बुधवार, 30 दिसंबर 2020

Talas तलाश

 बहुत कुछ दिया इस जिंदगी ने, नजाने फिर भी क्यों तलाश अभी बाकी है

बहुत कुछ खोया लेकिन जो पाया इस जिंदगी में वोभी जिंदा रहने के लिए काफी है

बहुत कुछ दिया इस जिंदगी ने, नजाने फिर भी क्यों तलाश अभी बाकी है

बहुत हैं अरमान तो इस दिल में कुछ  पूरे भी हुए लेकिन  कुछ अरमान अभी भी बाकी हैं

समझ ना सका जमाना मुझे लेकिन मैने जमाने को समझा मेरे मुकाम के लिए इतना भी काफी है

फिर भी सुन ओ रामरतन सुड्डा तेरा तो मुकाम ही 

अभी बाकी है

बहुत कुछ दिया इस जिंदगी ने, नजाने फिर भी क्यों तलाश अभी बाकी है

जिंदगी ने हिम्मत दी है तुझे तू संघर्ष कर तेरा संघर्ष अभी बाकी है

तुम्हे जाना है जिस मंजिल पर उसका सफर अभी बाकी है 

बहुत कुछ दिया इस जिंदगी ने, नजाने फिर भी क्यों तलाश अभी बाकी है



 

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

नीयत niyet

 लाख कोशिश करो किसी गिरे हुए इंसान को उठाने की तुम नहीं उठा पावो गे, जबतक उसकी खुद नीयत नहीं होगी उठ जाने की

चाहे लाख निंदा करो इस जमाने की यहां आदत सी होगई है दुनिया को बार बार लाते खाने की

अंधे तो बिन आंखो के होते हैं यहां तो कमी ही नहीं दोदो आंखो आंखो वाले अंधो के भी होने की

लाख कोशिश करो किसी गिरे हुए इंसान को उठाने की तुम नहीं उठा पावो गे, जबतक उसकी खुद नीयत नहीं होगी उठ जाने की

बहुत गिरे इंसान इस जमाने में नीयत वाले फिर उठे फिर गिरे आखिर सफल होही गए उठजाने में 

कुछ फिर भी नहीं उठ पाए जिन को कमी ना रही समाजसमाज के सहयोग पाने में

लाख कोशिश करो किसी गिरे हुए इंसानइंसान को उठाने की तुम नहीं उठा पावो गे, जबतक उसकी खुद नीयत नहीं होगी उठ जाने की

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

Aaj ka bhart


ये आज का भारत है साहेब 

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी कंपनी के नाम की कीमत होती है

खरदी जाति है यहां महंगे भाव में कंपनी से पैक सुंदर कटो की अनाज महंगे दामों में किसान के खेत में तो वहीं अनाज कोड़ी

के भाव होता है

ये आज का भारत है साहेब 

यहां बिकता है किसान के खेत में आलू 5 रुपए किलो

वहीं आलू कंपनी के गोडावण में 50 रुपए किलो होता है

अन फल सब्जी पैदा करने वाला सोता है यहां झोपड़ियों

में कुर्सी पर बैठ ऑर्डर देने वाला मिल मालिक महलो में होता है

ये आज का भारत है साहेब 

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी के नाम की कीमत होती है

यहां बिक जाति है सुंदर थैली में पैक दाले 500 रुपए किलो के भाव वहीं किसान के खेत में मूंग चना 20 रुपए में भी महंगा होता है

खरीदी नहीं जाती किसान कि सरसो कोड़ी में वहीं मिल में त्यार तेल 10,15 हजार के भाव होता है 

ये आज का भारत है साहेब 

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी के नाम की कीमत होती है

लेते समय काट लेता है सुनार भी नगीनों का वजन देते समय वहीं नगीना भी सोने के भाव होता है

ये आज का भारत है साहेब  

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी के नाम की कीमत होती है 

खरदी जाति है यहां महंगे भाव में कंपनी से पैक सुंदर कटो की अनाज महंगे दामों में किसान के खेत में तो वहीं अनाज कोड़ी कोड़ी के भाव होता 

ये आज का भारत है साहेब

यहां बिकता है किसान के खेत में आलू 5 रुपए किलो

वहीं आलू कंपनी के गोडावण में 50 रुपए किलो होता 

अन फल सब्जी पैदा करने वाला सोता है यहां झोपड़ियों

में कुर्सी पर बैठ ऑर्डर देने वाला मिल मालिक महलो में होता 

ये आज का भारत है साहेब

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी के नाम की कीमत होती है

यहां बिक जाति है सुंदर थैली में पैक दाले 500 रुपए किलो के भाव वहीं किसान के खेत में मूंग चना 20 रुपए में भी महंगा होता 

खड़ी नहीं जाती किसान कि सरसो कोड़ी में वहीं मिल में त्यार तेल 10,15 हजार के मोल होता है

ये आज का भारत है साहेब

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी के नाम की कीमत होती है

लेते समय काट लेता है सुनार भी नगीनों का वजन 

देते समय वहीं नगीना भी सोने के भाव होता 

ये आज का भारत है साहेब

यहां पियोरीटी की नहीं कंपनी के नाम की कीमत कीमत होती है है  है हैहै है

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

Baris ka mosam

 आज फिर सावन आया है

आज फिर सावन आया है

भीगी भीगी पलकों पर आसा की किरणे लिया है

खेतों में रौनक गलियों में कीचड़ ही कीचड़ छाया है

आज फिर सावन आया है

भीगी भीगी पलकों पर आसा की किरणे लिया है

खेतों में रौनक गलियों में कीचड़ ही कीचड़ छाया है

आज फिर सावन आया है

बच्चो की उछल कूद के संग फूलों को महकाया है

खेतों में हरियाली के संग मन को फूलों की खुशबू की महक लाया है 

आज फिर सावन आया है

किसान ने थामे हल ओर जुए ओर बीजों को संवारा है

नीले गगन में आज फिर काले बदल घन घोर घटाओ

का साया है

आज फिर सावन आया है

बारिश की बूंदों के संग ठंडी हवाएं लाया है

कभी मूसलाधार पानी तो कभी फुआरी को बसाया है

आज फिर सावन आया है

सुनाई देने लगी खेतों में पखियो की च चाहटे कॉयेलो ने मधुर सुर गाया है

फूल खिलने लगी कालिया बगो मेंगुनगुनाया ने गुन गुनगुनाया हैं 

आज फिर सावन आया है




आज फिर सावन आया है

बच्चो की उछल कूद के संग फूलों को महकाया है

खेतों में हरियाली के संग मन को फूलों की खुशबू की महक लाया है 

आज फिर सावन आया है

किसान ने थामे हल ओर जुए ओर बीजों को संवारा है

नीले गगन में आज फिर काले बदल घन घोर घटाओ

का साया है

आज फिर सावन आया है

बारिश की बूंदों के संग ठंडी हवाएं लाया है

कभी मूसलाधार पानी तो कभी फुआरी को बसाया है

आज फिर सावन आया है

सुनाई देने लगी खेतों में पखियो की च  चाहटे कॉयेलो ने मधुर  सुर गाया है

फूल खिलने लगी कालिया बगो में भंवरो ने गुन गुनगुनाया हैं 

आज फिर सावन आया है



शनिवार, 19 दिसंबर 2020

Kisan andolan

 किसान आंदोलन सफल हो ये हर किसान का नारा है

किसान आंदोलन सफल हो ये हर किसान का नारा है

हक़ अपने हम लेके रहेंगे, कहादो इन जुमले बाजो से ये भारत देश हमरा है

किसान आंदोलन सफल हो ये हर किसान का नारा है

हमने सिंचा इस धरती को हमने हल चलाए है अपने मासूम बच्चो कभी ठिठुर ती ठंड में तो कभी किलकती

धूप में अपने मासूमों कों जलाया है

खून का पानी करके हमने ये अनाज उग्या है सींच के अपने पसीने से हमने ये फसल पकाई है 

केसे देदे रदि में यही हमारी रोजी है ओर यही हमारी कमाई है 

किसान आंदोलन सफल हो ये हर किसान का नारा है

हक़ अपने हम लेके रहेंगे, कहादो इन जुमले बाजो से ये भारत देश हमरा है

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

Kisan ki mehanat

मेहनत किसान कि

खेतों में है मेहनत करता रर लोगो खून किसान का 

देश की खातिर खून बहता पूत किसान का

खेतों में है मेहनत करता रर लोगो खून किसान का 

देश की खातिर खून बहता पूत किसान का

कई सेना में बलिदान होरहे पूत किसान के

सबसे बढ़ कर है रे लोगो हुनर किसान किसान का

देस की खातिर हर बार बाहा है खून किसान का

खुद का पेट हो खाली चाहे पर ओरो का पेट भरने देखो

रेर लोगो जुनून किसान का

आज माटी के मै मिलता दिख अरमान किसान का

क्यों रो रो के न फांसी खारे रेे लोगो पूत किसान के

आज माटी के मै मिलता दिख खून किसान का

रदी के भा मै बिकता रे लोगो अनाज किसान का

खेतों में है मेहनत करता खून किसान का 

उद्योग पति तो खेल रे लोगो खेल करोडो में

पूंजी पतियो निभाकर देखो एक दिन रोल किसान का

पता चले तुम्हे भी माहौल किसान का

क्यों सरकारों ने भी खोस लिए हक अधिकार किसान का

आज बर्बाद होगया लोगो र रोजगार किसान का

खेतों में है मेहनत करता रर लोगो खून किसान का 



कई सेना में बलिदान होरहे पूत किसान के

सबसे बढ़ कर है रे लोगो हुनर किसान किसान का

देस की खातिर हर बार बाहा है खून किसान का

खुद का पेट हो खाली चाहे पर ओरो का पेट भरने देखो

रेर लोगो जुनून किसान का

आज माटी के मै मिलता दिख अरमान किसान का

क्यों रो रो के न फांसी खारे रेे लोगो पूत किसान के

आज माटी के मै मिलता दिख खून किसान का

रदी के भा मै बिकता रे लोगो अनाज किसान का

खेतों में है मेहनत करता खून किसान का 

उद्योग पति तो खेल रे लोगो खेल करोडो में

पूंजी पतियो निभाकर देखो एक दिन रोल किसान का

पता चले तुम्हे भी माहौल किसान का

क्यों सरकारों ने भी खोस लिए हक अधिकार किसान का

आज बर्बाद होगया लोगो र रोजगार किसान का

खेतों में है मेहनत करता रर लोगो खून किसान का 


मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

Kisan

कदर किसान की

 हे किसानकिसान तुहि धरती का रखवाला है

तूने ही संवारा है धरती को 

ओर तुहि सभी का पेट भरने वाला है

ना जाने क्यों ना समझे ये जमाना 

हे किसान तूने ही ईश्वर का रूप सवारा है

भूखे पेट चलाए है हल तूने ओर खून पसीने 

से अन का बनाया हर एक निवाला है

हे किसान किसान तुहि धरती का रखवाला है

कोई नहीं है तेरा तू है अकेला फिर भी तू ना हरा है

कभी ओलो की बोछरो से तो कभी सूखे की मरो से

तू गया हरबार मरा है

गरमी की लेप्टो में ओर सर्दी की रवानी में भी तूने 

धरती मां को संवारा है

भूखा ना रहे कोई धरती मां की गोद में बस इसी आस से तूने हल ओर जुआ चलया है हर मुश्किल हालातों में भी तू खड़ा खेतमे पाया है 

हे किसान किसान तुहि धरती का रखवाला है

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

Bhart ki tasvir

 क्या गजब की दिखाई है तस्वीर भारत की 
आज के मीडिया और सरकारों ने

उछल रहा है भारत झूठे इन हसी नजारो में 

एकबार खुश तो कर दिया मुझे भी चमक ते

धमकते भारत की तस्वीरों ने

क्या गजब की दिखाई है तस्वीर भारत की 

आज के मीडिया मीडिया और सरकारों ने

जब उतारा में सड़कों पे तो आंखे रोने लगी

जब देखी तस्वीर इन हकिकी नज़ारो में

झुल रहा था किसान किसान फांसी के फंदे पर

ओर बर्बाद होरहा था अनाज बहते गंदे नालों में

क्या गजब की दिखाई है तस्वीर भारत की 

आज के मीडिया मीडिया और सरकारों ने

चमक रहा था भारत सिर्फ नेताओं कि वाणी

ओर न्यूज चैनल वालों की वीडियो क्लिप ग्राफी में

कुछ लेते घुस दिखे सड़कों पे मुझे जो थे वर्दी खाखी

में कुछ बहते दिखे मासूम मुझे बिन ढकन के चेमर ओर

कुछ खुली बहती गंदी नाली में

क्या गजब की दिखाई है तस्वीर भारत की 

आज के मीडिया और सरकारों ने

कुछ करते मेहनत मजदूर दिखे वो भी पेट खाली थे

कुछ चस्मा पहने भगत दिखे जो थे शायद अंधे विकाश की 

रखवाली में 

कुछ बेबस ओर लाचार दिखे जो खा रहे थे 

रोटी भी संग पानी के

क्या गजब की दिखाई है तस्वीर भारत की 

आज के मीडियामीडिया और सरकारों ने


मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

Murti pujan: मूर्ति पूजा

पत्थर पूजा

कैसे उभेरे देश मेरा यहां पत्थर पत्थर पूजे जाते है

मात पिता हो चाहे भूखे प्यासे यहां पत्थर की देवी के उपर पकवान परोसे जाते हैं
कैसे उभेरे देश मेरा यहां पत्थर पूजे जाते है
विद्यालय यहां हो खंडहर चाहे मंदिर मंदिर ऊंचे चाहते है
पत्थर पे चडता दूध यहां कई बेबस लाचार भूख से मारे जाते हैं
कैसे उभेरे देश मेरा यहां पत्थर पूजे जाते है
गरीबी ओर लाचारी से मरते है हर रोज मजलूम यहां पत्थर की मूर्तियों पे हीरो के हार चढ़ाए जाते है
कई हजारों झोपड़ पटियो में इंसान अंधेरे में झट पटाते है 
पत्थर की मूरत के आगे यहां पर असंख्य दीप जलाए जाते हैं
कैसे उभेरे देश मेरा यहां पत्थर पूजे जाते है
पढे लिखे नौजवान यहां पर कोसो पैदल जाते है पत्थर की मूरत से देखो रोजगार की आस लगाते हैं
जब तक होना पाते दर्शन पत्थर मूरत के वो अनपान नहीं खाते हैं
कैसे उभेरे देश मेरा यहां पत्थर पूजे जाते है
ढोंगी ओर पाखंडी बाबा ख़ूब ही ढोंग रचाते हैं दिनभर लेते दान दक्षिणा साम को होटल में जाकर बड़े सोक से दारू के संग मुर्गा तीतर खाते हैं
बड़े बड़े नेता अफसर भी इनको शिश झुकाते है इन झूठे मकारो से पुण्य की आस लगाते है भेजेंगे सीधा स्वर्ग चरणों में शीश झुकाते हैं
पत्थर की मूर्ति के आगे पशुओं का खून बहाते हैं देवी को खुश करने की एवज अनबोल पशु को, बलि चढ़ा ते हैं 
खुद को ईश्वर का रूप बताने वाले खुद कच्चा मांस चबाते है
कैसे उभेरे देश मेरा यहां पत्थर पूजे जाते है मूर्ति पूजामूर्ति पूजा 

                    लेखक :- रामरतन सुड्डा

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

Dasahara rawan dahan

 

जब समाज में हजारों दरिंदे जिंदा है तो अकेला रावण दहन क्यों

मै साम को खाने के बाद बाहर  टहलने निकला ही था कि मेरे घर के आगे से बहुत से लोगो की भीड़ निकली वो एक रैली सी थी लोग नारे बाजी करते आगे बढ़ रहे थे ओर बढ़ते ही जारहे थे फिर भी लोगों की कतारकतार खत्म नहीं हो रही थी शायद गांव के बच्चे बूढ़े ओर महिलाएं भी उस रैली का हिसा थी मैं नहीं समझ पाया था की आखिर आज गांव के लोग रैली किस बात की निकाल रहे हैं मैने एक दो व्यक्ति से पूछना चाहा को एकदम वृद्धा अवस्था अवस्था के थे लेकिन उनका जोस देखने में किसी जवान लड़के से कम नहीं था वो नारे बाजी में इतने वेस्त थे कि उन्होंने मुझे कुछ बताने कि वाजाय अपने साथ रैली में चलने को बोला और आगे बढ़ ने लगए मै भीड़ में उपस्थित लोगों का उत्साह देखकर मै सोचने लगा जरूर गांव के किसी होनहार वयेक्ती या बचे ने कोई ऐसा काम किया होगा जिस से गांव का नाम रोशन किया होगा उसी के सम्मान समारोह समारोह का आयोजन होगा तभी लोगों में इतना उत्साह ह में ऐसा ही कुछ सोच कर भीड़ के साथ चलने लगा भीड़ चलती चलती नारेबाजी करते करते गांव के चौपाल की ओर बढ़ने लगी गांव की पतली गलियों से निकलते निकलते भीड़ जाकर गांव के चौपाल पर जाकर इकठ्ठा होने लगी मैं भीड़ में सबसे पीछे ही पीछे था मै यह जानने को बहुत ही उत्सुक था कि आगे हो क्या रहा है मने भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ना सुरु किया आगे एक बहुत ही विशाल काए पुतला बनाया हुआ था ओर गांव के सभी लोग पुतले के चारो ओर इकठ्ठा थे मैं पुतले को देख मै समझ नहीं पाया था कि ये पुतला किसका है ओर ये सभी लोग इसके चारो और इकठ्ठा क्यों हो रहे हैं लोगों मै इतना उत्साह किस लिए ह मैने एक व्यक्ति से पास जाकर पूछा वो एक रिटायर्ड परेंसिप्ल थे उन्होंने मुझे बताया आज दशहरादशहरा ह ओर ये रावण का पुतला ह ओर गांव के सभी लोग रावण को जलाने की खुशी में ही इतने उतावले ह में ये सब सुनकर चौपाल पर बनी सीढ़ियों पर जाकर बैठ गया और एकटक देखने लगा देखते ही देखते धीरे धीरे एक एक कर सभी लोग खंडित होकर रधर उधर खिसकने लगे ओर चौपाल में मानो पांच सात वेयक्ती ओर बच्चे घूमते ओर एक ओर महिलाओं का बड़ा सा गुट नजर आरहा था मै फिर सोच में पड़ गया आखिर सभी लोग गए कहा कुछ समय बाद सभी लोग एक एक कर ईधर उधर से आने लगे उनकी चाल ओर हाव भाव से ऐसा लग रहा था मानो सभी लोग किसी ठेके या शराब की दुकान से होकर आए हो ओर शराब शराब के नसे में धुत हो कुछ लगो को देखकर तो साफ साफ नज़र आरहा था वो नसे में एकदम धुत थे देखते ही देखते भीड़ वापस बढ़ने लगी बच्चे उछल कूद करते नजर आरहे थे मानो बच्चो के मन में बस एक ही सवाल दौड़ रहा हो कब पुतले को आग लगाई जाए ओर कब पठाको की गड़ गड़ाहट सुनाई दे रावण के पुतले को आग लगने की पूरी तयारी होचुकी थी फिर से नारे बजी सुरु हुई लोग पटाखे ओर फुलझडियां जगाने लगे इसी बीच कुछ लूचे लफंगे लोगो की नजर गांव की बहन बेटियो की तरफ टिकी हुई थी आंखे नसे से चमक रही थी मानो वो लोग रावण रावण के पुतले को जलाने नहीं बल्कि गांव की बहन बेटियों को देखने आए हो मै सीढ़ियों पर बैठा बैठा सब देखरहा था में मन ही मन सोच रहा था ये लोग अपने अंदर के रावण को मिटा नहीं पाते तो रावण के पुतले को जलाने से क्या फायदा नसा जुआ शराब बहन बेटियो की तरफ बुरी नजर  इन सब आदतों से भरे इन इन्सानों से बुरा तो शायद रावण भी नहीं होगा फिर भी रावण के पुतले को जलाकर खुशी मना रहे हैं ये सब देख मुझे बहुत बुरा लग रहा था रावण को जलाने वाले लोगो की भीड़ में शामिल होना मूर्खता सी लग रहा था क्योंकि कुछ लोगो की नीयत साफ साफ नज़र आरही थी मानो वो कुछ लफंगी हरकत करने के इरादे से ही आए हो उन लोगों के अंदर का इंसान मानो मर चुका हो ओर साथ ही अंदर की इंसानियत भी, कोई अपने अंदर झांक कर नहीं देखता बल्कि दूसरे की बुराई सभी को दिख जाति है पता नहीं आज के लोगों की कैसी मानसिकतामानसिकता हो गई है सदियों पहले के रावण का पुतला हर वर्ष जलाया जाता है जिसका पता भी नहीं वो अच्छा था या बुरा कोई रावण था भी या नहीं अपितु खुद के अंदर की बुराई किसी को भी नजर नहीं आती कोई खुद को नहीं बदलना चाहता,
खुद को बदले बगैर पुतले बेसख कितने ही क्यों ना जलालो कोई फायदा नहीं
कुछ समय बाद पुतले को आग लगा दी गई ओर चरो ओर धुआं ही धुआं पटाखों की गड़ गड़ाहट के साथ ही लोग ईधर उधर भागते नजर आने लगे  शायद पटाखे फुटकर भीड़ में गिरने लगे थे इसी का फायदा उठाने की फिराक में कुछ लोग महिलाओं कि तरफ बढ़ने लगे ओर महिलाओं महिलाओं मै जाकर इस कदर गिर गए मनो उन्हें कुछ अपने बारे में पता ही नहीं हो वो कहा है मै शुरू से ही उन्हें देखरहा था उन्हें देख लगरहा था मानो वरसो से इस दिन का इंतजार कर रहे हो कब वो दिन आए ओर कब अंधेरे का फायदा उठाएं 

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

Bhumi hin kisan

 


भारत देश की अर्थव्यवस्था में भारतीय किसानों का बहुत बड़ा योगदान रहा है भारत देश एक कृषि प्रधान देश ह ओर भारत की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिंसा कृषि पर आधारित होने के बावजूद भी भारतीय किसानों की हालत दिनप्रती दिन बद से बातर होती जारही है देश के किसान देश ओर दुनिया का पेट भरते हुए भी खुदका पेट भरने में असक्षम हैं 

भारतीए किसानों में ज्यादातर किसान भूमि हिन ह येबात दिखने ओर सुनने में रोचक जरूर हैं कि भूमि के बिना कोई किसान किसान कैसे होसकता है मगर ये सच्चाई है भारत में बहुत से किसान भूमि हिनह ये वो किसान ह जो देश ओर दुनिया का पेट भरने के लिए दिन रात खेतो में मेहनत करते हैं 

भूमि हिन किसान या तो किसी जमींदार की कृषि योग्य भूमि को वार्सिक ठेके पर लेते हैं या भूमि मालिक को उपज का आधा हिंसा देने की एवज पर खेती करने केलिए भूमि लेते हैं 

अगर ये किसान किसी जमींदार की दस पांच बीघा जमीन ठेके पर लेते हैं उसमे अनाज होने या नाहोने से जमींदार का कोई वास्ता नहीं होता जमींदार जिस भी ऑस्त पर किसान को अपनी जमीन का जोभी हिंसा किसान को देता है उसी एवज की रकम बुआई से पहले ही किसान से लेलेता है उसके बाद बीज बुआई कीटनाशक या जो कोई भी अन्य खर्च होता है वो भी किसान को खुद अपनी जेब से देना होता है 

कुछ किसान ठेके की एवज की रकम नहीं जुटा पाते वो किसी जमींदार से खेती में उपज के संपूर्ण अनाज के आधे हिस्से को जमींदार को देने की एवज पर खेती लेकर खेती करते हैं इस आधे हिंसे के पर्वधन में बीज बुआई कीटनाशक का खर्च ओर मेहनत किसान करता है ओर भूमि मालिक बस इसलिए उपज का आधा हिंसा बतौर लेता है कि भूमि कागजी तौर पर उसके नाम होती है

मेहनत किसान करता है ओर जमींदार आराम से अपने घरों में बठा बैठा खाता है सिर्फ इसलिए कि सो दोसो पांच सौ हजार बीघा जमीन का मालिक है

जमींदार किसानों कि मेहनत की खाने से खुश नहीं होता बल्कि सरकार से भी अपनी भूमि के नाम से किसान क्रेडिट बतौर पैसे उठता है ओर समय पर बारिश ना होने या अन्य किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से फसल में नुकसान हो जाने से सरकार से कर्ज माफी की अपील भी करता है ओर कर्ज माफी का फायदा भी उठता है जबकि भूमि मालिक भूमि पर ना तो कासत करता है ओर ना ही खर्च भूमि पर कासत ओर खर्च किसान करता है

ये किसान खेती पर आश्रित होते ह ओर खेती करने केलिए यातो सरकार से उचित बियाज पर या साहूकार से

मन मांगे बियाज़ पर रकम लेकर खेती करते हैं ओर समय पर बरसात या सिंचाई ना होपाने की वजह खेती में फसल अच्छी नहीं होने से कर्ज नहीं लौटा पाते ओर बीयाज के बोझ तले दब कर साहूकार के तानों ओर सरकार के नोटिसों से तंग आकर या तो आत्म हत्या करने पर मजबुर होजाते है या अपनी मानसिक स्थिति खो देते हैं

सरकार को ऐसे किसानों के बारे में कुछ सोचना चाहिए ओर भूमि हिन किसानों को भूमि देनी चाहिए क्योंकि ये कोई ज्यादा सोचने वाली बात नहीं है किसी घर में पांच सदस्य ह ओर सो दो सौ  बीघा जमीन का मिलिक है तो वो इतनी जमीन कि कासत नहीं कर पाता ऐसे भूमि मालिक या तो भूमि किसी किसान को ठेके पर या उपज के आधे  हिस्से की एवज पर दे देते है ऐसे में सरकार को किसी एसी योजना का गठन कर भूमि की कासत करने वाले किसान को अलॉट करदेना चाहिए ओर भूमि मालिक को सरकारी रेट पर किस्तों के द्वारा पैसे चुकाने का प्रावधान करना चाहिए जिससे बेवजह जमींदारों से पीस रहे भूमि हिन किसानों को बचाया जा सके ओर  देश में कोई भी किसान भूमिहीन ना रहपाए ओर सरकारी योजनाओं का उचित लाभ सही हकदार को मिल पाए

जिस से किसान आत्म हत्याएं कम हो 

 

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

बलात्कार ओर अत्याचार



आज के इस दौर में बलात्कार महिला उत्पीड़न जैसे मामले दिन प्रति दिन बढ़ते जारहे है बलात्कार जैसी घटनाएं देश और दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है समाज के बहुत से लोग ऐसे मामलों में सरकार और सिस्टम को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ते ओर वहीं समाज के कुछ असामाजिक तत्व बिना कुछ भय के असामाजिक कृत्य करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते हं ओर वो ऐसे कृत्य को अंजाम दे देते हैं जो संपूर्ण मानव जाति को शर्मसार करदेता है आज एक ओर मनुष्य जाती का एक बहुत बड़ा वर्ग इन घिनौने कृत्यों के खिलाफ आवाज उठा रहा है, और वहीं दूसरी ओर समाज के ही कुछ घिनौने लोग ऐसे मामलों को दबाने और मुजरिमों को बचाने की कोशिश में भी कोई कसर नहीं छोड़ ते सायद मुजरिमों को सजा दिलवाने ओर अत्याचार के खिलाफ लड़ने वालो से ,मुजरिमों को बचाने वाले लोग आर्थिक ओर राजनैतिक रूप से ज्यादा बलवान है सायद इसी वजहसे ही समाज में अत्याचार रुकने का नाम ही नहीं लेरहे ओर मुजरिम बिना किसी भय के जुर्म करते रहते हैं ऐसे में सवाल यह है बलात्कार अत्याचार जैसे  मामलों से निपटा कैसे जा सकता है ऐसे मामलों को खत्म  केसे जा सकता है सबसे पहले हमें किसी समस्या से निपटने के लिए उस समस्या के कारणों के बारे मे पूरी जानकारी का होना जरूरी है हम किसी भी समस्या को उसके कारणों की जानकारी के अभाव में खत्म नहीं कर सकते उस समस्या से निजात नहीं पा सकते हैं 

सबसे पहले हमें ये जानना जरूरी है कि बलात्कार जैसी घटनाएं आखिर होती क्यों है, क्या बलात्कार सिर्फ महिलाओं का होता है या फिर होता है पुरुषों का भी, मेरे ख्याल से बलात्कार महिला ओर पुरुष दोनों का हीं होता है। महिला बलात्कार उजागर होजाता हैं और पुरुषों का उजागर होने की बजाए सामाजिक लिहाज से पुरुष दबाना ज्यादा महफूज समझते हैं या अपने आप दब जाता है 

बलात्कार को आप कहा तक समझ ते है क्या आप महिलाओं के साथ जब्रजस्ती करने अस्लिलता जैसे घिनौने कृत्य करने मात्र को बलात्कार समझते हैं तो आपका ये सोचना मेरे ख्याल से गलत है किसी भी मानव जाति को उसकी इच्छा के खिलाफ जब्रजस्ती से अमान्य प्रकार जैसे डरा धमाका कर या किसी मंद बुद्धि इंसान या नाबालिक को बहला फुसलाकर आर्थिक या किसी अन्य प्रकार का लोभ लालच देकर कोई भी काम करवाना मेरा जहां तक मानना है वों भी किसी बलात्कार से कम नहीं हैं और ऐसे मामलों के महिला तो सीकर होती ही है और कुछ हद तक पुरुष भी सिकार होते हैं  

ऐसे मामलों मै महिलाओं के साथ साथ पुरुष भी सीकर होते हैं ऐसे में महिलाओं पे हुए अत्याचार को महिला बलात्कार ओर मेरे ख्याल से पुरुषों पर हुए अत्याचार को पुरुष बलात्कार कहने में कोई संका नहीं होनी चाहिए

अगर समाज से बलात्कार जैसी घिनौनी करतूतों को कोई देश वाकई मिटाना चाहता है तो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पीड़ित पक्ष के साथ खड़ा होना चाहिए ओर दरिंदगी करने वाले इन्सान को कठोर से कठोर सजा दिलवाने का प्रयास करना चाहिए लेकिन पीड़ित पक्ष के साथ तभी खड़ा होना चाहिए जिसमें आपको सच्चाई नजर आती हो या जो भी परिवार किसी दरिंदे कि दरिंदगी का या किसी अन्य अपराधिक गतिविधि का सीकर हुआ हो उसकी पूरी जानकारी आपको हो ओर आपको पाता हो मामला कहा तक सही है ऐसा नहीं हो कोई भी निर्दोष व्यक्ति किसी भी जाल सांजी का सीकर होजाए ओर समाज उसे नीच समझने लगे या उसे अपमानित करे 

अगर समाज से नीच हरकत अत्याचार ,,,मिटाना है तो समाज के लोगों को  में नीच हरकत करने वालो का समाज से बायकॉट करना चाहिए ओर साथ में जुर्म करने वाले लोगों का साथ देने वाले या यू कहा जाए मुजरिमों को बचाने का प्रयास करने वाले लोगों का भी समाज से बायकॉट करना चाहिए 

बलात्कार जैसी घटनाओं में कुछ मामले प्रेम प्रसंग से भी जुड़े होते हैं कई मामलों में दो प्यार करने वाले प्रेमी जोड़े में आपसी मन मुटाव के चलते या फिर किसी अन्य लोभ लालच की नीयत से आपस में नफ़रत होजाने से महिला पक्ष द्वारा बलात्कार जैसा आरोप लगादिया जाता है ऐसे में कसूर महिला ओर पुरुष दोनों का ही होता है ओर सजा पुरुष को भुगतनी पड़ती हैं लेकिन ऐसे मामले बहुत कम ही देखने को मिलते हैं आज के दौर की देखें तो कुछ हद तक ऐसा होना संभविक है 

ऐसे मामले जो पहले प्रेम प्रसंग ओर बाद में बलात्कार जैसे घिनौने अपराध में तब्दील करदिए जाते हैं ऐसे मामलों से निपटने के लिए सरकार को कोई एसी वेबसाइट या ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च करना चाहिए जिसमें किसी भी  प्रेमी जोड़े के बयान ओर बायो डाटा रखा जा सके जिसमें कोई ऐसा वीडियो किलप जिसमें दोनों की सहमति जैसा कुछ रिकॉर्ड किया हुआ हो 

वाट्सएप फेसबुक अकाउंट लिंक किया जा सकता हो ताकि प्रेम प्रसंग जैसे मामलों को कोई बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में तब्दील ना करसके 

ये पोर्टल ऐसा होना चाहिए जिसकी जानकारी गोपन्य रखी कसकती हो ओर एकबार बायो डाटा डालने केबाद बायो डेटा डालने वाले के पास बायो डेटा डिलीट करने केलिए कुछ ही घंटो समय हो उसकेबाद डिलीट नहीं किया जा सकता हो 

ओर सरकार पुलिस आदि भी उस वेब पर किसी व्यक्ति के बायो डेटा को तभी देख सकती हो जब उस व्यक्ति का कोई केस उनके पास आया हो ऐसा करने से प्रशासन जब चाहे तब हर अपराधी की कोई भी आइडी को उस वेब में जरूरी हो डालकर किसी भी केस को समझने में आसानी कर सकती है


 

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

गरीबी

 

मजबूरी क्या होती है साहेब उन लोगों से पूछिये, जो दिन रात खून पसीना बाहा बाहा कर भी सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।।

मजबूरी क्या होती है साहेब उन लोगों से पूछिये, जो दिन रात खून पसीना बाहा बाहा कर भी सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।।

उनके बच्चे क्या जाने शानो शौकत से रहना साहेब जो पैदा होते ही जमीन पर लिटा कर अपने मासूमों को कमाने दोवक्त की रोटी सड़कों पे निकल जाते हैं

होते हैं लाले पेट भरने के जिन लोगो को वो भला कैसे अपने बच्चों को पढ़ा लिखा पाते है

मजबूरी क्या होती है साहेब उन लोगों से पूछिये, जो दिन रात खून पसीना बाहा बाहा कर भी सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।।

कह देते हैं अमीर घराने के लोग आरक्षण खत्म करदो जो मिलती है सुख सुविधा तुम लोगो को वो गरीब गहराने के बच्चो को कहा मिल पाती हैं

वो पढ़ ते है जलाकर लालटेन उन्हें महंगी कोचिंग कहा मिल पाती हैं

मजबूरी क्या होती है साहेब उन लोगों से पूछिये, जो दिन रात खून पसीना बाहा बाहा कर भी सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।।

सरकारें भी होती हैं वोट लेने तक उनकी हिमाती वोट लेने के बाद क्या कोई सुविधा उन तक पहुंचाती हैं

जो मिलती हैं अमीरों को सरकारी सुविधा क्या कभी गरिबो को मिल पाती है

बदलते होंगे देश के अमीर लोगों के हालात सरकारों के सहयोग से गरीबों के मासूम बच्चे तो आज भी रोटी कपड़ा और मकान को तरस जाते हैं

होते हैं अरमान उनके भी कुछ बड़ा करने के पर उनके तो सपने तक भूखे पेट की वजह टूट जाते हैं

मजबूरी क्या होती है साहेब उन लोगों से पूछिये, जो दिन रात खून पसीना बाहा बाहा कर भी सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं।।



शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

ग़ज़ल

 उठा जब नकाब उस काफिर के चहरे से तो च ह रा 

मेरा भी शर्मसार होगया 

कोई गैर नहीं था मेरी बरबादी का जीमेवार मेरे अपनो के  ही हाथो मेरा जिस्म तार तार होगया 

अब किसके लिए उठाऊ हथयार  ए गालिब मेरा अपना खून ही मुझे मिटाने को तैयार होगया

मैं सोचता रहा और बहती रही नदिया अश्कों की जब देखा इंसान ही इंसान का सीकर होगया

अब क्या दिखाना जख्म जमाने को जब जमाना ही खून का नहीं पैसे का दीदार होगया 

रामरतन सुड्डा मत बहा आंसू जमाना आंसुओ का नहीं मतलब का हकदार होगया

उठा जब नकाब उस काफिर के चहरे से तो च ह रा 

मेरा भी शर्मसार होगया 


सोमवार, 21 सितंबर 2020

Corona ka haha kar

कारोना से मचा हा हा कर जब corona लाखों की संख्या पर होगया

ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
उजड़ गए हजारों बेकसूर गरीब घराने और डाक्टरों के लिए ये व्यापार होगया 
दवा तो नहीं इसकी कोई फिर भी नजने क्यों गया जब होस्पिटल कोई मरीज तो बिल लाखों के पार होगया
दिल टूट सा गया मेरा जब भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
किसी गरीब की जान चली गई बिना चेकप के किसी अमीर घराने का इलाज होगया
कल तक तो हंश खिल रहा था आसरा गरीब का भी नजाने कुछ ही पलों में कैसे मातम का हा हा क़ार होगया
ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
होती थी खांसी जुखाम पहले भी जब देखा डॉक्टर ने तो नाजाने क्यों कोरॉना जैसा आसार होगया 
गया तो मैं भी था हाल पूछने किसी बेबस का जब पूछा किसी से तो एक पल के लिए हालात कुछ ठीक और कुछ ही पल में मौत का समाचार होगया
ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
सोशल डिस्टेंस जुरी था पर एक गरीब को पेट की लगी जब आग तो सब बेकार होगया
सरकार ने तो खुल कर कहा था रहना अपने घरों में
खाली पेट देख अपने मासूम बच्चो को बाहर भी जाना जरूरी होगया 
जीना चता था वो भी पर ना जाने के कॉरोना का सीकर होगया गरीब हालातो के चलते तड़फ तड़फ के मरने को लाचार होगया
ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
रोजगार होगया बंद सभी साहू करों को भी मुझसे तकरार होगया रामरतन सुड्डा प्रवासी था वो तभी तो कोसो पैदल चलने को मजबुर होगया
एक कांधे पर सामन और एक कंधे पर मासूम बच्चों का भार होगया
सोती रही सरकार चेन से और एक लाचार खाली पेट के चलते चलते मोत का सीकर होगया
ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
दुखी तो वोभि बहुत हुआ होगा जब उसके मासूम बच्चों को रोटी का एक निवाला भी दुश्वार होगया देखा नहीं गया किसी ये मौत का मंजर तो कोई कोरोना का तो कोई खुद खुसी का सीकर होगया 
ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 
उमर तो नहीं थी उस मासूम की पैदल चलने की संसाधनों के अभाव में वो मासूम भी कोसो चलने को लाचार होगया
पारो में पड़ गए छाले ओर चला तो नहीं जाता होगा उससे पर बूढ़े और मासूम भी जिंदा रहने की जिदों जहद में और चलने को तैयार होगया
ये कैसा कॉरॉना का हा हा कार होगया देखते ही देखते भारत में भी कोरोना लाखों की संख्या पार होगया 



शनिवार, 19 सितंबर 2020

सोने की चिड़िया हो भारत

 

सोने की चिड़िया हो भारत भारत में सोना ही सोना

सोने की चिड़िया हो भारत के सपना सब ने देखा हैं
क्या कोई बतलाएगा जाति धर्म  से भी हटकर , हमने कभी भी बाहर झाक कर देखा हैं
सोने की चिड़िया हो भारत के सपना सब ने देखा है
क्या मैने तुमने  कुर्बानी दी बस सपना ही सपना देखा हैं बलिदान हो गए वीर जवान, क्या हमने कभी दील से उन की कुर्बानी का आभास भी करके देखा हैं
किसी की रोई माताएं बहने किसी के रोई हैं आज भी हम सोए  नींद चैन की, पहले भी हमने ने हमने नींद चैन की सोई हैं
मेरे देश के युवाओं मैं तूम हिंदू में मुस्लिम चाहे हो वो सिख इसाई हैं, जातिवादी धर्म के दंगों से हटकर देश के ईन किरदारो ने क्या कभी भी सोच भी और जगाई है
जाति धर्म पर लड़वा दो सबको मेरे देश के नेताओं ने  बस यहाँ तक सोच कमाई हैं
क्या कोई बतलाएगा  देश की खातिर शहीद हुए जवानो में ,क्या  हुआ शहीद एक भी नेता हैं
सोने की चिड़िया हो भारत यह सपना सब ने देखा हैं
तुम कांग्रेसी मूझे बीजेपी  प्यारी है जानता लड़ती रही आपस मे ईसी बिच ही नेताओ ने बस लूट कि बाजि मारी हैं
सोने की चिड़िया हो भारतीय सपना सब ने देखा  हैं
जाति धर्म के से भी हटकर कभी  हमने विचार भी करके देखा है
सोने की चिड़िया हो भारतीय सपना सभी ने देखा है

                       लेखक रामरतन सुड्डा





शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

वाह रे दुनिया आज का एक ऐसा व्यवहार हो गया

 

 आज की दुनिया का व्यवहार

वाह रे दुनिया आज का ये केसा व्यवहार हो गया
फेसबुक पर हजारों दोस्त और परिवार से मिलना दुश्वार हो गया
मैं करता रहा चैटिंग फेसबुक पर परिवार के संग टाइम बिताना भी दुश्वार हो गया
वाह रे दुनिया आज का ये केसा व्यवहार हो गया
अपनों से हो गई दुश्मनी और गैरों से दोस्ताना व्यवहार हो गया
वाह रे दुनिया आज का एक ऐसा व्यवहार हो गया
तरसती रहे मेरे अपने मेरी सुनने को आवाज मैं सुनाता रहा जमाने को, ये मैं कैसा कलाकार हो गया
वाह रे दुनिया आज का ये कैसा व्यवहार हो गया
लेता रहा गैरों की दुहाई और अपनों से तकरार हो गया
भूल गया मै मेरे अपनों को और गैरों पे एत्बार हो गया
वाह रे दुनिया आज का ये कैसा  व्यवहार हो गया
मिलता रहा गैरों के लिए समय मुझे और अपनों के लिए समय का ही अभाव हो गया
वाह रे दुनिया आज का यह कैसा व्यवहार हो गया
रामरतन सुड्डा लिख देता अफ़साने में भी मेरा गैरों पे विशवास और अपनों से अ विशवास हो गया
वाह रे दुनिया आज का यह कैसा व्यवहार हो गया
लिखता रहा ग़ज़ल में भी गैरों का मनोरंजन और अपनों के लिए सब बेकार हो गया
वाह रे दुनिया आज का यह कैसा व्यवहार हो गया
हस्ती रही दुनिया और मैं हंसाने वाला कलाकार हो गया
मेरे अपनों को देना सका एक छोटी सी मुस्कुराहट भी और मैं सोशल मीडिया का स्टार हो गया
वाह रे दुनिया आज का यह कैसा व्यवहार हो गया

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

क्या भारत की अखंडता से धर्म ज्यादा बलवान होगया


मत लड़ो जाती और धर्म केलिए योही कूचले जाओ गे कभी सवृग तो कभी जिहाद के नाम से

जरा बता ओ जमाने भारत की अखंडता से क्या धर्म ज्यादा बलवान होगया

बहुत खून बहेगा ओ जमाने जब इन्कलाब कहने वालो में भी हिन्दू और मुसलमान होगया  

सुना तो था बिका है देश के नेताओं का ईमान जब देखी आग धर्म की मेरी नजर में बिका सबका ईमान होगया 

मेरे रोते टूटते दिल की ये आवाज़ तो सुन ओ जमाने और बता क्या भाई ही भाई की मौत का मोहताज होगया

जरा बता ओ जमाने भारत की अखंडता से क्या धर्म ज्यादा बलवान होगया 

सुना था ओ जमाने जब यूवा जाग जयेगा वो अनेकता में एकता को और मजबूत बनयेगा

पर ये नहीं पता था तेरा ये आजका यूवा ही जाती धर्म के लिए एकदुजे का दूस्मन हो जायेगा

जरा बता ओ जमाने भारत की अखंडता से क्या धर्म ज्यादा बलवान होगया

कोई पूछो इन धर्म के ठेकेदारों से जब इंसान ही इंसान का बना दिया दुश्मन तुम ने तो क्या ये धर्म कफ़न के रंग बतलाने काम आएगा 

या फिर बनवा देगा चिता या जनाजे की रस्में  बतलाएगा

रामरतन सुड्डा मत लड़ो जाती और धर्म के लिए तुम यू ही लड़ते रहे जाती और धर्म के लिए तभी तो भारत आज बेरोजगार होगया

जाती धर्म के दंगो से ही नेताओं कि कुर्सी का श्रंगार होगया इन्हे क्या लेना हिन्दू मरे या मुसलमान इन नेताओ

केलिए तो जाती धर्म हार ओर जीत का आधार होगया

जरा बता ओ जमाने भारत की अखंडता से क्या धर्म ज्यादा बलवान होगया 


बुधवार, 16 सितंबर 2020

मै तो अम्बाणि होगया


चाहे करोड़ पति बनो या राजनेता पर अपनो को मत भूलो किसी के अहसान को मत भूलो

दो अक्षर क्या पढे मै तो ज्ञानी होगया अपनो को ही नहीं समझा मै तो अपनो से ही अन जाना होगया 
दिखने लगे अपने भी बेगाने में जो पैसों से अंबानी होगया कभी तरसा था मै भी पानी को सब भुला दिया मैने अब तो पानी पानी होगया
दो अक्षर क्या पढे मै तो ज्ञानी होगया अपनो को ही नहीं समझा मै तो अपनो से ही अन जाना होगया
जानता हूं मेरी कामयाबी के पीछे बहाया था अपनो ने खून पसीना
मैं नहीं मानता अब किसी का एहसान अब जो मै राजनिति का दीवाना होगया
किसकी हिम्मत है जो जताए मुझ पे एहसान क्या उसे दिखते नहीं मेरे तेवर मै पैसे के दम पर ना इंसाफ और बेमानी होगया
दो अक्षर क्या पढे मै तो ज्ञानी होगया अपनो को ही नहीं समझा मै तो अपनो से ही अन जाना होगया
जिसका था कभी मुझे गरव आज उस समाज से ही बेगाना होगया
मुझे नहीं लगते वो अपने वो अपने ही मेरी नज़र में अपनो के ही  गरो के जैसा घराना होगया
क्यों समझू किसी का एहसान मै जो पैसों से अंबानी होगया
रामरतन सुड्डा मत भूल कर्ज कर्ज होता है बेशक तू अंबानी या अंडानी होगया
टूट तो जाता होगा उनका भी कलेजा जिन्होंने इस परिवार और अखंडता के लिए कि थी बिना सपनों के मेहनत आज उन्हीं की चुगली का अदानी होगया
दो अक्षर क्या पढे मै तो ज्ञानी होगया अपनो को ही नहीं समझा मै तो अपनो से ही अन जाना होगया


मंगलवार, 15 सितंबर 2020

ज्ञानी हू में


देश के पूंजी पतियों की हकीकत मेरी एक रचना देश के गरीब और लचारो के नाम

जब दिखता है कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी हो लेता हूं 
दिखावे कीलिए बोल देता हूं मैं सहयोगी हू तेरा
पर साहेब सहयोग कहा देता हूं
विचार में भी बड़े रखता हूं  साहेब तभी तो जब मिले 
कोई असहाय तो कमा के खाने की बोल देताहू 
जब मांगे मुझसे कोई रोजगार करने को सहयोग 
तो सहयोग कहा देता हूं
छोड़ो मांगकर खाना और खाओ कमाकर मेरे विचार
बड़े ह तभी तो ये सलाह देता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब इस जमाने में 
तो दुखी में भी हिलेता हूं
क्या होगी उसकी मजबूरी मुझे इस से क्या 
मैं तो ज्ञानी हू साहेब तभी तो हर किसी बेबस को ज्ञान 
देजाता हूं 
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुखी में भी हो लेता हूं 
कोई नहीं चाहता किसी के आगे हाथ फैलाना पर मुझे इससे क्या मैं तो समृद्ध हू पैसे से
मैं किसी की लाचारी कहा समझ पाता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी होलेता हूं 
मैं जाता हूं मंदिर पुण्य कमाने और खूब मेवे मिठाई 
चढ़ता हूं जब कोई मांग ले भूखा रोटी मैं भूखे को रोटी कहा खिलता हू
मुझे तो पत्थर में दिखता है भगवान,में तो ज्ञानी हू साहेब 
तभी तो हर लाचार को कमा के खाने की कह देता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी हॉलेता हूं 
रामरतन सुड्डा कवि नहीं हूं मै होता है दर्द मुझे  किसी की बेबसी का मै हूं खुद बेबस 
कुछ और तो नहीं मेरे पास इस जमाने को देने केलिए मेरे 
बस अपनी रचना देदेता हूं
जब दिखता ह कोई गरीब  इस जमाने में 
तो दुख में भी  हॉलेता हूं

रविवार, 13 सितंबर 2020

आपसी झगड़े हो कैसे करें कम



अगर आप के परिवार या पति पत्नी के बीच रहता है चिड़चड़ा पन या होते है आपसी झगड़े तो घबराए नहीं बस करें खुद में कुछ आसान से बदलाव


पारिवारिक झगड़े ,पति पतिनी के बीच हाथापाई आजके इस दौर में आम बात है अक्षर ग्रामीण क्षेत्र में एसी घटनाएं आम बात है आज के इस दौर में सिक्षा की भी कोई कमी नहीं है समाज में ज्यादातर लोग पढे लिखे हैं फिर भी इस की क्या वजह है कि पारिवारिक चिड चिडाहट कम क्यों नहीं होरहि है इसका मुख्य कारण क्या है
अब सवाल ये है हमें क्या करना चाहिए जिससे सामाजिक और पारिवारिक मन मुटाव को कम किया जासके 
दोस्तो आजकी इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने परिवार और समाज को देने केलिए किसी के पास टाइम नहीं है सभी पैसे कमाने की दौड़  में आगे रहना चाहते  हैं इस बीच बच्चों की को प्राथमिक पाठ सला कमजोर पड़ती जारही ह ऐसे में बच्चों को सामाजिक ज्ञान पूरा नहीं मिल पाता सामाजिक ज्ञान के अभाव की वजह से बड़े छोटे का आदर अनादर होने लगा है 
और यही कारण है पारिवारिक मन मुटाव का अगर आप अपने घर पवार और समाज में साॕती स्थापित करना चाहते हैं तो अपने परिवार के साथ ज्यादा टाइम बिताए
अपने गुस्से को काबू में रखे और सामने वाले को कुछ कहे और दूरौं को बी बोलने का मौका दे अगर आपको सामने वाले की बात गलत लगे झूठी लगे तो उसे झगड़े नहीं  एकबार उस बात पर विचार करे होसक्ता है उसकी बात सही हो आपको उसके बारे में पूरी जनकरी ना हो बिना जानकारी के कोई भी विवाद ना करे अगर आप जानकारी के अभाव में वाद विवाद करेंगे तो आप किसीभी बात की सुलझ नहीं कर पाएंगे उल्टा आपको समाज के लोग जिद्दी  स्वभाव का समझ ने लगेंगे 
आप समाज में अपनी अलग पहचान कायेम करना चाहते हैं तो आप बात बात पे बिना जरूरत के बोलने से बचे होस्के तो ज्यादा तर चूप ही रहे आपको बोलने की जरूरत महसूस हो या सामने वाला आपकी राय लेना चाहे तो पूरे ध्यान से पूरी समझ से अपने विचार रखें
किसी भी सामाजिक झगड़े को बात चित से सुलझाने का प्रयास करें बदमाश किसम के लोगों से दूरी बनाकर रखे और बदमाशी करने से बचें और बदमाश लोगों के संपर्क से दूर रहे आपसे कोइ गलती हो जाऐ तो उसे छूपाने के लिए हजारो झूठ बोलने की बजाए अपनी गलति को स्विकारने कि हिम्त जूटाए अपने घर ओर समाज से अपनि गलति को सूधारने की अपिल करे | बड़े बूजरगो के साथ बातचीत करने का होसके उतना ज्यादा समय निकले बड़े बुजरगों की बात काटने की बजाए उनकी बातें ध्यान पूर्वक सुने और अपने नॉलेज को बढ़ाए
अगर आप का जीवन साथी यानी आपकी पत्नी  चीड़ चिड़े सवभव की ह और आप उस वजह से काफी परेशान रहते हैं अपने आपको मानसिक रूप से असवस्थ  सा महसूस करते तो आपको अपनी दिनचर्या में कूछ अहम  बदलाव करे 
ज्यादा तर लोग महिलाओं को सिर्फ सरिरिक सुख भोग की वस्तु समझते है और यही सोच पारिवारिक ग्रह क्लेश को जन्म देती है दोस्तो वो एक दौर था जो बीत गया जब महिलाएं अनपड होती थी और वो आपकी सभी यातनाएं बिना कुछ कहे सहती रहती थी आज के दौर की महिलाएं पढ़ी लिखी है और वोभी सामाजिक विकास में अपना योगदान देना चाहती है कुछ महिलाओं कातो वर्तमान में सामाजिक विकाश में मर्दों से ज्यादा योगदान रहा ह और हकीकत भी यही ह सामाजिक विकास महिलाओं पर ही टिका हुआ ह
ऐसे में महिलाओं को भी अपनी बात रखने और अपनी काबिलियत्ता साबित करने का मौका दें
अगर आप की आदत भी अपनी पत्नी से देह सुख भोगने केबाद मुंह फेर लेने की है तो आपको अपनी आदत में सुधार करना चाहिए अपनी पत्नी के साथ बातचीत करने का टाइम निकाले उससे बातचीत करें हो सके तो अपने लेनदेन और कार्य करने के बारे में विचार विमर्श करते रहे  ऐसा करने से वो अपने आप को हिन महसूस नहीं करेगी और मानसिक उपसे स्वस्थ रहेगी 
अगर आपकी पत्नी मानसिक रूप से स्वस्थ होगी तो वो आपसे पियार से पेश आएगी जिससे आपको गरह सुख मिलेगा और जन धन का लाभ भी मिलेगा 
दोस्तो यह रचना आपको  कैसी लगी कॉमेंट कर हमें जरूर बताएं

सामाजीक वीकास कब ओर कैसे


आप भी रहना चाहते हैं अपने परिवार और समाज के साथ मिलजुल कर रहना ,और करना चाहते हैं समाज का नेत्रत्व तो  ईसे जरुर पढे 

जैसा की आप सभी जानते हैं एक से अधिक व्यक्ति मिलकर परिवार का निर्माण करते है और अनेकों परिवारों के मीलनेसे ही समाज का निर्माण होता है और एक से अधिक यानी अनेकों समाज मिलकर राज्य और  और देश का निर्माण करते हैं और अनेकों देश मिलकर विश्व का निर्माण करते ह तभी जाकर होपता है देश और दुनिया का संपूर्ण  विकाश

ऐसे में सभी इंसानों का आपस में मिलजुलकर रहना जरूरी है अकेले मानव का संपूर्ण विकास होपाना असंभव सा है 
आज के इस दौर में समाज और परिवार आपस में दूरी बनाता जारहा है इस से देश और समाज का सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक,  यहां तक मानसिक विकास पर भी विपरीत परभ्व पड़ता जराहा है
ऐसे में सवाल ये है समाज और परिवार को एक जुट कर विकास की अच्छी रफ्तार कसे दीजाए 

समाज के विखंडन का मुख्य कारण है आर्थिक और सांस्कृतिक असमानता और समाज में फैली कुरीतीयां |ऐसे में समाज में आर्थिक समानता कैसे स्थापित की जा सकती हैं क्योंकि आर्थिक असमानता के चलते ही घर और समाज में सामाजिक दूरी बनती जारही है
अगर हमें घर और समाज में आपसी प्रेम स्थापित कर समाज को एक सूत्र में बांधना हैं तो हमें सबसे पहले समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाना होगा जैसे दान दहेज, झाड़ फूंक ,टोना टोटका, मूर्ति पूजा,श्राद्ध मृत्यु भोज जैसी  कुर्तियों को खत्म कर समाज में आर्थिक समानता साथपित करनी होगी 
अगर आप बहुत ही गरीब ह तो आपको अपने दिमाग से अपनी गरीबी का ख्याल हमेशा हमेशा केलिए निकालना होगा 
क्योंकि गरीबी आपको मानसिक रूप से कमजोर बनाती है जिसके बार बार विचार से आप अपना आर्थिक विकास करपाने में सफल नहीं होसकते
क्योंकि गरीबी के बार बार विचार से आप खुद को कमजोर महसूस करनेलगते है और ऐसे में आप खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रख पाएंगे ऐसा होने की वजह से आप यातो किसी की गुलामी स्वीकार करेंगे या चमचा बन जाएंगें इस स्थिति में आप शोस्ण के सीकर होस्कते हैं
अगर आप आर्थिक रूपसे समाज के बाकी लोगों से ज्यादा मजबूत ह और आप समाज का नेतृत्व कर समाज को एकजुट करना चाहते है तो आप को पैसे का घमंड नहीं करना चाहिए और समाज का नेतृत्व पैसे के दम पर करने की सोचने की वजाए अपने परबल विचारो से करने के बारेमे  सोचना चाहिए क्योंकि पैसे के बल पर आर्थिक रूप से कमजोर समाज पर किया गया नेतृत्व अस्थाई होगा एसेमे आप ज्यादा समय तक नेतृत्व नहीं करसकते क्योंकि जैसे ही समाज में आर्थिक समानता स्थापित होगी तो समाज आपके नेतृत्व को ठुकरा देगा और आपके खिलाफ बगावत करनी शुरू कर देगा क्योंकि पैसे के बलपर आप समाज का निष्पक्ष नेतृत्व नहीं करपाएंगे पैसे का घमंड आपको वैचारिक रूप से कमजोर बना देगा और आपकी सोच समाज पर जुर्म करने की होसक्ती हैं आप अपनी हजारों गलतियों को नजर अंदाज कर समाज की जरासी गलती को माफ करने की बजाए समाज पर गुसा करोगे  ऐसे में समाज आपसे मन से नफ़रत करने लगाएगा और एक ना एक दिन समाज आपको नेतृत्व कारी समझने  की वजाए सोश्ण करी समझ ने लग जाए गा ऐसे में आप समाज को नेतृत्व विहीन बना सकते हैं 
अगर एसा हौता हैं तो, समाज आने वाले सम्य मे किसी का भी नेत्रत्व स्विकार नही करेगा|ओर एक नेत्रत्व विहीन 
समाज कभी विकास नही करपाता ओर वह समाज आपसी लडाई ,झगडा मार काट के अलावा कूछ नही करपाता 

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

डॉक्टर अम्बेडकर ने ओबीसी के लिए क्यकिया


डॉक्टर अम्बेडकर ने ओबीसी के लिए जो संगृश किया सायेद। आप नहीं जानते 




डक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर ना होते तो शायद आज obc भी नहीं होती भारत सरकार ओबीसी की पहचान करने को भी नहीं थी तयार ऐसे में ओबीसी की नहीं होपाती पहचान बाबा साहेब ने सरकार से ओबीसी आयोग बनाने की सिफरिश की तो सरकार ओबीसी की पहचान आयोग बनाने के लिए राजी नहीं हुई तो बाबा साहेब ने  10अक्टूबर1951 को केंद्रीय मंत्री मंडल से अस्थिपा देदिया था ताकि सरकार पर दबाव बनाकर ओबीसी आयोग कागठन कर करवाया जासके  बाबासाहेब के भार्शक पयासों से धारा 340 को भारतीय संविधान में लागू किया गया धारा 340 संविधान लागू होने के बारह महीने के भीतर ओबीसी आयोग गठन कर ने का अधिकार देती है तब जाकर ओबीसी की पाचन की जासकी ओबीसी आयोग ने ओबीसी को पिछड़ी जातियों में काउंट किया तब जाकर ओबीसी को भी बाबासाहेब आरक्षण से जोड़कर ओबीसी को विकास की दर में आगे लेकर आए ओबीसी जानती भी नहीं बाबासाहेब को और बाबा साहेब ने ओबीसी के लिए कानून मंत्री पद से अस्थीपा तक देदिया था अगर बाबासाहेब ना होते तो ओबीसी एसेही धूल के बराबर होती 

बुधवार, 9 सितंबर 2020

महात्मा गोतम बुद्ध और उनका धम्म

बाकी धर्मो से बोद्घ धम्म सर्वसरेस्ट क्यों क्या है बौद्ध धम्म में खास जानिए इस लेखमे 


बौद्ध धम्म एक वैज्ञानिक पद्धति पर आधारि पर आधारित धम्म  हैं इसमें सभी जीव जगत के प्रति करुणा मेत्री  समानता और सवेछा से जीने का अधिकार है किसी जीव का अधिकार छीनना अपराध ह चाहे वो इंसान हो या पशु,  स्त्री हो या पुरुष बौद्ध धम्म में आत्मा परमात्मा भूत प्रेत टोना टोटका पूजा पाठ व्रत उपवास जैसी कोई भी धारणा नहीं है ,बुद्ध आत्मा परमात्मा को नकारता है ,और भगवान या किसी  एसी अदृश्य स्कती जो बिना परीसर्म के पूजा अर्चना मात्र से आपको सुख प्रदान करने का दावा करे तो बौद्ध धम्म उसे कतई सविकर नहीं करता, बौद्ध धम्म में इंसान को जन्म देने वाले माता पिता से बड़ा किसी भगवान का दर्जा नहीं है यहां तक की सव्ये महात्मा बुद्ध खुद को भगवान नहीं बताते ,बौद्ध धम्म में माता पिता से बढ़ कर किसी का स्थान नहीं है बौद्ध धम्म  मूर्ति पूजा, पिंड दान, श्राद्ध ,स्वर्ग, नरक ,पुनर जन्म, जैसे अंध विश्वास को नकारता है और बौद्ध धम्म में पाखंड और अंध विश्वास केलिए कोई स्थान नहीं है   वाजहा है जो बौद्ध धम्म को सर्वसरेठ बनता है

बेरोजगारी


बे

रोजगार युवाओं के दर्द भरे बॉल 

सुनो गौर से यूवा ओ तुम्हे राज की बात बताता हूं 
अंध भक्तो की अंध भक्ति ती के मीठे राग सुनता हूं 
नेताओं की जुमले बजी के झूठे बॉल सुनता हूं

 
सुनो गौर से यूूवा ओ तुम्हे राज की बात बताता हूं 
खाने को ह दना नहीं मै ताली थाली और ढोल बजवता हूं 
देश की हालत नजर ना आये मै हींदू मुस्लिम करवाता हूं
रोजगार की ना तुम मांग करो मै मंदिर मूरत बनवाता हूं


सुनो गौर से यूवा ओ तुम्हे राज की बात बताता हूं 
अब उतर उतर के सड़कों पे रोजगार हो जोतुम मांग रहे 
रोजगार का तो ह बजट नहीं चलो दलित और स्वर्ण करवाता हूं
फिरभी तुम ना भटको तो मुद्दा ,आरक्षण का लताहू 

सुनो गौर से यूवा ओ तुम्हे राज की बात बताता हूं 
फिर भी चाहिए रोजगार तो चलो पकोड़े तलवाता हूं
अब तो छोड़ो रोजगार मांगना नहीं तो डंडे पुलिस से मरवाता हूं
घर में दुबक कर बेठो गे दोचार झूठे केस चलवाता हूं 
फिर भी चाहिए रोजगार तो मैं लॉकडाउन लगवाता हूं

सुनो गौर से यूवा ओ तुम्हे राज की बात बताता हूं 
अंध भक्तो की अंध भगिती के मीठे राग सुनता हूं 
नेताओं की जुमले बजी के झूठे बॉल सुनता हूं
अच्छे दिन आने के सपने फिर से तुम्हे दिखता हूं
बडी बडी स्टेजो पे तुम्हे धासू फेक सुनता हूं
खोल के छाती यूवा ओ तुम्हे छपन इंच दिख लाता हूं 
रोजगार का  तुम करोगे क्या में राफेल जहाज मंगवाता हूं

सुनो गोरसे यूवा ओ तुम्हे राज की बात बता हूं
नेताओं की सोच तुम्हे में लिख के लेख सुनता हू 
रामरतन सुड्डा दर्द तेरा में जन जन तक पहुंचता हूं



मंगलवार, 8 सितंबर 2020

क्या भारत में एसी एस्टी ओबीसी के आरक्षण को समाप्त करदेना चाहिए

क्या भारत में एसी एसटी ओबीसी के आरक्षण को वर्तमान समय में समाप्त करदेना चाहिए


भारत में सदियों से प्रताड़ित एसी एस्टी ओबीसी को बाकी सब के समान लेने के लिए भारत सरकार ने विशेष आरक्षण की वेवस्था की गई ताकि भारत को समता मूलक बनाया जासके देश के सभी वर्गो में आर्थिक समानता साथापित कर भारत को विकास की अच्छी रफदार दी जास्के देश में आरक्षण की बुनियाद एसी एस्टी ओबीसी को सक्षम बनाने के लिए कुछ समय के लिए रखी गई थी आजादी से आजतक भारत। सरकार देश में आर्थिक समानता लाने में विफल रही और इसी वजह से  भारत की अथॆवेवस्था मजबूती की बजाए डूबती जारही है क्योंकि आज भी देश का एक बहुत बड़ा वर्ग बेरोजगार ह देस्का पढ़ा लिखा यूआ बेरोजगारी की मार से रोटी केलिए बोहताज है क्या ऐसे हालत में देश से आरक्षण की वेवास्था को खत्म करदेना चाहिए अगर इन हालातो में आरक्षण को खत्म करदिया गया तो देश का एक बहुत बड़ा वर्ग  एसी एस्टी ओबीसी फ़िर से पिछड़ जाएगा और देश के हालात वर्तमान से भी बुरे होजाएंगे क्यों की आजभी देश में एसी एस्टी ओबीसी के पास संसाधनों का अभाव ह और आर्थिक रूप से कमजोर ह इस वजह से पढ़ाई लिखाई के उच्च कोटि के संसाधनों तक पहुंच पाना मुश्किल ह इस लिए सरकार को पहले आर्थिक समानत स्थापित कर  फिर आरक्षण को समाप्त करना चाहिए 

सोमवार, 7 सितंबर 2020

दलित हीन्दु धर्म छोडकर क्यो बन रहे बोद्घ

 

दलित समाज हिन्दू धर्म छोड कर क्यो बन रहा बोद्ध हिन्दू धर्म पर आने वाला है भारी संकट जानिये क्या ह ?

दलित समाज के लोग धिरे धिरे हिन्दू धर्म छोडकर बोद्ध धम अपनाता जारहा है ईसकि क्या वजह है  हिन्दू और बोद्ध मे आखिर एसा क्या अन्तर है जो धर्म परिवर्तन का सिलसिला बढता हि जारहा है ऐसे मे हिन्दू धर्म पर भविष्य मे पोप्यूलेसन का भारी फेरबदल आता नजर आरहा है  एसे हालातो मे एकबार जरूर सोचिए क्या होगा अगर हिन्दू धर्म का एक बहूत बड़ा वर्ग यानी बहूजनसमाज बोद्ध बन गया तो ?हिन्दू धर्म टूटकर छोटा होधजाए गा अगर हिन्दू धर्म के आका हिन्दू धर्म को ईसि तरहा विसाल बनाए रखना चाहते हैं तो हिन्दू धर्म मे जहर घोल रही जातिय ओर वर्ण व्यवस्था को पूर्ण रूपसे नष्ट कर सभी के लिए समानता कि राह खोलनि होगि  क्योंकि जतपात छुआछूत ओर अधंविश्वास ही बड़ी बिमारी है जिससे हतास होकर ही बहूजन समाज हिन्दू से बूद्ध कि ओर जारहा है ईसका यही करण है कि बूद्ध सभी प्राणी यो को एक समान बनाता है चाहे  वो जान्वर हो या महीला  पुरूष बुद्ध के धम मे पाखण्ड ओर अधं विश्वास के लिए कोई स्थान नही है बूद्ध भूत प्रेत आतमा प्रमात्मा टोना टोटका पूजा पाठ को नकारता है यह एक वैग्यानिक पद्ति पर आधारीत धम्म है जो विज्ञान को महत्व देता है 

आज के भारत की हकीकत जानकर आप रहजयेगे हरान


 
भारत के आजके हलात जानकर आप रहजाओगे हेरान  हालात एसे ही बनेरहे तो भारत को भूगतना पड़ सकता है जान माल का  है भारी नुकसान 

भारत कि अर्थ व्यवस्था पहले ही दम तोड चूकि है रूपए की कीमत दीन प्रतिदिन गिरती जारही है ओर साथ ही भारत की अखण्डता पर भी खतरा मडरा रहा है देश का पढा लिखा यूआ बेरोजगारी की मार से मरेजारहा है ओर सड़कों पर उतर आया है' जाति धर्म के दगेॕ रूकने का नाम ही नहिलेरहे एक कोम दूसरी कोम कि दूसमन होती जारही है  सरकारे मदिर मूर्ति बनाने मे लगि हूइ है एसेमे भारत विकास कि दोड मे पिछे होता जारहा है देस की जन्ता हिन्दू मुसलिम करने मे खूस है 

भारत सरकार ने pubg सहीत 118एप किए बैन

भारत सरकार ने pubg सहित 118 चिनी एप कीए बैन भारत सरकार को भूगतना पड़ सक्ता है भारी नूक्सान 

दोसतो भारत सरकार ने pubg  सहीत 118 चाइनीज एप्लिकेशनो को बैन करदीया है अगर भारत ने pubg. जैसा यानी pubg को टक्कर देने वाला कोई नया एप लोॕच नही कीया तो भारत सरकार को भारी नूक्सान होसक्ता है क्यो कि भारत में pubg का क्रेज यूआओ मे ईतना ज्यादा हो चूका है 100 मेसे 90 यूआ pubg  लवर है कइ तो pubg के ईतने आदी होगए ह मानो उनके लिए pubg  कोई गेम नही नसा हो एसे मे  pubg लवर अपनी मानसिक स्थिति  खोदेने से लेकर आत्म हत्या हार्ट अटेक जैसी घटनाओ के सिकार होकते है एसे हालात मे भारत सरकार  को देसमे यूओ भारी खामियाजा भूगतना पड़ सकता है

रविवार, 6 सितंबर 2020

हम है भगत सिंह के चाहने वाले ओर भारत माता की रक्षा हमारा कर्म ओर यही हमारा धर्म हैं



ʼʼहम हैं चाहने वाले सहीदे आजम भगत सिंह केʼʼ 
हमे इस से ज्यादा हैं किसी पे एतबार नहीं हमे चलना होगा 
उसकी राही पे 
क्योंकि झुठे नारों से कभी आता इन्कलाब नही कैसे भूला दोगे 
उसकी कुर्बानी को उसकी कुर्बानी से पहले था वतन हमारा 
आजाद नहीस
जीस चीज का हौ कोई अस्तित्व नही उसे हमे नकार नास होगा
भगत सिंह ने चाहा था पाखंड मुक्त भारत अगर हकीकत में 
चाहते हो भगत सिंह को तो पाखंड वाद मिटाना होगा 
वो था सच्चा नास्तिक भगत के चाहने वालो तूम्हे भी नास्तिक 
बन जाना हो गा 
बनकर सचे देश परेमी पाखंड वाद मिटाना होगा तूमहो सच्चे 
भगत प्रेमी तूम्हे मान्वता धर्म अपनाना होगा तूम हो नास्तिक 
ओर कहदो मै हूँ नास्तिक किसी अद्रसय सक्ति के होने को
स्वीकारना मेरे बस की बात नही जो ऐक नास्तिक का कूछ 
बीगाडदे मेरे खयाल से ये  पाखंड की ओकात नही हा 
मूझे किसी अद्रश्य शक्ति के होने का है विश्वास नही जो चलते 
है किसी दैवीय शक्ति के विश्वास पर शायद उन्हें खूद के होने 
का भी एहसास नही

मेरी अस्था है भारत माता ओर ईसकी रक्षा करना ह मेरा धर्म
मेरे माता पिता से बड़ा कोई ओर भग्वान नही 

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

यह कविता आपको झंझकोर रखदेगी


जीते जी मरे भुखा प्यासा मरने पे पकवान परोस दीया

खुद मानव ही हैं दूसमन मानव का क्यु प्रकृती को दोश दीया 
नंगे बदन फीरता रहा ना तन ढकने को फटा पूराना पूर दीया ʼ सूला दीया जब अर्थि पे तो उसकी अर्थि को अनजानो ने भी चद्दर सूट उढाकर के रग रंगीली बना दीया
बेबस था लाचार था वो जो भूखा प्यासा  घूम रहा बस एक नीवाला मीलजाऐ वो हर दरवाजा  ताक रहा
नही मीली उसे एक भी रोटी  वो गाली खाकर सोगया 
नाजाने वो भगवा ह कैसा जो पत्थर पे पकवान चढे तो अती प्रसन्न जो होगया
जीस की बनाई रचना मे क्यो उसी का बनाया हर जीव जो दर्द का जीवन काट रहा 
कहा है वो मालीक जीसे हम कहे वीधाताʼ वो इन्साफ क्यो नही बाट रहा ढोंग और पाखंड करने वालों को तूम्हारा वो भगवान ही क्यों नही डाट रहा 
सूनता क्यो नही तेरा वीधाता क्यो नजरो से वो ना देख रहा  दरीन्दे कते रोज दरीन्दगी नारी को लाचार किया एक भर्स्टाचारी नेता ओर अफसरने खूब ही भ्र्स्टा चार कीया बेबस ओर लाचारो पे खुब ही अत्याचार किया फीरभी वो गुन्हगार तेरा क्यो मोज की जिन्दगी काट रहा 

नही मीला जवाब कोई यहा नही कोई विधाता है  छोडो अन्याय अत्याचार हे ईन्सान तू खूद ही ईश्वर तू खूद ही यहा वीधाताʼ है 


बुधवार, 8 जुलाई 2020

तकदीर भरोसे

तकदीर भरोसे रे इन्सान तू कुछ भी नहीं कर पाए गा 
दोलत मंद एहसान फरामोसो के जूते तले तू  
यों ही कूचला जाऐगा 
जो करना इन्साफ ना करना जाने ऊन लोगों से क्या इन्साफ तू पाऐ गा 

तकदीर भरोसे रे इन्सान तू कुछ भी नहीं कर पाए गा 

ना थामी तो कलम हाथमे तूम कैसे  शिक्षित बन पाए गा

पढे लिखे बीन रे इन्सान बस ग्वार ही कहलायेगा 
अग्यान वंस रे इन्सान तूम लाचार ही रहजायेगा
 
पाखंडियों  के पाखंड मे तुम उलझे ही रहजाओगे
अंध विश्वास के घोर जाल मे योहीं पीसते जाओगे 

दिन रात खून पसीना बहा ते बहाते दोलतमंद की रोटी का  तू एक दीन नीवाला बन जाऐगा 

रहकर तू तकदीर भरोसे कुछ भी नहीं कर पाए गा बेबसी ओर लाचारी के बल योही कूचला जाऐगा



सोमवार, 27 अप्रैल 2020

प्यार मुहब्बत झूठे जज्बात


दोस्तो आज के ईसदोर मे ,ब्लात्कार ,हत्या ,जैसे मामले आम बात होगंइ है महन बेटीया असुरक्षित सी नजर आती है समाज मे कूछ दरीनंदो ने अपने हव्स की चाह को पूरा करने केलिए ना बहन को बक्सा है ओर ना बेटी को ओर बाबाओं संतो के रूप मे तो ईन हव्स के पुजारियों की कोई कमी नही रहगंई है आऐदीन कोई ना कोई दरीन्दा धीनोनी हरकत करते सामने आही जाता है ओर  कूछ पैसे वाले अमीर घराने के लोग ब्लात्कार ओर हर रोज नई नई लङकीयो को अपनी हव्स की सीकार बनाकर दर दर की ठोकरे खाने केलिए छोङ देने को अपनी सान समझते है ईसी पर आधारित कहानी है रीटा ओर स्वीटी की तो बने रहिए कहानी के अंत तक
रिटा एक गरीब से परिवार में पली बढी ओर सान सकल मे कसी परी से कम नही थी रीटा के घर परीवार को देखे ओर रिटा को देखे तो मानो कोएले की खान  के बीच हिरा नीकल आया हो रीटा जितनी सकल से प्यारी थी तो मन से भी उतनी नरम ओर सातं स्वभाव की थी उन दीनों की बात है रीटा ने स्कूली शिक्षा पूरी कर कॉलेज मे प्रवेस ही लीया था ओर ओर रमेस नाम  के लङके की नजर स्वीटी पर पङगंई रमेस दीखने मे सुन्दर ओर एकदम मासूम सा था रमेस ने स्वीटी को देखते ही मन मे विचार करलीया था स्वीटी को अपनी हव्स की सिकार बनाने का रमेस आर्थिक रूप से धनी परीवार से तालूक रखता था ईसिवजहा से फैसन ओर अपार धन खर्च ने मे कोई कसर नही छोड़ता ओर इसि अपार धन की एवज रमेस स्वीटी को अपनी सिकार बनाने की योजना रमेश ने परवान चढ़ा ली थी अभी कॉलेज  की कलाश शुरू हि हूई थी रमेश ने स्वीटी पर अपनी निगाहे गडाना शूरू कर दिया  था कॉलेज के कूछ ही दिनो में रमेश  ने स्वीटी से दोस्ती की गुहार लगाई स्वीटी ने रमेश की मासूमियत को देखेते हूए दोस्ती सवीकार कर ली वैसे तो कॉलेज में सभी दोस्त होते है इसीलिए स्वीटी ने भी रमेश को दोस्त बना लिया कुछ दिनों बाद रमेश ने स्वीटी कि गरीबी का हवाला देते हुए रमेश ने स्वीटी की आर्थिक सहयोग करने की गुहार लगाई स्वीटी आर्थिक रूप से कमजोर तो थी ही ओर यह सोचकर रमेश आपना दोस्त ह ओर मदद करना चाहता है ओर रमेश द्वारा दि गइ आर्थिक मदद को सवीकार कर लिया सायद स्वीटी नही जान पाइ की रमेश उसकी  आर्थिक मदद के बहाने उसके जिस्म की कीमत लगा रहा है स्वीटी के कॉलेज के दिन बितते गए ओर रमेश दिल में गलत नियत लिए हमदर्दी दिखाकर सवीटी को कूछ जरूरत का सामान देलाता रहता ओर स्वीटी रमेश की तीखी नजर ओर घटिया सोच को नही पहचान सकी और रमेश को अच्छा दोस्त मानतीं रही कुछ दिनों  बाद ही रमेश ने स्वीटी को प्यार का हवाला देकर शादी का वादा कर के प्यार के बडे बडे सपने दिखाने शुरू कर दिये स्वीटी भी रमेश की हमदर्दी ओर मासूम  शक्ल को देख कर सायद ये सोचने लगी थी कि अब उसका इस गरीबी से हमेशा-हमेशा के लिए पिछा छूट जायेगा ओर रमेश उसे हमेशा खुश रखेगा और रमेश के यहाँ पढ लिख कर एक  ना एक दिन म भी बडी ऑफिसर बन जाऊँगी कूछ दिन बीते ही थे की रमेश ने स्वीटी के सामने अपने मन की इच्छा रख दी तो स्वीटी ने शादी से पहले अपने आपको रमेश के हवाले करने से इन्कार कर दीया तो रमेश ने जल्द ही सादी करने का वादा कर स्वीटी को अपनी हव्स की सिकार बना लीया दीन बीतते गए और रमेश अपनी मनकी चाही स्वीटी से करता रहा रमेश के साथ स्वीटी के कूछ दीन बीते ही थे की स्वीटी की तबीयत मे चीङ चीङा हट सा रहने लगा था सायद रमेश को सक हो चूका था की स्वीटी  प्रेग्नेंट होचुकी है ओर अब रमेश स्वीटी से दूरी बनाने लगा कूछ दिनों बाद स्वीटी को उलटी होना सूरू होगया स्वीटी को डोक्टर को दीखाया तो ङोक्टर ने स्वीटी को प्रेगनेंट बताया ओर यह सून रमेश का सक यकीन मे बदल गया ओर ङोक्टर को ये बात स्वीटी को न बताने की कहकर ङोक्टर के रूम से बाहर चलागया स्वीटी ने ङोक्टर से पूछा तो ङोक्टर ने सब सच सच बतादीया सायद ङोक्टर रमेश की नियत को जान चूका था ओर स्वीटी से न बताकर स्वीटी का गूनहगार गार नही बनना चाहता था दो-चार दिनों बाद स्वीटी रमेश से मिली ओर खू द को पेट से होने की बात कही ओर जल्द ही सादी करलेने को कहा तो रमेश ने अपने दिल की सारी खरी खोटि कह सुनाई ओर स्वीटी को विश्वास हीन होने की कहकर किनारा करने की सोची तो स्वीटी ने अपनी कोख मे पल रहे बच्चे का हवाला देते हुए कहा ईस तुम्हारे खून की तो प्रवाह करो ईसे तो दर दर की ठोकरे खाने के लिए मत छोडो तो रमेश ने कहदीया ईसे गिरा दो ये मेरा खून है मै कैसे यकीन करू तूम सादी से पहले मेरे साथ सब कूछ कर सक्ति हो तो तो मै कैसे भरोसा करू किसी ओर के साथ नही कर सक्ति यहै सब कहकर रमेश वहा से चला गया ओर स्वीटी अपने चरित्र पर लगे दाग को सह ना सकी ओर अंतमे फांसी का फंदा गलाकर अपनी ओर पेट मे पलरहे मासूम की जीवन लीला को वही सेमेटलिया

यह स्टोरी  पूर्ण रूप से काल्पनिक है ओर यह स्टोरी ईस उद्देश्य से बनाई गई है कोई बहन बेटी एसे कीसी जाल की सिकार ना हो ओर कोइ कीसी बहन बेटी के ज्जबातो से बस अपने जिस्म की प्यास बुझाने केलिए घिनोना खेल ना खेले स्टोरी अच्छी लगी हो तो हमे कमेंट कर प्रोत्साहित जरूर करें, धन्यवाद ,



बुधवार, 22 अप्रैल 2020

आखीर क्यो मारदेता है इन्सान इन्सान को

दील टूट सा जाता है मेरा जब कोई ईन्सान ईन्सान को मारदेते है
मै कह नही सकता उसे ईन्सान जो धर्मं की आड मे ईन्सानयत को मारदेता है
मै क्या धर्म कहूं उसे जिसके सूत्रधार ही नसलो मे जहर घोल देते है
सेकने को अपनी-अपनी रोटीया धर्म की आङ मे खून बहाने की ठान लेते है
दील टूट सा जाता है मेरा जब कोई ईन्सान ईन्सान को मारदेते है
यूही कह लेते है अपने को  महान दाडी मूछो की आङमे आतंक को पनाह देते है
करते है स्टेजो पे शब्द वाणी लोभ दीखा परमात्मा का बहन बेटी बहला फुसला कर अपने हव्स की प्यास बूझालेते है
वो धर्म ही क्या जिसके सूत्रधार ही ब्लात्कार को अंजाम देते है
दील टूट सा जाता है मेरा जब कोई ईन्सान ईन्सान को मारदेते है
क्या हिन्दू-मुस्लिम क्या सिख ईसाई है हम सभी है ईन्सन ओर आपस मे भाई भाई है हम सब मे है भग्वान बसा, ये नफरतें धर्म की किसने फैलाई है ये चंद पाख्णङ पे पलने वाला ने नफरत की आग जलाता है
दील टूट सा जाता है मेरा जब कोई ईन्सान ईन्सान को मार गिराता है

मंदिर पूजा पाठ आस्था ओर सच्चि भग्ति कि राह

कूछ समय पहले की बात है मैं किसी काम से  बाहर सहर मे  रहा करता था मे मेरा कमरा जहा पर था वो एरीया पंखा सर्किल के नाम  से जाना जाता था मै छूट्टी के दीन ट्रेन से घर आता ओर ट्रेन से ही वापस शहर वापस जाया करता था पंखा सर्किल से रेलवे स्टेशन काफि दूर था छुट्टी के दिन घर आना जाना करता तो मुझे पैदल ही आना जाना होता था क्यों की घरवाले पैसे काम चलाऊ हि देते थे क्यों की मेरे घरवाले आर्थिक रूपसे ज्यादा धनी नही थे तो मै उनसे ज्यादा पैसे लेता भी नही था दोतीन महिने पैदल आते जाते रहने से मेरी मुलाकात महावीर नाम के एक व्यक्ति से हूई महावीर का खूदका एक ओटो गैराज था ओर वो वहिपर रहता था महावीर बीकानेर का रहने वाला था कूछ दीन आते जाते रहने से मेरी महावीर से अच्छी खासी दोसती होगई थी मै एक दो दीन से फुर्सत मिलती तो  महावीर से मिलने अक्सर गैराज चला जाता महावीर एक सच्चा आस्तिक था वो हर रोज सूबहा साम नहा धोकर मंत्र उचारण करता ओर पक्षियों को दाना पानी डालता ओर माथे से तीलक तो कभी मिटने नही देता मै नास्तिक था मै कभी अंधविश्वास पूजा पाठ मंत्र संत्र को नही मानता ओर महावीर ये सब जानता था की मै नास्तिक हू फिरभी हमदोनों मे गहरा लगाव था साएद इसलिए की हमारे धार्मिक विचार भले ही अलग थे लेकीन ईन्सानयत दोनो मे थी महावीर धर्म आस्था पूजा पाठ तो करता था लेकीन धर्म से पहले ईन्सानयत को मानता था उसकी नजर मे सभी धर्म समान थे उसके दील मे सभी जीव जगत के लिए प्यार था चाहे वो किसी भी धर्म को मानने वाला धार्मिक आदमी हो या कोई ओर जीव हो सभी के प्रती दया भाव दील मे  सभी केलिए सम्मान था शुरूआत  कूछ दीनों मे मूझे लगता था की महावीर कितना समझदार ओर मेहनती है ओर खुद ही कर्म प्रधान बताता है ओर अंधविश्वास मै भरोसा रखता है एक दीन मैने महावीर से पूछलीया की आप कितने समझदार है फिरभी पत्थर के आगे  धूपब्ती करते है मंत्र पढते है पाखण्ड करते है एसा क्यो तो महावीर ने मूझे बताया हम  ईन्सानयत को सर्वोपरि समझते है लेकीन संसार मे सभीलोग हमारे जैसे नही है कूछ लोग भगवान आत्मा परमात्मा भूत प्रेतात्मा के डर से बूरे काम नही करते ओर अगर एसे लोगों के दिलो दीमाग मे एसा माहोल रहना जरूरी है नही तो ऐसे लोग जो भग्वान आत्मा परमात्मा के भय से घिनोने काम नही करते वो इनसान पारधी हो जाएगा ओर अपराध बजाएगा  ओर ईसी लिए मै ये पाखण्डी काम करता हू येतो मै भी जानता हू ओर मै एसे लोगो मे ही ज्यादा दिलचस्पी रखता हू जो पाखण्ड मे कम ओर ईन्सानयत मे ज्यादा विश्वास रखते हो मूझे महावीर की बातो मे बहोत कूछ सिखने को मिला साएद मै नही समझ पाता पर महावीर की बातो से मूझे समझ आया की हर ईन्सान पाख्णङी नही होता कूछ लोग ङर भय बनाने के लिए पाखण्ड करते है कूछ लोग देश व समाज के हित के लिए तो कूछ पाख्णङ के सहारे अपनी रोटीया सेकने के लिए पर महावीर की बातो ने ये साबित कर दिया ईन्सान मे ही भग्वान है इन्सान बनो भग्वान खूद ब खू द मीलजाएगा


मंगलवार, 31 मार्च 2020

ऐक गरिब कि अमीर को ललकार देने वालि कविता

तूम धनवान हो तो क्या हूआ सड़को पे तो मै भी नही, तू सोता होगा महलों मे बेसक, मेरे महल नही तो क्या हूआ सर पे बगेर छत के तो मै भी नही
तूम पूजते हो पत्थर की मूरत,मेरी नजर मे मेरे मात पीता से बढकर कोई ओर भगवान नही 
तूम आस्तिक हो तो क्या हूआ नास्तिक तो मै भी नही तूम रखते होगे आस्था काल्पनिक भगवानो मे मेरी नजर मे मात पीता से बढकर आस्था का द्वार नही तूम पढो गीता या कुरान मूझे इस से कोइ ऐतराज नही मै पढता हू भारतीय संविधान को मेरी नजर मे है इससे बङा कोइ ग्रंथ नही तूम करो जोब कम्पनियों मे मुझ पर इनका कोइ रोब नही मै हू खून किसान का मै समझता इससे बडा कोइ रोजगार नही तूम लेते होगे ग्यान संतों का मेरी नजर मे बाबा साहेब से बङा कोई विद्वान नही मै पढता हू किताबें भीम की मेरी नजर मे  उनसे ज्यादा होता होगा धर्म ग्रथो मे कोई ग्यान नही तुम्हें लगते होगे बाहों से मजबूत बलवान मेरी नजर मे कलम से ज्यादा कोई बलवान नही,तूम करवा के हवन ओर यज्ञ रखते होगे आस पून्नय  की मेरी नजर मे भूखे को खाना खिलाने से बङा कोई पून्नय नही, तूम पूजते हो पत्थर की मूरत,मेरी नजर मे मेरे मात पीता से बढकर कोई ओर भगवान नही 

सोमवार, 30 मार्च 2020

मेरे कूछ दर्दनाक पल

उन दीनों की बात है जब मै बारहवी कक्षा में पढा करता था मेरी क्लास के ही रमेस नामके लङके से दोस्ती होगंइ रमेस पढाई लिखाई मे बहोत ही होशियार था रमेस दो बहनो के बीच रमेस ईक्लोता भाई था रमेस के माता पिता एकदम सान्त स्वभाव के व दिल के धनी व्यक्तित्व वाले थे रमेस के जिद्द करने पर  अक्सर मै रमेस के साथ  उनके घर चला जाता था दो-चार बार आने जाने ओर रमेस के माता पिता को भी मुझसे लगाव सा होगया था ओर मूझे भी उनसे बाते करना बहोत अच्छा लगता रमेस पढाई लिखाई के साथ खेती बाडी के कामकाज मे माता पिता का हाथ भी बटाता रमेस के माता पिता रमेस की बहनों कमला बोला से घर का या खेती बाडी का कोई काम नही करवाते कमला बिमाला भी पढाई लिखाई मे रमेस से कोई कम नही थी इसीलिए रमेस भी यही चाहता था  की कमला बिमला बस पढाई लिखाई करे ओर कोई काम न करे रमेस का परीवार आर्थिक रूप से कमजोर था क्योकि रमेस के घर मे बस खेती बाडी के अलावा और कोई आर्थिक  विकल्प नही था ओर खेती बाडी मे इतनी अच्छी पैदा भी नहीं हो ती थी साथ में तीन तीन बहन भाई यो के पढाई लिखाई का खर्च लेकीन रमेस के माता पिता कूछ भी करके रमेस को ओर कमला बिमला को कामयाब बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने मे कोई कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते थे रमेस क्लास मे हमेशा फस्ट आता ओर मै सबसे लास्ट मै लास्ट आता तो मेरी क्लास के ओर लडके मेरे बारे मे कूछ उलटा सिधा बोलकर रमेश को चीङाते मेरे बारे एसा वैसा सुनकर रमेश को गुस्सा तो बहुत आता पर करता भी क्या ये तो सच था मै था ही निकम्मा एक दीन रमेश ने तग आकर मुझे सब कह सुनाया क्लास के ओर लडके तेरे बारे मे क्या क्या भला बुरा कहकर मूझे चीङाते रहते है मैने सोचा साएद अब रमेश मुझ से ज्यादा दीन दोस्ती नही रखेगा मै पढाई लिखाई में कमजोर हू ओर रमेश होशियार जो है रमेश अब कीसी क्लास के खुद के जैसे होशियार लङके से दोस्ती करेगा लेकीन रमेश नै मूझसे दोस्ती तोङने के बजाए मूझे पढाई लिखाई पर ध्यान देने के लिए दबाव बनाने लगा ओर मै रमेश के साथ रहने केलिए कूछ भी करने को तैयार था अब रमेश मूझे सवाल समझता ओर अपने साथ ही पढने को बोलता रमेश के बताए हर सवाल मेरे दीमाग मे कम्पयूटर की तरहां फीड हो जाते ओर मेरा पढने को मन भी करता कूछ दीनों बाद हमारा मासिक टैस्ट लीया गया तो उसमें रमेश फस्ट ओर मै क्लास में सेकेण्ड नम्बर पर आया क्लास के सभी लङके लड़कियो यहा तक की गुरूजनों तक अफसोस होगया की एक सबसे कमजोर लङका अचानक से इतना होशियार कैसे होगया जब स्कूल प्रबंधक को ये बात पता चली तो रमेश को मासिक वेतन पर स्कूल के ओर बच्चों को पढाने तक का ओफर कर दीया अब मेरा भी पढाई मे पूरा मन लगने लगा था ओर मासिक टैस्ट में कभी फस्ट तो कभी सेकेण्ड आता मूझे अब लगने लगा था मै भी कामयाब हो जाऊंगा, मूझे अब पढने मे मजा आने लगा था जब हमारे फाइनल अग्जाम का रिजल्ट आया तो क्लास मे रमेश फस्ट ओर मै सेकेण्ड आया मै खुसी से झूमने लेकिन जब मैने देखा तो मुझे रमेश कही दिखाइ नही दीया मूझे रमेश पर गुस्सा आने लगा रमेश रिजल्ट सुनने जो नही आया मै मन ही मन मे रमेश पर गुस्सा होरहा था ओर साथ ही मन मे विचार कर रहा था आज रमेश रिजल्ट सुनने आता तो कितना अच्छा होता दोनो दोस्त खूब ईज्वाय करते एसे विचार करते करतें मै वापस घर पहुँच गया दो तीन दीन  बाद मे मैने रमेश के घर जाकर रमेश से मिलने का विचार कर मै रमेश के घर चलागया रमेश हतास उदास सा सामने ही खटिया पर बढ कूछ चिंतन कर रहा था मै जैसे ही रमेश के पास गया रमेश की आँखे नम होगंइ ओर मूझे अपनी कतर निगाहों से देखता हूआ रो कर मेरे गले लग गया क इ बार तक गले मिलते रहे ओर फीर मै ओर रमेश उसी खटिया पर बैठ गए मै रमेश ने जो मूझे योगदान दीया मै उसका आभार व्यक्त करता रहा लेकीन रमेस कूछ भी ज्वाब नही दे रहा था तो मैने रमेश को कूछ एसा वैसा कहदीया लेकीन रमेश नै अपने मूह से एक भी लफ्ज़ नही निकाला मै नही जान पाया था की रमेश की आखीर परेसानी क्या है कूछ देर बद मैने रमेश से अंकल के बारे मे पूछा तो रमेश फूट फूट कर रोने लगा जब रमेस को रोते देखा तो मेरे मन मे बूरे बूरे विचार आने लगे ओर मै डर सा गया ओर बाद मे पता चला मेरे दीमाग मे जो विचार आए कूछ एसा ही होगया रमेश के पिताजी की किसी लम्बी बीमारी ने जान ले ली रमेश का सर से सहारा छीनगया मेरा दोस्त लाचार हो चूका था मै भी उसकी कूछ मदद करता तो मै भी बेरोजगार था मैने रमेश को दिलासा दीया आपकी पढाई हम रूकने नही देंगे एक ना एक दीन अंकल के सपने को साकार करने का फैसला कर मै घर आगया ओर अगले कूछ पैसे घरवालों से लेकर ओर कूछ साल इधर उधर से फीस जूटाकर रमेश का एडमिन बीए मे ओर मैने आई टी आई मे दाखिला ले लीया रमेश पास ही के सहर मे बीए करने लगा ओर मै दूर के सहर मे आई टी आई करने लगा हम दोनो ने आपसी सहयोग से डिग्री ले ली अब रमेश बीएड करना चाहता था ओर मेरी भी यही ख्वाईश थी की रमेश टीचर बने ओर मेरी तरहां ओर बच्चों का भी जीवन सँवारे कूछ समय बाद मेरा कीसी लिमिटेड कम्पनी मे ज्वाईन होगया ओर मै रमेश से बीएड की फिस ओर पूरा खर्च उठाने का वादा कर कम्पनी ज्वाइन करने चला गया कम्पनी मे मूझे एकदम आराम दायक काम मिला ओर उसकी देन रमेश था बस अब मेरा लक्ष्य रमेश को टीचर बना था उसने मेरी जिंदगी तो सवार दी अब मै भी उसकी जीन्दगी को स्वार देना चहता था दो तीन महीने काम करने के बाद बस मूझे बीएड के फार्म निकलने का इन्तजार था जैसे ही फार्म निकले मै कम्पनी से तन्ख्वाह लेकर जल्द से छुट्टी लेकर रमेश  के घर की ओर निकल गया रमेस के घर पहूंचा तो देखा रमेश के घर मातम पसरा था रमेश की किसी एक्सीडेंट मे मोत हो चुकी थी मूझे पता चलते ही मेरा सरीर एकदम सून सा पड गया ओर मै बेहोश होकर जमिन पे गीर गया कूछ लोगों ने मूझे होस्पिटल पहूंचा या मूझे होस आया तो मै खुद को संभालते हुए वापस रमेस के घर चला गया वहां कूछ लोग क्लेम का जिक्र कररहेथे तो रमेश की माने साफ मना कर दीया रमेश की मोत के पैसे लेने से लोगों के लाख समझाने पर भी रमेस की माने पैसे लेने से हानही की उस मंजर के बाद मैने भी कम्पनी छोङदी मेरा दिल बहोत हतास हो चूका था क्योकी मेरी जिंदगी को सवारने वाला मेरा दोस्त इस दूनियाँ मे नही रहा मैने भविष्य की नही सोची ओर कम्पनी को रिजाइन देदीया कम्पनी ने मूझे बहोत खत भेजे आ जाओ अभी भी हम आपको फिर से ज्वाइन करने को त्यार है क्योकी रमेस ने मेरे दीमाग मे कम्पयूटर की तरहां ङाङा फीड करने की ताकत को जगा दीया था लेकीन मैने कम्पनी के ओफर को नही स्वीकारा ओर कम्सापनी मे जाने से साफ इन्कार कर दीया आज मै खूूूदको माफ नही कर पाया मै रमेश का मै जिन्दगीं भर नही चूका सक्ता रमेश की दोनो बहने सादी के लायक होगंइ ओर सादी की त्यारीया होगंइ पर मै बेरोजगार कमला बिमला की सादी मे दैहिक सहयोग अलावा एक रूपए का भी आर्थिक सहयोग नही कर पा रहा रमेश की आत्मा मूझे कोस रही होगी की मूझे कम्पनी नही छोडनी चाहिए थी कमला बिमला की सादी मे मूझे रमेश की कमी का एहसास ही नही होने देना था 

बाबा साहेब ज्यन्ति 14 अप्रेल को संदेश जो देश ओर समाज को परिव्रतन की ओर लेजाए


नमस्कार दोस्तो कैसे हैं आप सब ,दोस्तो मै आप का दोस्त रामरत्तन सूडा आप पढ रहे हैं sawtanter aawaj. Com  



आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
हर घर मे जलाए दीपक हर घर को रोसन कर दे
मिलाकर कदम से कदम 14 अप्रेल की रात को दीन मे बदल दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को एक नया आयाम दे
ना जलाना पटाखे ओर फूलझङीया हर मीसनरी को यह पैगाम दे
आओ हम सब मिलकर पोल्यूसन को मात दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
नही उठायेंगे रंग ओर गुलाल इन्ही पैसो से कीसी जरूरत मंद को
जरूरत का सामान दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
ना लाए ङीजे ओर ढोल नगाङे इन्ही पैसों से लाचार मासूम को
कापी ओर पैन दे बाबा साहेब के सपने को मिले गी एक नईं दीया
इस बार बाबा साहेब की जयन्ती पर हम नसे पते की बुरी आदते सब छोङ दे बचाए कूछ पैसा ओर कीसी लाचार की लाचारी मिटाने मे उसको आर्थिक सहयोग दे
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
हर घर पे जलाए दीपक हर घर को रोसन बना दे
जीन झोपड़ियों मे था सदियों से अँधेरा फिजूल खर्ची बचाकर उन झोपड़ियों को भी रोसन कर देने का इस महान शक्सियत के जन्म उपलक्ष मे हम सब मिलकर ये प्रण ले
आओ हम सब मिलकर 14अप्रेल को कूछ नया कर दे
मनाए खुसया अपने अपनो के संग आओ मिलकर हम सब बोद्ध धम स्वीकार ले नही माने गे कभी पाखण्ड को आओ हम सब मिलकर ईन पाखण्डी रसमो रिवाजों को त्याग दे हम रखे गें भरोसा विग्यान पे आरो को भी ये आह्वान दे
आओ हम सब मिलकर बाबा साहेब की ज्यन्ति अबकी बार कूछ नया कर दे  14 अप्रेल की रात को दीन मे बदल दे




रविवार, 29 मार्च 2020

प्रक्रती का कहर

सुनो इन्सानो अब अपने घरों मे ही रहो प्रक्रती ने नाराज गी जताई है
जरा सी  चूक से ही मीट सकती हैं मानव सभ्यता इस धरती से, एसी महामारी छाई है
बहोत की या दोहन प्रक्रती का साएद प्रक्रती ने बदले की आग जलाई है
आज नही आए वो मंदिर,मस्जिद भी कोइ काम जिन्हे बनाने की खातिर हमने बडे बडे जगंलो की कटाई है
वो भग्वान भी पतानही गंए कहा जीनके बना ने को मंदीर हमने आपस की लडाई है
आज आहाकार मचा दूनीया मे हर इन्सानो की सामत आइ है ना देखे मजहब प्रक्रती अब होनी दूनियाँ मे तबाही है
अगर खोल ली हमने आँखे तो साएद विध्वंस बच जाए गा जो भूल के मजहब जात धर्म को गीत प्रक्रती के गाएंगे, मानव जाति से खतरा तो ही हम टालपाएगे
सोचो दिल से हे मानव ईस धरती की नजरों मे होता मजहब खास नही अगर होता मजहब का कोई मोल तो धरती पे मचता यो कोहराम नही
अभी वक्त है सुधरने का ये जो ट्रेलर देखा है ना नुक्सान करो प्रक्रती का ये मिला सुधार का मोका है नही हूआ सुधार कोई तो विध्वंस पका हैं 

शनिवार, 28 मार्च 2020

मस्त सायरिया

ज्यादा हवा भर देने से भी अक्सर गुब्बारे फूट जाया करते हैं
दोलत नही आती है कोई काम साहेब जब साथ अपनों से छूट
जाया करते है
जिन्दगी लगने लगती है मोत से बेहतर अक्सर जब अपने रूठ
जाया करते हैं

न्याल्यो मे जज भी जिस कलम से लिखते है सजा मोत की
लिख कर सजा ए मोत अक्सर कलम को तोड दीया करते है
हम जय भीम वालोँ पर होते हैं  जूल्म साएद ईस लिए की हम भी गुनहगार को अक्सर सुधरने का मोका देकर छोङ दिया करते है

हम भीमराव को मानने वाले अब डरे हमारी कोम नही
सहते आए जूल्म सदियों से सहेगे अब हम ओर नही
दीए हमे सब अधिकार भीम ने चले तेरा अब जोर नहीं
मत छेडो अब निली पगड़ी पङवा लोगे चोट नही

लगालो बेसक तीलक तूम लम्बा बेसक हवन जलालो तूम
बेसक कर लो टोने टोटके बेसक भ्रम फलालो तूम
पर अब नही बहूजन बहके गा चाहे अब लम्बी चोट कटवालो तूम

सूना है मंदीर मे अक्सर भग्वान बसा करते है
पर समझ नही उस वक्त कहां चले जते है
जब एक बेबस चीख चीख कर रहम की भीख मांगा करते है
सूनलेते है सूर मे गाए वो हर भज्न को पर बतानही क्यो
एक बेबस की बेबसी की चिखं भग्वान क्यो सून  नही पाते है


एक दर्द था मेरे सिने मे ओर वो दर्द आज भी है
जो एहसासं नही होने देता कभी अपने होने का
एसा मेरा एक समाज भी है ,साएद नींद मे सोया है
मेरा समाज तभी तो, ना कूछ लोग भी तोड रहे हैं मेरे अधिकार
वर्ना किसकी क्या मजाल जो आख भी उठा सके मेरे अधिकारो
की तर्अफ अच्छे अच्छो की मिटा दे हस्तियां मेरे समाज के सीने मे
दफन वो आग भी तो है




Love shayeri bewafa shayeri dard bhri shayeri lavitaye kahaniya motivsnal or samajik stori

Kisi ka jhukne n dena sis lachari me

किसी का झुकने न देना सीस लाचारी में बेमानी का सीस उठने न देना खून है तुम्हारी नसों में ईमान का  इसे बेमानो से मिटने न देना  बाहें तुम्हारी भ...