बहूत थी नारी देश में नारी को कर समान दिया
पढलिख कर बने महान नारी भी एसा प्रावधान किया
नमन करो उस महामानव न जिस न था संविधान लिखा
बाहर बैठ कर पढया करै था फिर भी सिम्बल ओफ नोलेज बना
बहुत सहे अपमान जात के फिर भी विश्वगुरु वो कहलाया
सोया बहूजन मेरे देशका करके संघर्ष वो जगा गया
नमन करो उस महामानव न जिस न था संविधान लिखा
पिनें को पानी ना मिला टेम पै फिर भी भारत रत्न वो कहलाया
बहुत किया अपमानित इन धर्म के ठेके दारों नें
हर वो उनका हक़ छिना था इन देश के गद्दारां नै
रामरत्तन सूडा ना भूलो साहेब के बलिदान न
जो देख्या सपना साहेब नै वो करो सपना साकार रै
थारा हक़ बचाने ख़ातिर सहगया बहूत अपमानां नै
रविवार, 8 मार्च 2020
शनिवार, 7 मार्च 2020
मनूवाद को हिलाके रखदेने वालि भिम सेरनि कि कविता
ना हिन्दू ना मुस्लिम ना ही सिख ईसाई हूँ
मै सबसे पहले हूँ मारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
जात पात की नही सम्रथक ना किसी धर्म की मै सिपाही हूँ
हू इन्सान ओर सभी इन्सानों को समझती आपस मे भाई भाई हूँ
ना हिन्दू ना मुस्लिम ना ही सिख ईसाई हू
मै सबसे पहले हूँ भारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
बाबा साहेब मेरे हैं आद्रश मै भारतीय संविधान की सिपाही हूँ
निला झण्डा है मेरी निशानी मै निले झण्डे की परछाईं हूँ
संघर्ष सिल हूँ संघर्षों से कभी ना हारी मै संघर्षों की आदी हूँ
नही सम्रथक हिंसा की मै तो अहिंसा वादी हूँ
गर्व से बोला करती हूँ साहेब मै तो अम्बेडकर वादी हूँ
ना हिन्दू ना मुस्लिम नाहीं सिख ईसाइ हूँ
मै सबसे पहले भारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
आपस मे ना लड़ना जानू मै प्यार भरी सहनाई हू
अच्चछे के साथ हूँ अच्चछी ना बूरे के साथ बूराइ हूँ
मैं गर्व से बोला करता हूँ कि मै संविधान का सिपाइ हूँ
ना सिखा कमी ज़ुल्म को सहना ना ज़ुल्म किसी पे ढाती हूँ
समता की मै रही समर्थक समाज भी समता मूलक चाहती हूँ
धर्मा खिंच्ची भगवान मेरे है भीमराव बस गित उन्हीं के गाती हूँ
ना हिन्दु ना मुस्लिम नाहीं सिख इसाई हूँ
मै हूँ भारतीय ओर बाबा साहेब की अनूयाई हूँ
जय भीम जय भारत
शुक्रवार, 6 मार्च 2020
ज्योति बाफूले जी मै तूमको भग्वान कहूँ
मन विचलित है फुले जी जाने मै तुमको क्या कहूँ
दिल करता है भगवान कहूँ या फिर शिक्षण सम्राट कहूँ
तुने जो जगाया सोया समाज मै शिक्षा का सरताज कहूँ
मन विचलित है फुले जी जाने मै तुमको क्या कहूँ
नारी का सम्मान था दिल में नारी को पढ़ाना है ये आत्म विश्वास था दील मे
जी करता है मै तुमको बहुत बड़ा विद्वान कहूँ
मन विचलित है फुले जी जाने मै तुमको क्या कहूँ
तूने किया जो फुले जी मै त्याग कहूँ या बहोत बड़ा बलिदान कहूँ
असम्भव को सम्भव कर तुने है जो काम किया दुनिया मे जो नाम किया
हर मासूम को पढ़ा लिखाकर शिक्षा से जो जोड़ दीया
दील करता है मै तुमको सर्वोपरि भगवान कहूँ
मन विचलित है फुले जी जाने मै तुमको क्या कहूँ
रामरत्तन सूडा मै तुमको दिल से अपना स्वाभिमान कहूँ
दील करता है फुले जी मै तुमको कोहीनूर कहूँ
मन विचलित है फूले जी जाने मै तुमको क्या कहूँ
घर्मा खिंच्ची मन करता है फूले जी मै तूमको नारी का सुत्र धार कहूँ
तुने बनाइ अबला से नारी मै तूमको भगवान कहूँ
मन विचलित है फूले जी जाने मै तूमको क्या कहूँ
दिल करता है फूले जी मै तूमको भगवान कहूँ
बुधवार, 4 मार्च 2020
काशीराम जी का कारवा कहा तक पहूच पाया है
काशीराम जी तेरा कारवां पल पल है दम तोड़ रहा
तुने दिखाई थी जो राही बहूजन है उसे छोड़ रहा
भुल गए बलिदान तेरा अब पाखण्ड पिछे दोड रहा
तुने दिया था हाथी सबको अब हाथी बहुजन छोड़ रहा
कदे फ़ुल कदे हाथ कदे झाड़ू पिछे दोड रहा
काशीराम जी तेरा कारवाँ पल पल है दम तोड़ रहा
तुने दिखाई थी जो राही बहुजन है उसे छोड़ रहा
नही करता है बहूजन नेक कमाई पवे बोतल फोड़ रहा
तेरी दीखाई नही राह रही दारू के पिछे दोड रहा
नही करता मत सही युज ये चंद दोलत मे बेच राहा
काशीराम जी तेरा कारवाँ पल पल है दम तोड़ रहा
तुने दिखाई थी जो राही बहुजन है उसे छोड़ रहा
ले लेकर नाम तेरा साहेब जी चमचों का सिका दोड रहा
तुने खड़ा किया जो था कारवाँ चमचा यूथ अब तोड़ रहा
रामरत्न सुडा सुधरजा अब तो क्यों खुन पसीना साहेब का है बेचरहा
झूठी है अफ़वाह सारी कि बहूजन है अब चेत रहा
काशीराम जी तेरा कारवाँ पल पल है दम तोड़ रहा
तुने दिखाई थी जो राह बहुजन है उसे छोड़ रहा
तुने दी जो नीली झंडी अब रंग है उसका बदल रहा
बहूजन तेरा पिछड़ गया कभी तिलक कभी तराज़ू
कभी तलवारें है चमका रहा
नही सँभाली कमान है अपनी वो मोल समाज का लगा रहा
काशीराम जी तेरा कारवाँ पल पल है दम तोड़ रहा
तुने दीखाई थी जो राही बहुजन है उसे छोड़ रहा
बहूजन समाज हिन्दू है आज यह साबित करदेगि यह कविता
हाँ मै हिन्दु हुं सोचा मेरे हिन्दु होने की एक पहचान लिखदु
गले में लटका लूं हांडी गाँवों मे नंगे पेरों के निशान लिख दूँ
इन्सानों को नसीब नही है शुद्द पानी जिस पानी मे लोटे कुत्ते
मुझे पीना है वो पानी सोचा उस गंदे नाले का नाम लिख दूँ
शुद्र था शुद्र हूँ सोचा शुद्र होने कि पहचान लिख दूँ
हॉ मै हिन्दु हू सोचा मेरे हिन्दू होने की पहचान लिख दूँ
उधेड़ूँ चमड़ा मर्त पसुओं का ओर ये पेसा सरेआम लिख दूँ
छुता नही मुझे कोई उच्च वर्ण का ये भेद भाव चूप चाप सह लू
हॉ मै हिन्दू हु सोचा मेरे हिन्दू होने की एक पहचान लिख दु
पढ़ना लिखना मेरा पाप है मंत्र सुनना महा पाप है सोचा ये इंसाफ़ लिख दूँ
मै सेवा करूँ उच्च जाती कि ये ईश्वर का आह्वान है
मंदिर मे प्रवेश किया तो इश्वर का अपमान लिखदु
है बाहर गॉव से रहना मुझको मले कपड़ो में मेरी पहचान लिखदु
हॉ मै हिन्दू हू सोचा मेरे हिन्दू होने कि एक पहचान लिखदु
रामरत्न सुडा दिल रोता है मेरे पूर्वजों का हूआ वो अपमान लिखदु
रोटी नसीब नही थी दो वक्त कि सोचा भुखे पेट के वो अरमान लिखदु
रहना नंगे बदन वो बहन बेटी का ओर लुटती आबरू सरेआम लिख दूँ
हॉ मै हिन्दू हू सोचा मेरे हिन्दु होने कि एक पहचान लिखदु
मंगलवार, 3 मार्च 2020
सपना मात पिता का
मात पिता भगवान तेरे फिर क्यों मंदिर मे झाँक रहा
देवी रूप तेरी जननी मॉ फिर क्यों पत्थर मुर्त ताक रहा
जन्म दीया तेरी मॉ ने, पाल पोस कर पिता तेरे ने बड़ा किया
वाह रे इन्सान समझ नही फिर पत्थर को क्यों सम्मान दीया
जिसने जन्मा जिसने पाला क्यों उसका अपमान किया
मंदिर मे चला चढ़ाने भोग तु छप्पन मात पिता को सुख से निवाला
एक भी तुने नही दीया
वाह रे इन्सान समझ नही फिर पत्थर को क्यों सम्मान दिया
ख़ूब खिलाया ख़ूब पिलाया जब तू न्नहा बच्चा था
मात पिता ने ख़ूब संजोया हर वो सपना उन कि नज़र मे पक्का था
जब बुडे हो गये मात पिता हर सपना उनका टूट गया
प्यारी लगी अब नार जो तुझको अब तुं जो उनसे रूठ गया
भुल गया भगवान असल के अब तु पाखण्ड मे जो उलझ गया
वाह रे इन्सान समझ नही फिर पत्थर को क्यों सम्मान दिया
लाखों ढगाए वर्त मे तुने लाखों का क्यों हवन किया
क्या फ़ायदा इस पाखण्ड का जब असल भग्वान को तुने ठूकरा दिया
कभी गीता कभी वेद पुराण कभी मनु का तुने पाठ किया
मात पिता चाहे भूखे प्यासे उनका क्यो ना ध्यान किया
रामरत्न सुडा ध्यान करो भगवान तेरे हैं मात पिता अब उनका सम्मान करो
पत्थर तो पत्थर है होता अब ना तुम अंधविश्वास करो
पत्थर तो पत्थर है होता अब ना तुम अंधविश्वास करो
सोमवार, 2 मार्च 2020
तुम्हारी परी
मुझे मत मरवाओ बाबुल प्यारे मैं मात को:ख से बोल रही
मैं भी देखुं धरती अम्बर मेरे मन की आँखें बोल रही
क्या क़ुसूर मेरा मैं पली को:ख मे जननी मॉ मुझे कोख में ही
क्यों मरवाने को बोल रही
मुझे मत मरवाओ बाबुल प्यारे मैं मात को:ख से बोल रही
जननी मॉ आभास करो तुमभी तो कभी बच्ची थी
मेरी तरहा ही जीवन की डोर कभी तुम्हारी कच्ची थी
चुभाकर तुम देखो कॉटा कितना होता दर्द तुम्हें
चली छुरीयॉ को:ख मे मुझपर हुई असहनीय पिडा मुझे
जीते जी मेरे अंग कटवाए क्यो दर्द का हुआ नही आभास तुम्हें
मुझे मत मरवाओ बाबुल प्यारे मैं मात को:ख से बोल रही
बाहर झॉककर देखो बाबुल बेटी होती बोझ नही
जो बेटी को पत्थर बोले क्या लगती तुम्हें अफ़वाह नही
मत मरवाओ को:ख मे बाबुल मुझको भी तो जीने दो
मै भी बूलंदीया छुलूँगी मुझे दूध मात का पिनें दो
मुझे मत मरवाओ बाबुल प्यारे मैं मात को:ख से बोल रही
लटकी छुरी गर्दन पर मैं रोती बिलखती बोल रही
रहम करो मेरे मात पिता मै मै भूर्ण को:ख मे खेल रही
मुझे जन्म तो लेने दो बाबुल मै बनूँगी तुझपे बोझ नही
खिला दुगी मै चमन आँगन मे मुझे बाहर को:ख से आने दो
मुझे मत मरवाओ बाबुल प्यारे मै मात को:ख से बोल रही
रामरत्न सुडा मत पाप कमाओ बेटी को भी तो जीने दो
चमन होजाए धरती मॉ मेरे पॉव जमी पे टीकने दो
चमन होजाए धरती मॉ मेरे पॉव जमी पे टीकने दो
रविवार, 1 मार्च 2020
जीस खेत की हो कमजोर बांड
जिस खेत की हो कमजोर बाड उस खेत की फसल कदे पकती नही
जिस घर का हो मुखिया आलसी उस घर की ईज्जत बच सकती नही
पढ्या लीखा हो मोन जहा ओर अण पढ के हो बोल वहा ज्ञान की गंगा बही नही
जिस खेत की हो कमजोर बाड उस खेत की फसल कदे पकी नही
बडे बुजूर्गो का होता हो जहॉ सम्मान नही वहॉ शिक्षा का होता मान नही
जहा बच्चा बोले बडो से अकड कर मानो संसकारो का उस घर मे होता ज्ञान नही
जो करता हो चुगली जारी बेईमानी वो बच्चा होता नादान नही
जो बहु झॉके घर दुजे का तो उसे अपनी ईज्जत का होता है स्वाभीमान नही
मर्द जो ताके ओरत दुजी उसे मर्द की होती है पहचान नही
जो बेटी बोले बोल बेहुदे उस बेटी पे करो विश्वास नही
जिस खेत की हो कमजोर बाड उस खेत की फसल कदे पकी नही
जो नार ईतराए मर्द पराया उस नार का करो एतवार नही
जो भाइ हडपले धन माइका उसे भाई कहण का हक नही
जो बाप करे दुभॉत जाए त उस त उस से बडा कोई अन्याय नही
जो मात पिता पै जुलम करे हो पापी ऐसी सन्तान नही
रामरत्तन सुडा लीखे कवीताइ तेरा भी है धर्म यही
कहॉ गई वो गाँव की बस्ती जीसमें प्यार समाया था
कहा गइ वो गाँवों की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
कच्चे घरों की कच्ची बस्ती पर दिलों मे ताज संजोया था
बहन बेटी की इज़्ज़त को उन लोगों ने सरताज बनाया था
कहा गई वो गाँवों की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
मिल जुलकर चलना वो सबका बच्चों का खेल था टोली का
कभी कुस्ती कभी कब्बडी कभी खेल वो अॉख मिचोली का
कहा गया वो टीका जो होता था बच्चों के नज़र बचाने का
कभी काजल का कभी कुम कुम कभी किया करें थे रोली का
नही रहा वो नज़राना जो बाबुल के कंधे दिखाते थे
कहा गए वो हल जुएँ जो उँट ओर बैल चलाते थे
नही रहा वो साज बाज़ बडे बुजूर्ग जो गाते थे
नही थे आज के मेवे मीठाई फिर भी पकवान बनाते थे
मिट्टी की हॉडी मे बना बाकली वो मील बँटकर खाते थे
नही करते थे मदिरा सेवन फिर भी पार्टी मनाते थे
हस्ट पुस्ट थे सेहत मंद वो नही डब्बों की प्रोटीन खाते थे
हर जीव से प्यार था दील मे ना मुर्ग़ा तीतर खाते थे
ना पराए धन की आस थी दील मे ना अरबों कमाने का था सपना
हर एक नीवाला खाया था वो जो खुन पसीने से कमाया हो अपना
कहा गई वो गॉवो की बस्ती जिसमें प्यार समाया था
हर एक तिनका लगा वो जो खुन पसीने से कमाया था
हर एक घोंसला आपस मे मील जुलकर संजोया है
रामरत्न सुडा लिखे कवीताई हर दील मे प्यार संजोया था
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